अंतरराष्ट्रीय स्तर पर इस समय रुस और यूक्रेन को लेकर मामला काफी गर्म है। अमेरिका ने खुले तौर पर रुस को चेतावनी दे रखी है, तो वहीं दुनिया के तमाम देश रुस और यूक्रेन के मामले पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे हैं। हाल ही में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में मत पारित किया गया कि इस विषय पर खुली बहस होनी चाहिए या नहीं। इसे लेकर भारत ने जो कदम उठाया है, उसे लेकर चर्चा जोर शोर से हो रही है। ध्यान देने वाली बात है कि भारत अब वो पुराना वाला भारत नहीं रह गया है, जो अन्य देशों के दबाव में अपने फैसले बदल दे। अब भारत वैश्विक स्तर पर खुलेआम अपनी बात रखता है, अपने फैसले लेता है। फिलिस्तीन के मुद्दे से लेकर पाकिस्तान की कूटनीतिक हार तय करने तक, भारत हर बार यह सुनिश्चित करते आया है कि भारत का पक्ष पूरी दुनिया को मालूम चले। अब रुस द्वारा पाकिस्तान पर एक्शन लेने के एक दिन बाद भारत ने UNSC में यूक्रेन मामले पर कुछ ऐसा किया है, जिससे रुस भी भारत का धन्यवाद करते नहीं थक रहा!
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रुस ने किया भारत का धन्यवाद
दरअसल, यूक्रेन के मुद्दे पर खुली बहस होनी चाहिए कि नहीं, इस मुद्दे पर भारत, केन्या, गैबॉन ने भाग नहीं लिया और चीन ने यूक्रेन की स्थिति पर बैठक से पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में प्रक्रियात्मक वोट के खिलाफ मतदान किया है। व्लादिमीर पुतिन के नेतृत्व वाले रुस ने इन चार देशों को “अमेरिका के मत” के सामने खड़े होकर मुखर होने के लिए धन्यवाद दिया है।
संयुक्त राष्ट्र में रुस के पहले उप स्थायी प्रतिनिधि दिमित्री पॉलींस्की ने अमेरिका के राजदूत द्वारा किये गए एक ट्वीट के जवाब में ट्वीट करते हुए कहा, “आज अमेरिकी कूटनीति सबसे खराब स्थिति में है। हमारे 4 सहयोगियों चीन, भारत, गैबॉन और केन्या को धन्यवाद, जो वोट से पहले अमेरिका के जबरदस्ती हस्तक्षेप के खिलाफ खड़े होने के लिए बहादुर दिखे।” इससे पहले संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉमस-ग्रीनफील्ड ने कहा था कि “रुस की आक्रामकता से न केवल यूक्रेन और यूरोप को खतरा है, बल्कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की अंतरराष्ट्रीय आदेश के साथ मजाक है।”
भारत ने दिखाया ठेंगा
यूक्रेन की स्थिति पर चर्चा के लिए बीते सोमवार को सुरक्षा परिषद (UNSC) की बैठक हुई। बैठक से पहले रुस, जो कि एक स्थायी और वीटो-धारक सदस्य है, उसने यह निर्धारित करने के लिए एक प्रक्रियात्मक वोट का आह्वान किया कि क्या खुली बैठक आगे बढ़ सकती है। रुस और चीन ने बैठक के खिलाफ मतदान किया, जबकि भारत, गैबॉन और केन्या ने भाग नहीं लिया। नॉर्वे, फ्रांस, यूएस, यूके, आयरलैंड, ब्राजील, मैक्सिको सहित अन्य सभी 10 परिषद सदस्यों ने बैठक के पक्ष में मतदान किया। बैठक को आगे बढ़ाने के लिए परिषद को केवल 9 ‘हां’ वोटों की आवश्यकता थी। परिषद के 10 सदस्यों के बैठक पक्ष में मतदान के साथ, यूक्रेन सीमा पर स्थिति को लेकर बैठक आगे बढ़ी।
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कोई साथ है तो कोई खिलाफ!
गौरतलब है कि इस समय अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक समीकरण बदल रहे हैं। यूक्रेन के राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने यूक्रेन के सशस्त्र बलों को तीन साल में 1,00,000 सैनिकों को बढ़ाने और सैनिकों का वेतन बढ़ाने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर किया है। दूसरी ओर पोलैंड साफ-साफ यूक्रेन की तरफ चल गया है। हाल ही में कीव की यात्रा पर पोलिश प्रधानमंत्री माटुस्ज़ मोराविकी ने कहा कि वारसॉ, यूक्रेन को गैस और हथियारों की आपूर्ति के साथ-साथ मानवीय और आर्थिक सहायता में मदद करेगा। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री मंगलवार को जेलेंस्की से मिलने यूक्रेन पहुंचे हैं। इसी बीच, कनाडा की रक्षा मंत्री अनीता आनंद ने कहा कि कनाडा रुस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाने के लिए पश्चिम में शामिल होने के लिए तैयार है और यह तब हो सकता है, अगर मास्को ने यूक्रेन में सैनिकों को भेजा। कनाडा का यह कहना है कि क्रेमलिन के पास डी-एस्केलेशन और दंडात्मक उपायों के रूप में एक विकल्प है।
रुस और यूक्रेन के बीच क्या चल रहा है?
रुस अमेरिका और नाटो से कानूनी रूप से बाध्यकारी गारंटी मांग रहा है कि यूक्रेन कभी भी नाटो में शामिल नहीं होगा. इसके अलावा रूस की मांग है कि उसकी सीमाओं के पास नाटो हथियारों की तैनाती रोकी जाए और नाटो के बल पूर्वी यूरोप से लौट जाएं। वहीं, अमेरिका और नाटो को लगता है कि रुस यूक्रेन पर हमला कर सकता है। अमेरिका की ओर से इस मामले को लेकर लगातार रुस को निशाने पर लिया जा रहा है। दूसरी ओर रुस इस मामले में अमेरिकी हस्तक्षेप को लेकर हमलावर है। हाल ही में एक रूसी राजनयिक ने उन खबरों का खंडन किया है, जिनमें कहा गया है कि मास्को ने यूक्रेन संकट को कम करने के उद्देश्य से एक अमेरिकी प्रस्ताव पर वाशिंगटन को एक लिखित प्रतिक्रिया भेजी है। ध्यान देने वाली बात है कि रुस किसी भी तरह का समझौता करने के लिए तैयार नहीं हैं और जो भी उसके पक्ष में रह रहा है, उसे कूटनीतिक स्तर पर रुस से समर्थन प्राप्त हो रहा है।
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पाकिस्तान की हवा टाइट
बताते चलें कि इस महीने की शुरुआत में बताया गया था कि इस्लामाबाद और मास्को इस साल रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की पहली पाकिस्तान यात्रा की योजना को अंतिम रूप देने के लिए बातचीत कर रहे हैं। लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि क्रेमलिन के अनुसार अब पुतिन की इमरान के साथ कोई निर्धारित बैठक नहीं है। रुसी राष्ट्रपति अगले सप्ताह शीतकालीन ओलंपिक के शुभारंभ के दौरान बीजिंग में भी इमरान से नहीं मिलेंगे। इमरान खान रूसी राष्ट्रपति के साथ द्विपक्षीय वार्ता की उम्मीद कर रहे थे, लेकिन अब स्थिति स्पष्ट हो गई है। पाकिस्तानी अधिकारियों ने भी पुष्टि की है कि बैठक नहीं हो रही है।
दरअसल, भिखारी पाकिस्तान रुस के साथ अपनी करीबी बढ़ाने की कोशिश कर रहा था, लेकिन जैसे ही उसने अपना रंग दिखाया, रुस ने उसकी औकात दिखा दी! ऐसे में रुस द्वारा अचानक से इमरान खान को मना कर देने के पीछे भारत की सफल कूटनीति बताई जा रही है। अब भारत ने यूक्रेन मुद्दे पर भी अपना स्टैंड सबके सामने रख दिया है, जो आने वाले समय में भारत को अत्यधिक लाभ पहुंचाएगा। भारत और पाकिस्तान के बीच की प्रॉक्सी वॉर में भारत अभी तक बढ़िया स्थिति में दिख रहा है।