चीन हमेशा से ही विस्तारवादी नीति का समर्थक रहा है। उसे जब, जहाँ और जैसे भी मौका मिला उसने अपने पड़ोसी देशों की जमीनों पर बेतहाशा कब्ज़ा किया है। इसी कड़ी में आगे बढ़ते हुए चीन ने भूटान की जमीन पर कब्जा कर वहां अपने 22 गांव बसा दिए हैं। इसमें 3 छोटी बस्तियां भी शामिल हैं।
तिब्बती विश्लेषकों के नेटवर्क ‘टर्कुइज़ रूफ’ ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस रिपोर्ट में, बताया गया है कि चीन ने भूटान की सीमा में जिन 22 गांवों को बसाया है, उनमें से 7 गांवों को बसाने का काम उसने 2023 में शुरू किया था। अब चीन इन 22 गांवों में से 3 को कस्बे के रूप में बसाने की योजना बना रहा है।
रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि सैटेलाइट से प्राप्त इमेज से पता चला है कि चीन द्वारा बसाए गए इन गांवों और बस्तियों में लगभग 752 आवासीय ब्लॉक हैं। इसमें करीब 2284 घर बनाए गए हैं। इन घरों में रहने यानी गांव बसाने के लिए चीन ने यहां 7000 लोगों को स्थानांतरित किया है। साथ ही बड़ी संख्या में अधिकारियों, मजदूरों, पुलिस और सेना को भी यहां भेज रहा है।
इन गांवों को बसाने के जरिए चीन भूटान की लगभग 825 वर्ग किलोमीटर भूमि पर कब्ज़ा कर लिया है। चीन का भूटान में इस तरह से कब्जा न केवल भूटान की संप्रभुता पर खतरे की तरह है बल्कि भारत के दृष्टिकोण से भी बेहद खतरनाक है। दरअसल, चीन भूटान के पश्चिमी क्षेत्र पर कब्ज़ा करना चाहता है। इस कब्जे की वजह डोकलाम का पठार है।
भूटान के पश्चिमी क्षेत्र पर कब्जे करने यानी डोकलाम तक पहुंच के बाद चीन भारत के खिलाफ रणनीतिक रूप से काफी मजबूत हो जाएगा। इसके अलावा चीन भूटान की राजधानी थिम्फू में अपना दूतावास बनाने की भी प्लानिंग कर रहा है। उल्लेखनीय है कि भूटान की सेना में करीब 8000 जवान ही हैं। चीन की तुलना में देखें तो भूटान की सेना बौनी दिखाई देती है। ऐसे में पूरे भूटान पर कब्जा करना चीन के लिए और भी आसान हो जाएगा।
गौरतलब है कि भूटान पहला देश नहीं है जिसकी जमीन पर चीन ने कब्जा किया हो। आज चीन की सीमा भले ही 14 देशों को छूती है लेकिन उसने 23 देशों के जमीनी या समुद्री क्षेत्रों पर अपना कब्जा ज़ाहिर किया हुआ है।
चीन के विस्तारवादी होने का अंदाज़ा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि चीन अब तक 4100000 वर्ग किमी से अधिक के भू-भाग पर ज़बरन कब्ज़ा कर चुका है, जो कि उसके वास्तविक क्षेत्रफल के 50 फीसद के आसपास है। चीन के नक्शे में देखें तो 6 देश पूर्वी तुर्किस्तान, तिब्बत, इनर मंगोलिया या दक्षिणी मंगोलिया, ताइवान, हॉन्गकॉन्ग और मकाउ नजर आते हैं। ये वो देश हैं, जिन पर चीन ने कब्जा कर रखा है या इन्हें अपना हिस्सा बताता है।
चीन अपनी विस्तारवादी नीति को और मजबूत करने तथा अपने क्षेत्रफल को बढ़ाने के लिए एक ऐसी रणनीति तैयार कर चुका है जिसके जाल में 150 से अधिक देश फस चुके हैं। जबकि अभी न जाने और कितने ही देशों को वह लालच की रोटियां दिखा रहा होगा।
चीन की यह रणनीति है ‘डेट ट्रैप’ यानी ‘कर्ज़ और कब्ज़ा’। ‘डेट ट्रैप’ ठीक उसी प्रकार कार्य करता है जैसे कि कोई साहूकार। यहां साहूकार का ज़िक्र इसलिए करना पड़ रहा है क्योंकि चीन एक सोची समझी रणनीति के तहत विकासशील देशों को पहले विकास का झूठा आइना दिखाता है और फिर परियोजनाओं को साकार करने के लिए देशों को ऊंचे ब्याज दरों पर ऋण अर्थात कर्जा देता है। जब वे देश चीन के कर्ज का भुगतान नहीं कर पाते हैं तो चीन साहूकार की ही तरह उन देशों की जमीनों व संपत्तियों पर कब्ज़ा कर लेता है। ऐसे देशों की एक लंबी सूची है, जिन्होंने इस तरह की परियोजनाओं के लिए चीन से महंगा कर्ज लिया है और वे इसका भुगतान नहीं कर पा रहे हैं।
टीएफआई से हुई बातचीत में राजनीतिक विश्लेषक और प्रोफेसर एस. पी. माझी ने कहा है, “जो भी देश चीन से कर्ज ले रहे हैं उनकी हालत या तो गंभीर हो गई है या आने वालों वर्षों में हो गंभीर हो जाएगी। भारत का इस तरह की चीनी रणनीति के पक्ष में न होना, भारत की दूरदर्शिता को दर्शाता है। पिछला इतिहास देखें तो चीन किसी भी देश को विकास के नाम पर कर्ज में इस हद तक फसा देता है कि वह उस कर्ज़ से कभी मुक्त ही न हो सके। चीन अपने प्रभुत्व के विस्तार हेतु कर्ज बांटकर कब्जा करने की रणनीति के जरिये एक ऐसा अंतरराष्ट्रीय नेटवर्क तैयार कर रहा है जिसमें सिर्फ़ उसकी ही बात सुनी और मानी जाए।”
यहां यह समझना आवश्यक है कि जिस डेट ट्रैप की हम बात कर रहे हैं, उसे यदि डेट ट्रैप डिप्लोमेसी यानि कूटनीति कहा जाए तो गलत नही होगा। चीन जो भी कर रहा है वह प्लानिंग के साथ कर रहा है। यानी वह योजनाबद्ध तरीके से सारे काम कर रहा है। यदि वह किसी देश को कर्ज दे रहा है तो वह उसकी भौगोलिक और राजनीतिक दोनों ही स्थितियों को ध्यान में रखता है साथ ही आने वाले कई सालों तक कि प्लानिंग भी वह तैयार करके रखता है।
चीन विकास के नाम पर कब्जे की रणनीति दुनिया के लिए एक अनदेखा खतरा बनता जा रहा है। चीन का कर्ज़ जाल न केवल एशिया में बल्कि दक्षिण अमेरिका व अफ़्रीका तक लगातार बढ़ रहा है।
यदि बात एशिया की करें तो भारत को घेरने की नीति के तहत चीन पड़ोसी देशों में विकास के नाम पर कर्ज़ देकर अपनी पैठ मजबूत कर रहा है। चीन ने अपने पड़ोसी देशों की पहले मदद की और फिर उसके बाद ‘डेट ट्रैप’ रणनीति के तहत कब्जे की कार्यवाही शुरू की।
पहले कर्ज़ और फिर कब्ज़ा की चीनी रणनीति के शिकार श्रीलंका को कम्युनिस्ट चीन ने पहले मुंह मांगा कर्ज़ दिया और फ़िर जब कर्ज़ इतना बढ़ गया कि श्रीलंका उस कर्ज़ को चुका पाने में असमर्थ हो गया तब चाइना ने श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह और उसके चारों ओर की 1500 एकड़ जमीन पर चीन ने कब्जा कर लिया।
पाकिस्तान की बात करें तो वहां भी हालात अच्छे नहीं हैं। ट्रेंडिंग इकोनॉमिक्स की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान का कर्ज उसकी GDP का 82% से अधिक हो गया है, जिसमें क़रीब 40 फ़ीसदी कर्ज़ चीन का है। एक अनुमान के अनुसार, पाकिस्तान को केवल चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (सीपीईसी) से जुड़ी योजनाओं के बदले में अगले दो तीन सालों में चीन को 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का भुगतान करना होगा। पाकिस्तान की मौजूदा हालत देखें तो यह असंभव लगता है। पाकिस्तान अब तक अपने दो प्रमुख द्वीपों और एक महत्वपूर्ण खनन परियोजना चीन को दे चुका है। यही नहीं, वह समूचे ग्वादर टाउनशिप, ग्वादर पोर्ट और कुछ अन्य स्थानों को चीन को सौंपने की प्रक्रिया में है।
यदि ताजिकिस्तान का हाल देखें तो पता चलता है कि चीन ताजिकिस्तान की क़रीब 1000 वर्ग किमी ज़मीन पर कब्जा कर चुका है। इसके अलावा चीन ताजिकिस्तान में सैन्य अड्डे भी बनाता जा रहा है।
पूर्वोत्तर की ओर नज़र घुमाएं तो लाओस की स्थिति भी ठीक नही है। जब लाओस अपनी अर्थव्यवस्था के बुरे दौर से गुज़र रहा था तब चीन ने महंगे कर्ज की पेशकश की। इसके बाद जब लाओस कर्ज़ वापस करने में असमर्थ रहा तो चीन ने उसके पूरे इलेक्ट्रिक सिस्टम को अपने कंट्रोल में ले लिया। आज लाओस में पूरा इलेक्ट्रिक सिस्टम चीन के हाथ मे है और लाओस की सरकार पूरी तरह बेबस है।
यदि एशिया के अतिरिक्त अफ्रीका की बात करें तो अफ्रीका का छोटा सा देश जिबूती लगातार विदेशी सेनाओं के केन्द्र में रहा है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार जिबूती पर कुल कर्ज़ उसकी जीडीपी का करीब 80 फ़ीसदी हो गया है, जिसमें अधिकांश कर्ज़ चीन का है। चूंकि जिबूती कम आय वाला देश है इसलिए वह कर्ज़ वापसी नही कर सका और अब हालात ऐसे हैं कि चाइना वहां सैन्य अड्डा बना चुका है। इसके अलावा अन्य कब्जे करने की भी फ़िराक़ में है।
एक और अफ्रीकी देश जिम्बाब्वे भी चीनी कर्ज़ में दबा हुआ है। ज़िम्बाब्वे अपनी आज़ादी के बाद अब देश अपने बुरे दौर से गुजर रहा है। ज़िम्बाब्वे सर से पैर तक चीनी कर्ज़ में डूबा हुआ है, और चीनी कर्ज़ जाल में फँसने के कारण अब यह देश चाहकर भी चीन के हितों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं ले सकता। जिम्बाब्वे की बर्बादी की कहानी वहां की सरकार की चीन की कम्युनिस्ट सरकार के साथ बढ़ती नज़दीकियों साथ ही शुरू हो गई थी। शुरुआत में तो सब कुछ ठीक चल रहा था, चाइना द्वारा लगातार सड़क और रेल परिवहन का निर्माण किया जा रहा था। कुछ स्थानों पर माइनिंग के लॉट भी चीनी सरकार को दे दिए गए इस सबका जिम्बाब्वे के लोग लगातार विरोध कर रहे थे। लेकिन तब सरकार ने रोक लगाने का प्रयास नही किया और अब हालात ये हैं कि कर्ज़ के बोझ तले किसी भी रोक लगाई नही जा सकती।
ये तो महज़ कुछ देशों का उदाहरण है जबकि सच्चाई यह है कि कम्युनिस्ट चीन की ‘डेट ट्रैप’ कूटनीति में फसे सभी देशों के हालात लगातार बदतर होते जा रहे हैं। कुछ स्थानों पर चीन ने कब्जा करना शुरू किया है तो कुछ पर करने वाला है। यदि यह सब ऐसे ही चलता रहा तो वह दिन दूर नही जब दुनिया के दर्जन भर से अधिक देश चीनी औपनिवेशिक राष्ट्र कहलाने लगेंगें और वहां स्थापित अपने सैन्य अड्डों से तानाशाह चीन दुनिया भर की राजनीति को नियंत्रित करेगा।