Nashik Trimbakeshwar temple incident: बहुत समय पूर्व नाशिक के प्राचीन नगर में चार निर्भीक मुस्लिम यात्री या यूं कहें निद्रा में लीन राहगीर] त्रयंबकेश्वर मंदिर के पावन तीर्थ की ओर प्रस्थान किये। देखिए, ये चार बंधु: अकील, सलमान, मतीन और सलीम, कोई ऐसे वैसे आक्रांता नहीं थे। ये बस घोर निद्रा में लीन कुछ यात्री थे, जिन्होंने गलत मार्ग का अनुसरण कर लिया।
Nashik Trimbakeshwar temple incident
परंतु विधि का विधान देखिए। त्रयंबकेश्वर मंदिर भूमि के कुछ कट्टर प्राणी, जिनका हास परिहास से दूर दूर तक कोई नाता नहीं, इस निद्रा प्रेमी चौकड़ी के व्यंग्यात्मक क्षमता से परिचित ही नहीं हो पाए। इसका उपहास उड़ाने के स्थान पर इन्होंने मोर्चा (Nashik Trimbakeshwar temple incident) निकाला, और प्रशासन को बुलाते हुए इन गरीबों के विरुद्ध FIR तक दर्ज करा दी। ये तो ठीक किसी बॉलीवुडिया फिल्म का एक दमदार दृश्य प्रतीत होता है, जहां पुनः मंदिर का प्रशासन एक दुर्दांत आक्रांता के रूप में चित्रित किया गया है। अगर किसी वस्तु की कमी थी, तो वो केवल पृष्ठभूमि में उच्चतम संगीत की! दूसरे शब्दों में कहे तो उच्चतम बैकग्राउन्ड स्कोर!
सच में, ये एक स्वर्णिम अवसर था कि इन बालकों को सनातन संस्कृति की भव्यता से परिचित कराएँ। अब कल्पना कीजिए। इधर उधर मत देखिए, बस कल्पना कीजिए :
निद्रा में लीन चौकड़ी त्रयंबकेश्वर मंदिर में प्रविष्ट होती। विचलित होने के स्थान पर मंदिर के अधिकारी एवं भक्तगण उनका आवाभगत करते और कहते, “नमस्ते, निद्रा में लीन भाइयों!”
सुरक्षा के लिए इनकी चेकिंग करते [इसलिए नहीं कि इनके पास कोई हथियार या बम हो, या चूंकि इनके बारे में भांति भांति के भ्रम हो, परंतु नींद में व्यक्ति को आभास नहीं रहेगा कि वह क्या और क्यों उठा रहा है?
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जब समस्त व्यवस्था हो जाए, तो चारों युवकों को सम्पूर्ण सनातनी वेशभूषा में मंदिर के प्रांगण में लाए। सबके देह पर अंगवस्त्रम और धोती उचित शैली में विद्यमान होनी चाहिए, और साजसज्जा में किसी प्रकार की समस्या न हो। देखिए, मंदिर में ही अद्भुत कला प्रदर्शनी हो।
अब इनके लिए यज्ञोपवीत संस्कार कराते, जिसमें चारों को जनेऊ धारण कराके, उनका केश लुंचन कराते। बस शिखा के लिए एक अलग स्थान छोड़ देते, बहुत ही अवश्यंभावी है! तदनोपरांत इनके माथे पर त्रिपुण्ड लगाते। फिर क्या था, समस्त मंदिर में इनके आध्यात्मिक परिवर्तन के गुणगान है, और मंत्रोच्चार के साथ इनका अभिनंदन और वंदन होता।
अगले 15-20 दिनों तक इनके हाथों से पार्थिव शिवलिंग सहित मंदिर के प्रांगण में रुद्राभिषेक कराते हुए इन युवकों से एक करोड़ बार शिव पंचाक्षरी मंत्र का जाप करवाते। इसमें भोजन और नित्य क्रियाकर्म के लिए समय प्रदान किया जाता वो अलग। ऐसा अलाकिक आनंद और कहाँ?
अंत में पटाक्षेप में इन नवीन सनातनियों को मंदिर के गर्भ गृह तक ले जाके इनका आधिकारिक रूप से सनातन धर्म में प्रवेश कराया जाता। तालियों की गड़गड़ाहट, अश्रुधारा और जयकारों के उद्घोष के बीच हमें चार सनातनी भक्तों की प्राप्ति होती, जिसका श्रेय इनकी निद्रा को जाता। परंतु देखिए न, कट्टर भक्तों को ये सुझाव रास ही नहीं आया। अरे, आपका सेंस ऑफ ह्यूमर कहाँ भाग गया?
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अब तो बस इतनी ही आशा है SIT से कि वे इस हास्यास्पद स्थिति का महत्व समझ इन गरीबों पर उपकार करें। इतना ही नहीं, आगे से इन्हे विशिष्ट, जीपीएस युक्त स्लीपवेर पहनाया जाए ताकि ये गलत मार्ग पर पुनः न भटके!
आज्ञा से, जनहित में जारी!
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