Kashmir School Hindi education: किसी भी राष्ट्र के उत्थान के लिए वहां की भाषा का महत्वपूर्ण योगदान होता है और इस बात से देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत अच्छे से परिचित हैं। तभी तो वो सभी भाषाओं को समान रूप से सम्मान देते हैं। वहीं भारत में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा हिंदी ही है। बीते कई वर्षों से सरकार हिंदी भाषा के उत्थान के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। इसी के चलते कश्मीर में करीब-करीब 32 वर्ष बाद प्राइवेट स्कूलों में हिंदी को अलग भाषा के रूप में पढ़ाए जाने की तैयारी हो रही है।
हिंदी अपना स्थान पुनः प्राप्त करेगी
जी हां, जम्मू-कश्मीर शिक्षा परिषद के द्वारा इसके लिए आठ सदस्यों वाली कमेटी का गठन किया गया है। कमेटी कश्मीर के 20 फरवरी तक 3 हजार से अधिक प्राइवेट स्कूलों में पहली से 10वीं कक्षा तक हिंदी भाषा (Kashmir School Hindi education) को पढ़ाने के लिए सिफारिशें सौंपने वाली है। इसी के साथ कश्मीर की घाटियों में हिंदी अपना स्थान पुनः प्राप्त करने की ओर अग्रसर हो रही है।
यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि जम्मू-कश्मीर में कुल 23,173 सरकारी स्कूल हैं। वहीं जम्मू रीजन में सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में हिंदी (Kashmir School Hindi education) भाषा की पढ़ाई होती है। ऐसे में जम्मू रीजन के बच्चे हिंदी को भाषा के रूप में पढ़ने का विकल्प चुनते आये हैं। दूसरी ओर कश्मीर में अभी हिंदी के विषय को पढ़ाने की कोई भी व्यवस्था नहीं है। इसका सबसे बड़ा कारण घाटी के सरकारी और प्राइवेट स्कूलों में हिंदी शिक्षकों की कमी है क्योंकि वर्ष 1990 के बाद से वहां पर हिंदी पढ़ाने वाले कश्मीरी पंडित घाटी से पलायन करके चले गए थे।
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बच्चों ने हिंदी पढ़ना ही छोड़ दिया
शिक्षक न होने के कारण वहां के बच्चों ने हिंदी पढ़ना ही छोड़ दिया था. वर्तमान समय में घाटी के प्राइवेट स्कूलों में अंग्रेजी, उर्दू और कश्मीरी भाषा ही पढ़ाई होती है. हां घाटी के कुछ स्कूलों में हिंदी की पढ़ाई होती है ये भी वो स्कूल हैं जो सीबीएससी (CBSE) बोर्ड से संबन्धित है. CBSE बोर्ड से जुड़े हुए स्कूलों में भी अधिकतर केंद्रीय विद्यालय है. जानकारों की माने तो घाटी में वर्ष 1990 से पहले तक लगभग 70% से अधिक प्राइवेट स्कूलों में हिंदी भाषा का अध्ययन होता था.
जहां एक ओर सरकार कश्मीर में हिंदी भाषा को बढ़ावा देने के लिए आगे आ रही है. वहीं इसे देखकर कुछ लोगों को इससे बड़ी ही आपत्ति हो रही है. उनके अनुसार ऐसा करना कश्मीर में हिंदी को थोपने के सामान है. मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता मोहम्मद युसूफ तारिगामी ने इसे लेकर कहा कि जम्मू-कश्मीर में हिंदी को थोपना राष्ट्रीय एकता पर हमला करने के बराबर है और इससे केंद्र शासित प्रदेश में विभाजन की रेखाएं अधिक गहरी हो जाएंगी. साथ ही उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार के द्वारा हिंदी थोपने का ये निर्णय काफी मनमाना है और इसका एकमात्र उद्देश्य बहुभाषी और बहुनस्ली जम्मू-कश्मीर के समाज में विभाजन की रेखा को गाढ़ा करना है.
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लोगों पर उर्दू थोपी गयी
क्या केवल हिंदी भाषा के पढ़ाए जाने से कश्मीर के समाज में विभाजन की रेखा गाढ़ी हो जाएगी? 32 सालों से जब यहां उर्दू का बोल-बाला था तब समाज में विभाजन की रेखा गाढ़ी नहीं हुई थी? अगर देखा जाए तो 32 साल पहले कश्मीर के लोगों पर उर्दू थोपी गयी थी. वहां के लोगों को न चाहते हुए भी उर्दूं को अपनाना पड़ा था. लेकिन उसके बारे में कोई भी चर्चा नहीं करता है. उसमें किसी भी तरह का बदलाव लाने का प्रयास नहीं किया गया।
हिंदी भाषा की बात आते ही हिंदी विरोधी लोग बहुत तिलमिला जाते हैं लेकिन जब वहां के लोगों पर उर्दूं का भार डाला गया था तब सब के सब चुप्पी साधे बैठे थे लेकिन सरकार खोखले हिंदी भाषा (Kashmir School Hindi education) विरोधियों से बिना घबराए इनका मुंहतोड़ जवाब देते हुए आगे बढ़ रही है.
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