अपने इतिहास के सबसे कठिन आर्थिक संकट से जूझ रहे श्रीलंका में पूर्व प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे के इस्तीफे के बाद रानिल विक्रमसिंघे नए प्रधानमंत्री बन गए हैं। जहाँ पूर्व प्रधानमंत्री राजपक्षे के कार्यकाल में श्रीलंका चीन के अधिक नजदीक हो गया था, वहीं विक्रमसिंघे के कार्यकाल में उनके भारत के प्रति सकारात्मक रुझान के कारण, भारत श्रीलंका के रिश्ते और मजबूत होंगे। विक्रमसिंघे ने शपथ ग्रहण के बाद कहा “मैं भारत के साथ एक करीबी रिश्ता बनाना चाहता हूं।” भारत के अरबों डॉलर के मदद की ओर इशारा करते हुए विक्रमसिंघे ने कहा कि मैं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को धन्यवाद देना चाहता हूं। बता दें कि भारत ने कर्ज से जूझ रहे श्रीलंका की मदद के लिए 3 अरब डॉलर से ज्यादा के लोन, क्रेडिट लाइन और क्रेडिटस्वैप का वादा किया है।
भारत के साथ व्यक्तिगत संबंध बनाए
रानिल विक्रमसिंघे ने प्रधानमंत्री के रूप में अपने पिछले कार्यकाल के दौरान चार अवसरों अक्टूबर 2016, अप्रैल 2017, नवंबर 2017 और अक्टूबर 2018 में भारत देश का दौरा किया। इसी अवधि के दौरान, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी श्रीलंका के दो दौरे किए। उनके समय में भारत श्रीलंका के बीच कोलंबो ईस्टर्न टर्मिनल के निर्माण हेतु समझौता भी हुआ था जिसे राजपक्षे के कार्यकाल में स्थगित कर दिया गया था। विक्रमसिंघे तमिलों के प्रति सकारात्मक हैं। उनके पूर्ववर्ती कार्यकाल में LTTE के साथ बातचीत भी शुरू हुई थी। हालांकि अब LTTE मौजूद नहीं है, किन्तु तमिल समस्या आज भी श्रीलंका और भारत के आपसी संबंधों में महत्वपूर्ण है।
विक्रमसिंघे को अभी सर्वदलीय अंतरिम सरकार का नेता बनाया गया है और केवल आर्थिक संकट से उबारने का कार्य दिया गया है। उनके पास बहुमत नहीं है, भले ही अन्य दलों का समर्थन प्राप्त है। श्रीलंका में चुनाव होने पर ही वह पूर्णकालिक प्रधानमंत्री बनने की दौड़ में आएंगे। किन्तु अभी भारत जिस प्रकार श्रीलंका की मदद कर रहा है और अंतरिम सरकार में भी भारत सर्मथक नेता प्रधानमंत्री है, ऐसे में इस समय हुए कार्य, भविष्य के लिए मजबूत नीव रखेंगे।
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चीन और श्रीलंका की आर्थिक नीतियों की देन
विक्रमसिंघे 6वीं बार श्रीलंका के प्रधानमंत्री बने हैं। श्रीलंका का वर्तमान आर्थिक संकट चीन की और श्रीलंका की आर्थिक नीतियों की देन है। श्रीलंका पर पहले ही विदेशी कर्ज बहुत अधिक था। किन्तु इस विपरीत आर्थिक स्थिति में भी सरकार में आते ही महिंदा राजपक्षे ने श्रीलंका के इतिहास का सबसे बड़ा टैक्स कट किया। उन्होंने लोकलुभावन कार्य करने के उद्देश्य से टैक्स कट किया था, जिससे लाखों लोगों को टैक्स के दायरे से बाहर कर श्रीलंका के आय के स्त्रोतों को कम कर दिया गया।
इस फैसले ने श्रीलंका की कर्ज वापसी की क्षमता को संदेहास्पद बना दिया जिससे श्रीलंका के लिए वैश्विक बाजार से और कर्ज उठाना कठिन हो गया। इसके साथ ही कोरोना के फैलने से श्रीलंका का टूरिस्म उद्योग बुरी तरह प्रभावित हुआ जो श्रीलंका की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण सेक्टर है। इसके बाद महिंदा राजपक्षे ने एक और बड़ी भूल की उन्होंने बिना तैयारी के श्रीलंका में ऑर्गेनिक फार्मिंग शुरू करने का निर्णय किया और इसके लिए केमिकल फ़र्टिलाइज़र के आयात पर प्रतिबंध लगा दिया है। इसका किसानों पर बुरा प्रभाव पड़ा और खाद्यान्न के दाम बढ़ने लगे।
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रूस और यूक्रेन युद्ध के कारण
इसी बीच तेल के दामों में आए उछाल से श्रीलंका के लिए आयात करना और अधिक कठिन हो गया। इस कारण मुद्रास्फीति 30% तक पहुंच गई और चीजों के दाम आसमान छूने लगे। अब रानिल विक्रमसिंघे को ऐसी कठिनाइयों से अपने देश को निकालना है। विक्रमसिंघे को सबसे पहले महंगाई को नियंत्रित करना है। भारत की आर्थिक मदद और लाइन ऑफ क्रेडिट लोन इसमें सहयोग करेंगे। भारत श्रीलंका को खाद्यान्न उत्पाद भेज सकता है। इसके बाद उन्हें जल्द से जल्द घरेलू उद्योग को मजबूत करना पड़ेगा। इसके लिए भारत के मॉडल को अपनाया जा सकता है।
भारत अफ्रीका में विशेषज्ञता के विकास ‛एक्सपर्टीज डेवलेपमेंट’ हेतु कार्य कर रहा है। ऐसी ही सहयोग श्रीलंका को मिल सकता है। भारत ने मालदीव के साथ टूरिस्म को बढ़ाने के लिए समझौते किए हैं। श्रीलंका में शांति बहाल होते ही भारत श्रीलंका के साथ टूरिस्म के विकास हेतु समान समझौते कर सकता है। श्रीलंका के इंफ्रास्ट्रक्चर के विकास हेतु, रानिला विक्रमसिंघे के पुराने कार्यकाल में, भारत श्रीलंका के बीच समझौता हुआ था जिसे महिंदा राजपक्षे ने स्थगित कर दिया था। भारत ऐसे प्रोजेक्ट में पुनः निवेश कर सकता है। इससे स्थानीय स्तर पर रोजगार सृजन होगा।