करीब 1 महीने पहले जब दिल्ली में आम आदमी पार्टी (AAP) और कांग्रेस के बीच गठबंधन की खबरें आई थीं तो दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और AAP के संयोजक केजरीवाल ने इसे सिरे से खारिज कर दिया था। 1998 से 2013 तक लगातार दिल्ली में सत्ता में रही कांग्रेस 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में एक भी सीट नहीं जीत सकी थी। 70 सीटों वाली दिल्ली विधानसभा में केजरीवाल को कांग्रेस को 10-15 सीट देने में अपना घाटा ही नज़र आ रहा था। दिल्ली में बड़े बहुमत के साथ 10 वर्षों से सत्ता चला रही AAP को लग रहा था कि वो इस बार भी दिल्ली में एक तरफा जीत हासिल कर लेगी, पिछले कई दिनों से कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व भी इन चुनावों में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रहा था और कांग्रेस की ओर से संदीप दीक्षित ही केजरीवाल से सीधा मुकाबला कर रहे थे।
दिल्ली में AAP vs कांग्रेस
लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने सोमवार (13 जनवरी) को दिल्ली के सीलमपुर में चुनावी रैली कर अपने अभियान का शंखनाद कर दिया है। इस रैली में राहुल गांधी ने केजरीवाल पर जमकर हमला बोला और उन्हें दलित व आरक्षण विरोधी बताया है। राहुल ने केजरीवाल को लेकर एक ट्वीट में कहा, “जैसे मोदी जी एक के बाद एक झूठे वादे और प्रचार करते हैं, वही रणनीति केजरीवाल जी की भी है – कोई फर्क नहीं है!” अरविंद ने राहुल गांधी को जवाब देते हुए कहा, “आज राहुल गांधी जी दिल्ली आए। उन्होंने मुझे बहुत गालियां दीं। पर मैं उनके बयानों पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा। उनकी लड़ाई कांग्रेस बचाने की है, मेरी लड़ाई देश बचाने की है।” इन चुनावों में कांग्रेस की एंट्री ने लड़ाई को दिलचस्प बना दिया है और इसमें बीजेपी को अपना सबसे ज़्यादा फायदा नज़र आ रहा है।
कैसे BJP को होगा AAP-कांग्रेस की लड़ाई का फायदा?
AAP के सत्ता में आने का सबसे बड़ा अगर किसी ने भुगता है तो वो कांग्रेस ही है। एक समय तक दिल्ली में करीब 40 प्रतिशत वोट पाने वाली कांग्रेस का वोट शेयर पिछले विधानसभा चुनावों में 5 प्रतिशत से भी नीचे चला गया था। कांग्रेस को 2015 और 2020 के विधानसभा चुनावों में क्रमश: 9.7 प्रतिशत और 4.26 प्रतिशत ही वोट मिले थे। अब कांग्रेस के सामने अपने पुराने वोट बैंक को पाने की चुनौती है और अगर ऐसा होता है तो सबसे ज़्यादा फायदा बीजेपी को ही होगा।
दिल्ली में करीब 13 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं और करीब दर्जन भर सीटों पर उनकी तादाद निर्णायक स्थिति लायक है। ऐसे में राहुल गांधी का 2020 के दिल्ली दंगों के केंद्र में रहे सीलमपुर से चुनावी रैली की शुरुआत करना मुस्लिम मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश है। मुस्लिमों मतदाता लंबे समय से ऐसे प्रत्याशी को वोट देते आएं हैं जो बीजेपी को हराने की स्थिति में हो। लेकिन पिछेल कुछ समय में मुस्लिम मतदाता कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हुए हैं क्योंकि राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस ही बीजेपी के विकल्प के तौर पर नज़र आ रही है। ऐसे में अगर मुस्लिम मतदाता कांग्रेस के खेमे में गोलबंद होते हैं और कांग्रेस अपनी पुराना वोट कुछ हद तक पाने में सफल भी होती है तो बीजेपी के लिए सरकार बनाने के रास्ते खुल सकते हैं।
कांग्रेस के लिए क्यों ज़रूरी है AAP का मुकाबला?
कांग्रेस को ना सिर्फ दिल्ली बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी खोई साख को वापस पाने की चुनौती है और AAP ही उसकी राह में सबसे बड़ा रोड़ा है। बीजेपी को छोड़ दें तो AAP की इकलौती ऐसी पार्टी है जिसने पिछले 10-12 वर्षों में कांग्रेस को एक से अधिक राज्यों में कड़ी चुनौती दी है। AAP ने कांग्रेस को दिल्ली और पंजाब को सत्ता से बाहर कर दिया है। और इन दोनों जगहों पर ही AAP ने विधानसभा चुनावों में बड़ी जीत दर्ज की है।
कांग्रेस के लिए AAP का विरोध केवल दिल्ली या पंजाब तक सीमित नहीं है बल्कि यह पार्टी अब एक राष्ट्रीय ताकत के रूप में उभरकर सामने आ रही है, अलग-अलग राज्यों में AAP अपनी स्थिति को मज़बूत कर रही है। ऐसे में राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को टक्कर देने की स्थिति में अन्य सभी विपक्षी दलों के मुकाबले AAP की स्थिति ज़्यादा मज़बूत है। राहुल गांधी ने जिस तरह केजरीवाल पर तीखा हमला किया है उससे अब लग रहा है कि कांग्रेस, AAP को अपने चैलेंजर के रूप में देख रही है।