जब देश के किसी प्रतिष्ठित संस्थान से कोई व्यक्ति शिक्षा की जगह अराजकता और नफरत फैलाए तो वह व्यक्ति देश के लिए विष के समान हो जाता है। JNU के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद भी उसी विष के समान हैं। 2016 के जेएनयू देशद्रोह मामले में उनकी भूमिका किसी से छिपी नहीं है। JNU के पूर्व छात्र नेता उमर खालिद पर दिल्ली में दंगा भड़काने का आरोप है। अपने घिनौने कारनामों के कारण देश में रहकर देश की सम्प्रभुता को ठेस पहुंचाने में माहिर उमर खालिद अब पूरी तरह से कानून के चंगुल में फंस चूके हैं और अब उन्हें आजीवन जेल की हवा खानी पड़ सकती है।
उमर खालिद को नहीं मिली जमानत
दरअसल, दिल्ली की एक अदालत ने 24 मार्च को JNU के पूर्व छात्र उमर खालिद को फरवरी 2020 के दौरान दिल्ली दंगों में बड़ी साजिश के मामले में जमानत देने से इनकार कर दिया। इस मामले में अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अमिताभ रावत ने खालिद और अभियोजन पक्ष के वकील की दलीलें सुनने के बाद 3 मार्च को आदेश सुरक्षित रख लिया था, तब 14 मार्च को फैसला सुनाया जाना था, लेकिन उमर खालिद के वकील द्वारा लिखित दलीलें नहीं देने पर टाल दिया गया।
फिर विशेष लोक अभियोजक अमित प्रसाद द्वारा अतिरिक्त नोट जमा करने के साथ उन्होंने कहा कि उमर खालिद के खिलाफ कई चैट और अन्य सबूत हैं। वहीं दिल्ली पुलिस ने दावा किया कि 5 दिसंबर से दंगों की योजना में खालिद की संलिप्तता थी।वहीं उमर खालिद की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता त्रिदीप पेस ने तर्क दिया था कि मामले में दिल्ली पुलिस द्वारा दायर की गई पूरी चार्जशीट मनगढ़ंत है और उनके खिलाफ मामला दो टीवी चैनलों द्वारा चलाए जा रहे वीडियो क्लिप पर आधारित है, जिसमें उनका एक भाषण का छोटा संस्करण दिखाया गया है।
गौरतलब है कि उमर खालिद को दिल्ली पुलिस ने पिछले साल की शुरुआत में पूर्वोत्तर दिल्ली में हुए हिंदू विरोधी दंगों के एक साजिशकर्ता के रूप में गिरफ्तार किया था। खालिद के अलावा, कार्यकर्ता खालिद सैफी, जेएनयू छात्र नताशा नरवाल और देवांगना कलिता, जामिया समन्वय समिति की सदस्य सफूरा जरगर, आप के पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन और कई अन्य लोगों पर भी मामले में कड़े कानून के तहत मामला दर्ज किया गया है।
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‘उमर खालिद दंगों के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक’
विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार, और स्वयं ताहिर हुसैन के अनुसार, उमर खालिद दंगों के मुख्य साजिशकर्ताओं में से एक थे और साथ ही उनपर भीड़ को दूर से उकसाने के लिए भी आरोप है। खालिद और कई अन्य पर फरवरी 2020 के दंगों के “मास्टरमाइंड” होने के मामले में आतंकवाद विरोधी कानून यूएपीए (UAPA)के तहत मामला दर्ज किया गया है, जिसमें 53 लोग मारे गए थे और 700 से अधिक घायल हो गए थे।दरअसल CAA और NRC के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा भड़क गई थी और कतरवादी इस्लामवादी सोंच के कारण खालिद ने घिनौने अपराध में भागीदारी निभाई थी।
जैसा की TFI ने पहले भी बताया है कि उमर खालिद के पिता आतंकी संगठन सिमी से जुड़े रहे हैं, और बेटा तो अपने पिता की तुलना में वैचारिक रूप से कहीं अधिक चरमपंथी है। फिर भी, मीडिया के अपार योगदान के कारण, भारत के उदारवादियों द्वारा उस व्यक्ति को एक ‘बुद्धिजीवी’ के रूप में दर्शाया गया। वामपंथियों के इतना समर्थन मिलने के बाद, खालिद ने शायद यह मान लिया था कि वह अब देश के कानून को ठेंगा दिखा सकता है पर दुर्भाग्य से उसकी कट्टरवादी और इस्लामवादी सोच चकनाचूर हो गयी है।
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भारत में हिंसा का पर्याय उमर खालिद!
‘गौरतलब है कि पुलिस ने पिछले साल 26 दिसंबर को मामले में खालिद के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था।खालिद को इस मामले में अक्टूबर 2020 में गिरफ्तार किया गया था और वह तब से न्यायिक हिरासत में है। पढाई छोड़ कसाई बनने के चक्कर में उमर खालिद को अब समझ आ रहा होगा की वामपंथी समुदाय के समर्थन से उसके पाप नहीं धूल जाएंगे। खालिद जिस भारतीय कानून का मज़ाक हमेशा उड़ाता आया है आज खुद के किये पाप से बचने के लिए उसी न्यायालय और कानून का जाप कर रहा है पर भारतीय न्यायालय अपने न्याय के लिए जाना जाता है और ऐसे में, पुख्ता सबूतों के बाद भारत में हिंसा का पर्याय बने उमर खालिद की जमानत तो दूर पूरा जीवन जेल में बिताना पड़ सकता है।