मार्च महीना लिबरलों के लिए दुःख के साथ आया और दुःख देकर ही जाता दिख रहा है। शुरुआत मन को तोड़ने के साथ हुई जब लिबरलों की इच्छा विरुद्ध पांच राज्यों में से 4 राज्यों में पुनः भाजपा सरकार आ गई, पंजाब को अपवाद के तौर पर छोड़ दें तो चुनावी नतीजे लिबरलों के लिए सबसे बड़ा दुःख बनकर सामने आया।
एक के बाद एक घटनाक्रमों से घबराए हुए हैं लिबरल
10 मार्च को चुनाव के परिणाम आए ही थे कि 11 मार्च को डबल झटके के तौर पर ‘द कश्मीर फाइल्स’ रिलीज़ हो गई, इसके आते ही यासीन मलिक पर UAPA के आरोपों का शिकंजा कस गया। अब एक के बाद एक घटनाक्रमों के बाद तो लिबरल गुट के स्थान विशेष में ऐसी आग लगी कि बरनोल लगाने के बाद भी आराम नहीं मिला।
बुधवार को 200 करोड़ का व्यवसाय पार करने वाली ‘द कश्मीर फाइल्स’ ने अभी आग बुझने नहीं दी थी कि लिबरलों के एक साथी उमर खालिद की जमानत याचिका पुनः रद्द हो गई। जमानत न मिलने के बाद उदारवादी, वामपंथी और आज़ादी गैंग के पृष्ठभाग में उष्मित ज्वाला का संचार हो चुका है जिसको काबू में लाना लिबरलों के लिए कठिन पड़ रहा है।
कुछ ट्वीट पर गौर करें तो लिबरलों का दर्द और अच्छे से समझ आएगा। तो शिवम विज नाम के एक यूजर ने ट्वीट किया कि उमर खालिद एक मासूम युवक है जिस पर साम्प्रदायिक हिंसा भड़काने का झूठा आरोप लगाया गया है। उनका असली अपराध सांप्रदायिक हिंसा का विरोध करना, शांति और सद्भाव की मांग करना है। ‘सिस्टम’ एक युवक को बेरहमी से दंडित कर रहा है, जब वह दोषी साबित होता है तो उसे जेल में डाल दिया जाता है। #फ्रीउमर खालिद
https://twitter.com/DilliDurAst/status/1506554685611982849
द वायर की आरफा खानम शेरवानी का ट्वीट पढ़ चकरा जाएंगे
द वायर की आरफा खानम शेरवानी भी पीछे नहीं रहीं और उमर प्रेम में एक ट्वीट कर डाला और लिखा कि उमर खालिद ने सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि हमारी आजादी, हमारी गरिमा और हमारे संवैधानिक अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी। उन्होंने एक समान भारत के लिए लड़ाई लड़ी। उन्हें दंडित करना हमारे समय का सबसे बड़ा अन्याय है। भला सोचिए कि अब डर तो इनको भी है ही कि उमर खालिद की उम्र जेल में ही निकल जाएगी तो कैसे इनका चैनल और इनका एजेंडा चलेगा।
Umar Khalid did not just fight for himself but for our freedom, our dignity and our constitutional rights.
He fought for an equal India.
Punishing him for upholding the constitution and keeping him in jail is the greatest injustice of our time. pic.twitter.com/Mc1MsbVqgm— Arfa Khanum Sherwani (@khanumarfa) March 24, 2022
दरअसल, यह मार्च माह ही एक वर्ग और कहें तो जमात के लिए इतना दुखदाई था कि “ये दुःख काहे ख़त्म नहीं हो रहा” वाला डायलॉग भी इस समय के लिए कम पड़े क्योंकि इस जमात के दुःख और व्यथा की इन दिनों कोई सीमा है ही नहीं। दिल्ली की एक अदालत ने गुरुवार को जेएनयू के पूर्व छात्र उमर खालिद की जमानत याचिका को 2020 के दिल्ली दंगों के सिलसिले में “बड़ी साजिश” के एक मामले में खारिज कर दिया। बुधवार को, अदालत ने तीसरी बार जमानत याचिका पर अपना आदेश टाल दिया था। दिल्ली की कड़कड़डूमा कोर्ट ने जमानत अर्जी खारिज करते हुए कहा कि अभी आरोपी को जमानत देने का कोई आधार नहीं है। अदालत ने 3 मार्च को खालिद और अभियोजन पक्ष की ओर से पेश वकील की दलीलें सुनने के बाद आदेश सुरक्षित रख लिया था।
और पढ़ें- कांग्रेस और कथित लिबरल वामपंथी मीडिया का यासीन मलिक के लिए मोह खत्म ही नहीं होता
टुकड़े-टुकड़े गैंग के पुण्य अब आ रहे हैं सामने
यह सर्वविदित है कि टुकड़े-टुकड़े गैंग के पुण्य इतने हैं कि न्यायपालिका को भी एक साथ फैसला करने में सुलभता नहीं महसूस हो पाती यही कारण है कि अदालत को भी इसी जमात की भांति टुकड़ों-टुकड़ों में निर्णय और आदेश देना पड़ रहा है। इसका एक सबसे बड़ा कारण यह और है कि उमर खालिद जैसे कथित छात्र कानून को अपने अनुसार घुमाने की जुगत में हर पेशी में कोई न कोई अड़ंगा डालने का प्रयास करते हैं और जमानत की आस में आए दिन कोई नया षड्यंत्र प्लांट करने में लग जाते हैं। वहीं कानून में सख्ती ने इस प्रवृत्ति का समूल नाश कर दिया हैं। सुनवाई के दौरान खालिद के वकील ने आरोपपत्र को ‘कल्पना’ करार दिया। उन्होंने तर्क दिया कि खालिद द्वारा दिया गया भाषण गांधी, सद्भाव और संविधान के बारे में था, और यह कोई अपराध नहीं है।
और पढ़ें- कश्मीरी पंडितों को तड़पाने वाले यासीन मलिक पर UAPA का शिकंजा
ज्ञात हो कि, उमर खालिद और कई अन्य पर फरवरी 2020 के दंगों के “मास्टरमाइंड” होने के मामले में आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए के तहत मामला दर्ज किया गया है, जिसमें 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हो गए थे। सीएए और नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क गई थी। उमर खालिद के अलावा, कार्यकर्ता खालिद सैफी, जेएनयू छात्र नताशा नरवाल और देवांगना कलिता, जामिया समन्वय समिति की सदस्य सफूरा जरगर, आप के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन और कई अन्य लोगों पर भी मामले में कड़े कानून के तहत मामला दर्ज किया गया है।
और पढ़ें- सावधान अखिलेश, द कश्मीर फाइल्स आपकी पार्टी को बांट सकती है!
इन सभी ने देश को खंड-खंड करने के उद्देश्य से अपने बहुआयमी द्रोही धर्म को निभाने का अदम्य साहस नहीं घोर कायरता दिखायी तो सही पर कर्मों के फल भोगने का जब समय आया तो जेल की चार दीवारी ही नसीब हुई, भारत को तोड़ने का तो सपना, सपना ही रह गया।