प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) ने 8 जुलाई शुक्रवार को एमनेस्टी इंटरनेशनल इंडिया और उसके पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) आकार पटेल को विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा) के उल्लंघन के आरोप में कारण बताओ नोटिस जारी किया था। जांच एजेंसी ने एमनेस्टी इंटरनेशनल पर 51.72 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया जबकि पटेल पर 10 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया गया।
केंद्रीय जांच एजेंसी को सूचना मिली थी कि एमनेस्टी इंटरनेशनल यूके विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम (एफसीआरए) से बचने के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के माध्यम से अपनी भारतीय संस्थाओं को बड़े पैमाने पर विदेशी योगदान दे रहा था। इन आरोपों के आधार पर फेमा के तहत जांच शुरू की गयी।
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‘एमनेस्टी विदेश से फंड लेता रहा’
ईडी के बयान में कहा गया है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने मिनिस्ट्री इंडिया फाउंडेशन और अन्य ट्रस्टों को पूर्व पंजीकरण या अनुमति से इनकार कर दिया था लेकिन बावजूद इसके भारत में अपना विस्तार करने के लिए एमनेस्टी विदेश से फंड लेता रहा।
कई मौकों पर, एमनेस्टी इंटरनेशनल और उसके भारतीय इकाई को भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल पाया गया है। इस संगठन का भारत के आंतरिक मामलों में दखल देने का इतिहास काफी पुराना है। यह लगातार भारत को मानवाधिकारों के उल्लंघनकर्ता और मुसलमानों के ‘उत्पीड़क’ के रूप में गलत तरीके से पेश करने की कोशिश करता रहा है।
यही कारण है कि प्रवर्तन निदेशालय ने आरोप लगाया है कि एमनेस्टी इंटरनेशनल यूके ने “सेवाओं के निर्यात की आड़ में राष्ट्र विरोधी गतिविधियों को निधि देने” के लिए एफसीआरए का उल्लंघन करते हुए एमनेस्टी इंडिया को 51 करोड़ रुपये से अधिक की राशि दी।
जब 2011-12 में विदेशी योगदान (विनियमन) अधिनियम (FCRA) लागू हुआ, तो NGO को विदेशी फंडिंग लेने की अनुमति दे दी गयी लेकिन जब सरकारी एजेंसियों की जांच में इस फंडिंग के प्रतिकूल इनपुट मिले तो अधिकारियों ने तुरंत इसे मिलने वाली फंडिंग को रद्द कर दिया था। सरकार द्वारा प्रतिबंध लगाए जाने के बाद, एमनेस्टी इंटरनेशनल ने 2012 में IAIT नामक एक गैर-लाभकारी संगठन और 2013 में एक लाभकारी वाणिज्यिक इकाई, AIIPL की स्थापना की।
IAIT को घरेलू रूप से वित्त पोषित किया जाना था और इन निधियों का उपयोग करके भारत में मानवाधिकार संबंधी गतिविधियों को अंजाम देना था। एआईआईपीएल को रिपोर्ट, अभियान आदि के माध्यम से सेवाओं के निर्यात के रूप में शुल्क वसूल कर उसी काम को अंजाम देना था।
ईडी के अनुसार दोनों संस्थाओं के पदाधिकारियों का एक समान समूह था, जो एक ही इमारत से संचालित होता था और अपने पूरे अस्तित्व में एआईआईपीएल के पास सिर्फ एक प्रमुख ग्राहक था: एमनेस्टी इंटरनेशनल यूके।
2015 में, एमनेस्टी इंटरनेशनल यूके ने एआईआईपीएल में 10 करोड़ रुपये का निवेश करने के लिए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) मार्ग का इस्तेमाल किया।
पिछले कुछ वर्षों में, एआईआईपीएल को विभिन्न मुद्दों पर मानवाधिकार रिपोर्ट तैयार करने, अभियान आयोजित करने और कुछ तकनीकी सेवाओं से संबंधित ‘सेवाओं के निर्यात’ के लिए एमनेस्टी इंटरनेशनल यूके से 36 करोड़ रुपये (10 करोड़ रुपये एफडीआई सहित) मिले।
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एजेंसी और एनजीओ का यह है दावा
एजेंसी ने दावा किया कि यह सेट-अप एफसीआरए को दरकिनार करने और व्यावसायिक गतिविधियों के नाम पर एनजीओ के काम को अंजाम देने के अलावा और कुछ नहीं था। ईडी ने एआईआईपीएल और आईएआईटी को मिले पूरे पैसे को अपराध की कमाई बतायी है।
दूसरी ओर, एनजीओ ने दावा किया है कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है क्योंकि अन्य देशों में भी भी इसी तरह काम करते हैं अर्थात, दो संस्थाओं की स्थापना, एक लाभ के लिए और दूसरी गैर-लाभकारी।
ध्यान देने वाली बात यह है की सबसे ज्यादा फंडिंग दो प्रोजेक्ट्स के लिए आयी। कश्मीर में ‘एक्सेस फॉर जस्टिस’ को GBP 46,867 या 44.5 लाख रुपये, और जस्टिस फॉर द 1984 सिख नरसंहार’।
ईडी ने आगे कहा कि एआईआईपीएल का उद्देश्य मीडिया का उपयोग करके सार्वजनिक आक्रोश पैदा करना और राजनीतिक दलों पर दबाव बनाना था। उन्होंने इसके अभियानों के लिए जन समर्थन जुटाने के लिए आरटीआई के साथ-साथ मीडिया, टीवी और रेडियो का इस्तेमाल किया। दिलचस्प बात यह है कि ईडी ने यह भी उल्लेख किया कि एमनेस्टी ने सुनिश्चित किया कि 1984 का सिख नरसंहार 2017 के पंजाब चुनाव घोषणापत्र के प्रमुख मुद्दों में से एक बने।
हालांकि, यह हैरानी की बात है कि मानवता का रोना रोने वाले ऑल मुसलमानों के अधिकारों की बात करने वाले एमनेस्टी ने कभी कन्हैयालाल का ‘सर तन से जुदा’ करने वालों पर कुछ नहीं कहा। बांग्लादेश में हो रहे हिंदुओं के नरसंहार के बारे में कुछ नहीं कहा।
कई मौकों पर, एमनेस्टी इंडिया और उसके पूर्व प्रमुख आकार पटेल भारत को नकारात्मक रूप से चित्रित करने के लिए खुलेआम झूठ और फर्जी खबरें फैलाते नजर आए हैं। इसलिए आवश्यक है कि भारत के घरेलू मुद्दों में विदेशी हस्तक्षेप के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई की जाए।
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