कभी सोचा है कि आईआईटी, आईआईएम और एमआईटी जैसे संस्थानों में झंडे गाड़ने वाला, एक समय देश की अर्थव्यवस्था की रूपरेखा तय करने वाला, शत प्रतिशत मीम मटेरियल बन जाएगा? यदि नहीं, तो मिलिये श्रीमान रघुराम राजन से, जिन्होंने मानो अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया है कि कुछ भी करें, परंतु भारत की कभी भी सकारात्मक छवि संसार को न देखने दे!
इस लेख में पढिये कि आखिर रघुराम राजन चाहते क्या है जीवन से, और क्यों ये व्यक्ति पलटने में नीतीश कुमार को टक्कर दे रहे हैं?
पलटूराम प्रो मैक्स!
जाने-माने अर्थशास्त्री और आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन एक बार से चर्चा का केंद्र बने हुए हैं, और इस बार भी गलत कारणों से। हाल में इनसे संबंधित दो पोस्ट वायरल हो रही हैं, जिनमें से एक में एक विडिओ में ये भारत जोड़ो यात्रा के दौरान, राहुल गांधी के सामने छाती ठोंककर भविष्यवाणी करते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था एक कठिन दौर का सामना करेगी, यह सुझाव देते हुए कि 2022 से 2023 के दौरान 5 प्रतिशत की विकास दर हासिल करना भी किसी चमत्कार से कम नहीं होगा।
हालांकि, वार्षिक विकास दर के लिए मौजूदा अनुमान अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों के अनुमान को पार करते हुए आश्चर्यजनक रूप से 7.2 प्रतिशत प्रकट करते हैं। राजन की भविष्यवाणी और भारतीय अर्थव्यवस्था के वास्तविक प्रदर्शन के बीच यह स्पष्ट अंतर देश की आर्थिक गतिशीलता की उनकी समझ और जिस आधार पर उन्होंने ऐसा दावा किया, उस पर सवाल खड़े करता है।
राजन का यही निराशावादी दृष्टिकोण भारतीय अर्थव्यवस्था की लचीलापन और क्षमता पर ही प्रश्नचिन्ह लगायत है। प्रगति को स्वीकार किए बिना संभावित चुनौतियों पर उनका दृष्टिकोण अनावश्यक घबराहट पैदा कर सकता है और निवेशकों के विश्वास को बाधित कर सकता है। संभावित जोखिमों के प्रति सावधान रहना महत्वपूर्ण है, भारतीय अर्थव्यवस्था द्वारा किए गए सकारात्मक कदमों को पहचानना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। संक्षेप में, ये भारत की प्रगति को मानबे नहीं करते!
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मोबाइल एक्सपोर्ट्स पर गजब की हिपोक्रेसी
परंतु ये तो मात्र प्रारंभ है। मोबाइल एक्सपोर्ट्स पर इनका व्यवहार आप जान ले, तो एक बार को कौशिक बसु इससे अधिक सयाना लगेगा। अतीत में, उन्होंने इस क्षेत्र में भारत की क्षमता के बारे में संदेह व्यक्त किया, वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने की क्षमता पर संदेह व्यक्त किया। हालाँकि, जब भारत ने वास्तव में मोबाइल निर्यात में उछाल का अनुभव किया और सफल घरेलू निर्माताओं के उद्भव को देखा है, राजन ने अब इन निर्यातों की गुणवत्ता के लिए अपनी चिंता को स्थानांतरित कर दिया है। कंट्रोल, कंट्रोल पांडे!
शायद इसीलिए कई विश्लेषकों का मानना है कि राजन की धुन में बदलाव उनके विचारों में सुसंगतता की कमी को दर्शाता है और एक आर्थिक विशेषज्ञ के रूप में उनकी विश्वसनीयता पर संदेह पैदा करता है। उनका तर्क है कि मोबाइल निर्यात में भारत की क्षमता के बारे में उनका पहले का संदेह गलत था, क्योंकि देश ने इस क्षेत्र में अपनी क्षमता और प्रतिस्पर्धा को साबित कर दिया है। विशेषज्ञों के लिए एक सुसंगत और अच्छी तरह से सूचित दृष्टिकोण होना आवश्यक है, जो जमीनी वास्तविकताओं के गहन विश्लेषण और समझ पर आधारित हो।
चाहते क्या है रघुराम राजन?
परंतु रघुराम राजन वास्तव में चाहते क्या है? ये किसी को नहीं समझ में आता! एक सीरीज़ के डायलॉग को paraphrase करें, तो “ये अर्थव्यवस्था को रिमोट कंट्रोल समझते हैं, जब देखो चैनल ही बदलते हैं। वृद्धि न हो तो कोसों, वृद्धि हो तो इस पैमाने पर कोसों, फिर संस्कृति पर प्रश्न उठाओ, और जब हर चीज़ इनके अनुसार हो, तो उसमें भी कमी निकालो!” शादी में बैठे नाराज़ फूफा से अधिक नखरे तो इनके हैं भैया!
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भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए रघुराम राजन की नकारात्मक भविष्यवाणी का वित्तीय वर्ष 2022-23 में 7.2 प्रतिशत की मजबूत जीडीपी विकास दर के साथ भारत की दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था होने की वर्तमान वास्तविकता के रूप में खंडन करती है। इनकी विसंगतियां ठोस सबूत या गहन विश्लेषण के बिना व्यक्तिगत इच्छाओं को भविष्यवाणियों के रूप में पेश करने के खतरे को उजागर करती हैं। वैचारिक पूर्वाग्रह और वस्तुनिष्ठ आर्थिक विश्लेषण के बीच अंतर करना महत्वपूर्ण है, और हमने तो अभी तक “विकास की हिंदू दर” के रूप में वर्तमान विकास के उनके लेजेंडरी विश्लेषण पर चर्चा भी नहीं की है।
रघुराम राजन के हाल के बयानों और भविष्यवाणियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था की उनकी समझ के बारे में विवाद और संदेह को प्रज्वलित किया है। उनकी भविष्यवाणियों और वास्तविक आर्थिक प्रदर्शन के बीच बेमेल, साथ ही मोबाइल निर्यात जैसे महत्वपूर्ण मामलों पर उनके असंगत विचार, उनके आकलन की विश्वसनीयता के बारे में चिंता पैदा करते हैं।
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