रूस-यूक्रेन जंग शुरू होने के बाद से यूरोप के साथ रूस का व्यापार कम हो गया है। ऐसे में मॉस्को ने भारत, चीन और मिडिल ईस्ट के देशों के साथ ट्रेड बढ़ाया है। अब रूस ऐसे इनफ्रास्ट्रक्चर पर काम कर रहा है, जिससे उसकी पश्चिमी देशों पर निर्भरता पूरी तरह से खत्म हो सके।
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इसका सबसे बड़ा हिस्सा है 14 हजार करोड़ का 165 किमी लंबा रेलमार्ग जो रूस को ईरान के पोर्ट से जोड़ेगा। इससे मॉस्को और सेंट पीटर्सबर्ग जैसे रूसी शहरों से मुंबई पहुंचना बेहद आसान हो जाएगा। रूस इस प्रोजेक्ट के लिए ईरान को करीब 11 हजार करोड़ का कर्ज भी दे रहा है।
यूक्रेन पर हमले के बाद रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों ने भारी प्रतिबंध लगा रखे हैं, जिसके चलते रूस की अर्थव्यवस्था पर भारी दबाव है। पश्चिमी प्रतिबंधों के दबाव को कम करने के लिए मॉस्को भारत और खाड़ी देशों के साथ अपने संबंधों को बढ़ाने के लिए अरबों का निवेश कर रहा है।
रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कहा कि नए मार्ग से कार्गो के लिए सेंट पीटर्सबर्ग से मुंबई की यात्रा का समय 30 से घटकर केवल 10 दिन रह जाएगा। रूसी अधिकारियों इसे एक क्रांतिकारी परियोजना बता रहे हैं जो स्वेज नहर को चुनौती देगी।
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2028 तक पूरा होगा रेलवे लाइन का काम
नई रेलवे लाइन ईरान के दो शहरों अस्तारा और रश्त को जोड़ने का काम करेगी। यह उत्तर में ईरान और अजरबैजान की पटरियों को जोड़ता हुआ रूस के रेलवे ग्रिड में मिलेगा। यह रेलवे लिंक 2028 तक पूरा होने की उम्मीद जताई जा रही है। यह रेलमार्ग 7200 किमी के इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर (INSTC) का हिस्सा है।
रेल रूट के जरिए रूसी व्यापारियों के लिए भारत के साथ ही सऊदी अरब, UAE और पाकिस्तान जैसे देशों तक पहुंचना आसान हो जाएगा। इसके अलावा यह रूस और चीन के बीच ट्रेडिंग रूट के भी नए विकल्प देगा।
रेल लाइन से रूस क्या हासिल करना चाहता है?
दशकों तक रूस के लिए यूरोप इकलौता सबसे बड़ा बाजार रहा है, लेकिन यूक्रेन पर हमले के बाद जारी पश्चिमी प्रतिबंधों ने इस स्थिति को बदल दिया है। इसके बाद से ही रूस ने व्यापार को बढ़ाने के लिए एशिया की तरफ नजरें की हैं, जिनमें भारत, चीन और ईरान उसकी खास लिस्ट में हैं।
ईरानी रेलवे प्रोजेक्ट में रूसी निवेश को इसी लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में उठाया गया कदम माना जा रहा है। कैस्पियन सागर से लगी इस लाइन के पूरा इस प्रोजेक्ट के पूरा होने से रूस को बाल्टिक सागर से ईरानी बंदरगाह तक कनेक्टिविटी मिल जाएगी जो आगे चलकर रूस की पहुंच को हिंद महासागर और गल्फ तक ले जाएगा।
दरअसल, प्रतिबंधों की मार झेल रहा रूस पश्चिम से दूर जाने के लिए रास्ता तलाश रहा है। ग्लोबल साउथ के साथ संबंध विकसित करना रूस की इस समय सबसे बड़ी प्राथमिकता है। नया ट्रेड लिंक रूस को अपना तेल और गैस दूसरे बाजार में पहुंचाने के लिए रास्ता देगा। इसके के साथ ही उन सामानों के आयात में भी मदद करेगा जिन्हें वो नहीं बना सकता है।
भारत के लिए क्यों है खास?
अंतरराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे की नींव साल 2002 में पड़ी थी, जब भारत, रूस और ईरान ने 7200 किलोमीटर लंबे मल्टी मोड ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर बनाने के लिए हस्ताक्षर किए थे। इस प्रोजेक्ट को आगे चलकर 10 और देशों अजरबैजान, बेलारूस, बुल्गारिया, आर्मेनिया, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, ओमान, ताजिकिस्तान, तुर्की और यूक्रेन ने भी सहमति दी।
इस कॉरिडोर का उद्येश्य रूस के बाल्टिक सागर पोर्ट को ईरान के जरिए अरब सागर में मौजूद भारत के पश्चिमी पोर्ट से जोड़ना था। हालांकि, विवादित परमाणु प्रोग्राम के चलते ईरान पर लगे प्रतिबंधों की वजह से पिछले कई सालों में इस प्रोजेक्ट में खास प्रगति नहीं हुई। आखिरकार, मई 2023 में रूस और ईरान ने रश्त-अस्तारा रेलवे लाइने के निर्माण के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए।
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, यह रेलवे लिंक रूस के लिए मुंबई जैसी जगहों तक पहुंच आसान बना देगा। रूसी राष्ट्रपति पुतिन ने पिछले साल कहा था कि INSTC रूस को भारत, ईरान, पाकिस्तान और खाड़ी देशों के लिए नए व्यापार मार्ग प्रदान करेगा।
वहीं, भारत ने चाबहार बंदरगाह को आईएनएसटीसी के साथ जोड़ने का प्रस्ताव दिया है जिसे वह ईरान के साथ विकसित कर रहा है। यह परियोजना भारत के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत अपनी लगभग 80 प्रतिशत ऊर्जा जरूरतों के लिए आयात पर निर्भर है। द हिंदू के अनुसार, यह गलियारा भारत की ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाएगा और मध्य एशिया के साथ देश के व्यापार को बढ़ावा दे सकता है।
भारत-रूस के बीच कारोबार का रूट
भारत और रूस के बीच कारोबार के लिए अभी पुराना रूट इस्तेमाल किया जा रहा है, जो स्वेज नहर से होकर गुजरता है। लेकिन INSTC के बनने से दोनों देशों के बीच एक नया रूट मिल जाएगा। इस रूट के जरिए मुंबई से ईरान के पोर्ट अब्बास, तेहरान, रास्त, अस्तारा होते हुए अजरबैजान तक जाया जाएगा। अजरबैजान के बाकू, अस्त्राखान होते हुए रूस में एंट्री होगी।
INSTC से क्या होगा फायदा
इस कॉरिडोर के पूरा होने के बाद समय की बचत और माल ढुलाई की लागत कम होगी। इसको एक उदाहरण से समझा जा सकता है। अभी मुंबई से मॉस्को तक माल की ढुलाई के लिए 14 हजार किलोमीटर का सफर तय करना पड़ा रहा है। ये रास्ता स्वेज नहर से होकर जाता है।
इसमें अभी 45 दिन का समय लगता है। लेकिन INSTC से माल भेजने में सिर्फ 10 दिन का समय लगेगा। इतना ही नहीं, नए रूट के पूरा होने के बाद हूती विद्रोहियों का खतरा भी कम होगा। स्वेज नहर के रास्ते कारोबार करने में हूती विद्रोहियों का खतरा रहता है।
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