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भाजपा के संसदीय बोर्ड में किसे मिली जगह, कौन हुआ गायब, किसे किया गया बाहर, यहां समझिए पूरा गणित

भाजपा के फैसले चौंकाने वाले होते हैं!

Utkarsh Upadhyay द्वारा Utkarsh Upadhyay
20 August 2022
in राजनीति
PM Modi and JP Nadda

Source- TFI

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भाजपा में कोई भी दायित्व हमेशा स्थायी नहीं रहा है, वह सदैव चलायमान रहा है। अब चाहे वो राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी हो या एक मंडल अध्यक्ष का पद, परिवर्तन होता रहा है। यूं तो इन सभी पदों का एक तय कालखंड होता है जिसके बाद फिर से चयन होता है और नए व्यक्ति को दायित्व दे दिया जाता है। लेकिन कुछ दायित्व ऐसे होते हैं जिनका चयन बहुत सोच-विचार के बाद किया जाता है। यह वे समूह होते हैं जिनकी संख्या कम होती है पर सबसे प्रभावशाली यही होते हैं। देशभर में विभिन्न स्तरों पर चुनाव में प्रत्याशी कौन होंगे इसका निर्धारण यह समितियां पीएम नरेंद्र मोदी और भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष की देखरेख में करती है। इसी बीच इन समितियों में भी बडा परिवर्तन हुआ है और कई नए और कई गुमनाम हो चुके चेहरों को इसमें जगह मिली है। ऐसे में कई वो नाम भी गायब हुए हैं जिनका अनुमान कोई भी राजनीतिक पंडित नहीं लगा सकता था।

और पढ़ें: मोदी-शाह की भाजपा ने क्षत्रपों को तोड़ने का कोड अब ढूंढ लिया है

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मणिपुर को जल्द मिल सकता है नया मुख्यमंत्री, भाजपा के संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने टटोली प्रदेश में सरकार गठन की संभावनाएंू

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दरअसल, इस बार भाजपा की परिवर्तन की श्रृंखला में दो अत्यंत महत्वपूर्ण समितियों, केंद्रीय संसदीय बोर्ड़ और केंद्रीय चुनाव समिति का परिवर्तन सुनिश्चित किया गया। इस बार जहां कई नए नामों को जगह मिली तो वही कई पुराने नामों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। जो प्रमुख नाम जिन्हें केंद्रीय संसदीय बोर्ड़ से बाहर किया गया वे हैं नितिन गडकरी और शिवराज सिंह चौहान। इसके आलावा उनकी रिक्तता भरने के लिए उन्हीं के राज्यों के दो अन्य नेताओं को जगह दी गई। वह दो नाम हैं मध्य प्रदेश से पूर्व राज्य सभा सांसद सत्यनारायण जटिया और महाराष्ट्र से उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस।

इसे भाजपा की रणनीति का अहम भाग कहा जाए या उसकी राजनीतिक चाल कि दो राज्यों के पूर्व मुख्यमंत्रियों को इस बार केंद्रीय संसदीय बोर्ड़ में शामिल किया गया। इनमें कर्नाटक के बी एस येदियुरप्पा तो असम के सर्बानंद सोनोवाल शामिल हैं। यह निश्चित रूप से बडी अहम बात हो जाती है कि किसी भी राज्य के वर्तमान मुख्यमंत्री को न लेते हुए केंद्रीय संसदीय बोर्ड़ में दो पूर्व मुख्यमंत्रियों पर दांव लगाया गया है। केंद्रीय संसदीय बोर्ड़ के अतिरिक्त इन दोनों को केंद्रीय चुनाव समिति में भी शामिल किया गया है।

ओबीसी चेहरे की बात करें तो भाजपा ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में ओबीसी मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और राज्यसभा सांसद के लक्ष्मण को शामिल किया है। पीएम मोदी, भाजपा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, अमित शाह, राजनाथ सिंह समेत दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के अलावा जो व्यक्ति इन दोनों सूची में शामिल हैं वो के लक्ष्मण ही हैं। तेलंगाना से सरोकार रखने वाले राज्य के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और पूर्व विधायक के लक्ष्मण को इन समितियों में शामिल करने से एक बात तो साफ है कि भाजपा तेलंगाना के आगामी चुनावों को हल्के में नहीं ले रही है। साथ ही आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों को भी साधने की जुगत में मुरलीधर राव के बाद भाजपा ने दूसरी बार इन समितियों में तेलंगाना के नेताओं को शामिल किया है।

अल्पसंख्यकों को मिले प्रतिनिधित्व की बात करें तो दोनों सूची में जो नाम सामान्य है वो हैं इक़बाल सिंह लालपुरा। इन समितियों में पहले सिख के रूप में इकबाल सिंह लालपुरा को सम्मिलित किया गया है। साथ ही आगामी भविष्य में पंजाब को कैसे मजबूती से साधा जाए इस प्रयास में लालपुरा को लिया गया है। इकबाल सिंह लालपुरा के परिचय की बात करें तो वो पूर्व आईपीएस अधिकारी हैं और वर्तमान में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन हैं। लालपुरा उन तीन पूर्व आईपीएस अधिकारियों में से एक हैं, जिन्हें सिख अलगाववादी नेता जरनैल सिंह भिंडरांवाले को पकड़ने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। अप्रैल 1981 में उन्होंने मोस्ट वांटेड भिंडरांवाले को पकड़ने में अहम भूमिका निभाई थी। ऐसे में खालिस्तानी तंत्र को आगे भी राज्य में कमज़ोर करने की योजना से लालपुरा को नया और अहम किरदार दिया गया है।

दो नाम जो बहुत समय से या यूं कहें राजनीतिक रूप से गुमनाम थे लेकिन उन्हें फिर से चर्चाओं के केंद्र में ला दिया गया। उनमें पहला नाम सत्यनारयण जटिया का है, जो मध्य प्रदेश भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं और वो उज्जैन लोकसभा क्षेत्र से सात बार सांसद भी रह चुके हैं। इसके साथ ही वह एक बार राज्यसभा से सदस्य भी रहे हैं लेकिन कार्यकाल पूर्ण होने पर पार्टी ने उन्हें इस बार राज्यसभा नहीं भेजा था। वहीं, अब शिवराज सिंह चौहान के हटाए जाने के बाद उन्हें केंद्रीय संसदीय बोर्ड में शामिल किया गया है तो कहानी और दिलचस्प होती दिख रही है क्योंकि आगामी वर्ष 2023 में मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं।

और पढ़ें: भाजपा के संसदीय बोर्ड की सूची से गायब है योगी जी का नाम, कभी पीएम मोदी के साथ भी ऐसा ही हुआ था

दूसरा नाम सुधा यादव का है। सुधा यादव नाम से उत्तर प्रदेश से प्रतीत हो रही हैं पर सुधा यादव हरियाणा के नामी परिवार से हैं। जी हां, सुधा यादव के पति सुखबीर सिंह यादव बीएसएफ में डिप्टी कमांडेंट थे, जो करगिल युद्ध में ही शहीद हुए थे। और तो और सुधा यादव को राजनीति में प्रवेश कराने वाले और कोई नहीं स्वयं पीएम नरेंद्र मोदी थे। बात 1999 की है जब सुधा यादव का नाम पहली बार एक नेता के रूप में सामने आया था। उन दिनों नरेंद्र मोदी हरियाणा भाजपा के के प्रभारी थे। इसी बीच उन्होंने सुधा यादव को जैसे-तैसे कर चुनाव लडने के लिए मनाया। बाद में सुधा यादव महेंद्रगढ़ की लोकसभा सीट से चुनाव लड़ी और शानदार जीत हासिल किया। वर्ष 1999 से 2004 तक वो सांसद रहीं और वर्ष 2004 और 2009 दोनों चुनावों में उन्हें हार मिली। इसके बाद सुधा यादव राजनीतिक रूप से उतनी सक्रिय नहीं रहीं। ऐसे में उन्हें पुनः राजनीतिक रूप से सक्रिय करने के लिए लिया गया यह निर्णय जहां सुषमा स्वराज के बाद एक महिला का रिक्त पद भरते हुए केंद्रीय संसदीय बोर्ड़ और केंद्रीय चुनाव समिति में उन्हें नामित करना बहुत बडा निर्णय हो जाता है।

अगला नाम पार्टी के संगठन महामंत्री बीएल संतोष का है। यह तो औपचारिकता होती है, जिस प्रकार पीएम मोदी और पार्टी अध्यक्ष इन समितियों में होंगे, उसी प्रकार संगठन महामंत्री भी अवश्य होंगे। चूंकि वो संघ और भाजपा की कड़ी को मज़बूत करने वाले एकमात्र मध्यस्थ हैं, ऐसे में उनका नाम भी इसमें शामिल होना किसी बड़े निर्णय से कम नहीं है। यह तो हुए वो नाम जो केंद्रीय संसदीय बोर्ड़ और केंद्रीय चुनाव समिति दोनों में हैं।

अब हम आपको उन नामों से अवगत कराते हैं जो केवल केंद्रीय चुनाव समिति में लिए गए हैं। इसमें संगठन के पुराने जानकार पूर्व राष्ट्रीय महामंत्री भूपेंद्र यादव का नाम शामिल है, जो वर्तमान में श्रम और रोजगार, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन के केंद्रीय कैबिनेट मंत्री हैं। दूसरा नाम महाराष्ट्र से उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का है। उन्हें उनके गुरु नितिन गडकरी की जगह मिली है। यह इसलिए और ज़रूरी हो जाता है क्योंकि इस बार उन्हें मुख्यमंत्री न बनाकर एकनाथ शिंदे को सीएम बनाया गया, ऐसे में पार्टी के आदेश पर देवेंद्र फडणवीस न चाहते हुए भी उपमुख्यमंत्री बने। ऐसे में संगठन ने इस बात पर गौर कर उन्हें केंद्रीय चुनाव समिति का अहम हिस्सा बनाने में क्षणभर नहीं लगाया।

अगला नाम संगठन के दायित्वों से दूर हो चुके पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष ओम माथुर का है। वर्तमान में राज्यसभा सांसद ओम माथुर राजस्थान की राजनीति में बड़ा कद रखने वाले नेताओं में से एक हैं। ऐसे में चुनाव पास हैं और उनका कद बढ़ाना उसी ओर आहट कर रहा है। अंतिम नाम है महिला मोर्चा की राष्ट्रीय अध्यक्ष वनाथी श्रीनिवासन का, जो संगठन में महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने वाली और दक्षिण की उभरती नेता हैं, जिन्होंने कोयंबटूर दक्षिण निर्वाचन क्षेत्र से 2021 तमिलनाडु विधानसभा चुनाव सफलतापूर्वक लड़ा और अभिनेता कमल हासन को हराया। तो कुछ इन समीकरणों के साथ भाजपा के संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति के जीर्णोद्धार को थोड़ा-थोड़ा करके डिकोड किया गया है। शेष आगामी भविष्य में उनके निर्णय बतायेंगे कि यह भाजपा को कितना लाभान्वित करते हैं और कितना नहीं।

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Tags: केंद्रीय चुनाव समितिपीएम मोदीभाजपाभाजपा संसदीय बोर्ड
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बिहार के बाजीगरों के जरिये पश्चिम बंगाल फतह का ताना-बाना बुन रही भाजपा

27 November 2025

पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने बिहार में दिन-रात मेहनत कर विजय सुनिश्चित करने वाले नेताओं और कार्यकर्ताओं के कंधों पर अब बंगाल फतह की सबसे...

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21 November 2025

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