महाराष्ट्र के संस्कृति मंत्री सुधीर मुनगंटीवार ने हाल ही में घोषणा की कि छत्रपति शिवाजी महाराज द्वारा इस्तेमाल किया गया ऐतिहासिक ‘वाघ नख‘ अब भारत वापस लाया गया है। यह हथियार लंदन के एक संग्रहालय से मुंबई लाया गया है। ‘वाघ नख’ अब पश्चिमी महाराष्ट्र के सतारा में प्रदर्शित किया जाएगा। यह घटना भारतीय इतिहास के महत्वपूर्ण क्षणों में से एक है और महाराष्ट्र के लोगों के लिए गर्व का विषय है।
वाघ नख का ऐतिहासिक महत्व
‘वाघ नख’ एक बाघ के पंजे के आकार का हथियार है, जिसका उपयोग छत्रपति शिवाजी महाराज ने 1659 में बीजापुर सल्तनत के जनरल अफजल खान को मारने के लिए किया था। यह हथियार मराठा साम्राज्य की वीरता और छत्रपति शिवाजी महाराज की युद्ध कौशल का प्रतीक है। ‘वाघ नख’ की वापसी मराठा इतिहास के उस स्वर्णिम युग की याद दिलाती है जब शिवाजी महाराज ने अपने शौर्य और रणनीति से दुश्मनों को पराजित किया था।
सतारा में भव्य स्वागत
महाराष्ट्र के राज्य उत्पाद शुल्क मंत्री शंभुराज देसाई ने घोषणा की कि सतारा में ‘वाघ नख’ का भव्य स्वागत किया जाएगा। यह हथियार 19 जुलाई को लंदन संग्रहालय से शाहूनगरी (सतारा) लाया जाएगा और इसे सात महीने तक सतारा के संग्रहालय में रखा जाएगा। इस दौरान, सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए गए हैं और इसे बुलेटप्रूफ कवर में रखा जाएगा।
लंदन से भारत तक की यात्रा
मुनगंटीवार ने विधान सभा में जानकारी दी कि ‘वाघ नख’ को लंदन के विक्टोरिया और अल्बर्ट संग्रहालय से महाराष्ट्र लाने के लिए सरकार ने कई प्रयास किए। इसके लिए कुल 14.08 लाख रुपये का खर्च आया। हालांकि, प्रारंभिक समझौते में हथियार को केवल एक वर्ष के लिए देने की बात थी, लेकिन महाराष्ट्र सरकार ने इसे तीन वर्षों के लिए लाने में सफलता प्राप्त की।
विवाद और स्पष्टीकरण
हाल ही में एक इतिहासकार ने दावा किया कि ‘वाघ नख’ पहले से ही सतारा में था, जिसके बाद मुनगंटीवार ने स्पष्ट किया कि सरकार ने इस हथियार को लाने के लिए करोड़ों रुपये खर्च नहीं किए। यह एक ऐतिहासिक वस्तु है और इसे भारत लाने में सफलता हासिल करना गर्व की बात है।
निष्कर्ष
छत्रपति शिवाजी महाराज का ‘वाघ नख’ न केवल एक ऐतिहासिक हथियार है बल्कि यह मराठा साम्राज्य की वीरता और शौर्य का प्रतीक भी है। इसे सतारा में लाकर प्रदर्शित करना महाराष्ट्र के लोगों के लिए गर्व का क्षण है। यह वापसी न केवल भारतीय इतिहास के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा का स्रोत भी बनेगी। यह घटना भारत और ब्रिटेन के बीच सांस्कृतिक धरोहरों के आदान-प्रदान के महत्व को भी रेखांकित करती है।
और पढ़ें:- अयोध्या की तरह विकसित होगा अरुणाचल प्रदेश का परशुराम कुंड।