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भारत-बांग्लादेश संबंध: दोनों देशों के लिए कितना अहम है जल समझौता?

पानी के विवाद जैसे पड़ोसी देशों से होंगे, वो अन्य विवादों को भी हवा देंगे और बांग्लादेश की कट्टरपंथी ताकतें भी इस असंतोष को अपने पक्ष में भुनाने का पूरा प्रयास करेंगे ही

Anand Kumar द्वारा Anand Kumar
21 January 2025
in विश्व
भारत और बांग्लादेश के बीच 54 नदियों का पानी साझा है

भारत और बांग्लादेश के बीच 54 नदियों का पानी साझा है

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जब दिसम्बर 1971 में दुनिया के नक़्शे पर एक नया मुल्क ‘बांग्लादेश’ बनकर उभरा, तो भारत ने उसे केवल पहचान के मामले में ही नहीं, आर्थिक और संसाधनों के स्तर पर भी मदद देनी शुरू की। इसका नतीजा हुआ इस क्षेत्र में पानी सम्बंधित कई समझौते। भारत और बांग्लादेश के बीच 54 नदियों का पानी साझा है तो जाहिर है समझौतों की ज़रूरत थी। फरक्का बांध से भागीरथी-हुगली नदियों में जो पानी का बंटवारा होता, वो करीब दो दशक तक विवादों की वजह बना रहा। इसे सुलझाने की कोशिशों की शुरुआत 1977 में हुए एक पांच वर्ष के समझौते से हुए और फिर मई 1982 और 1985 में छोटे दौर के लिए दो समझौते और भी हुए।

अंततः जब दिसम्बर 1996 में समझौता हुआ तो वो गंगा के पानी के दोनों देशों में बंटवारे के लिए तीस वर्षों का था, और इससे जल समझौतों के मामले में थोड़ी स्थिरता आई थी। जाहिर सी बात है कि गंगा इकलौती नदी नहीं जो भारत से बांग्लादेश जाती है, इसलिए समझौते और भी हुए थे। ऐसे विवादों में एक था 1979 का तीस्ता जल विवाद जिसे एक अस्थाई समझौते के जरिये 1983 में निपटने की कोशिश की गयी। फिर 1984 में एक संयुक्त नदी जल कमीशन भी बना।

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इस दौर तक पश्चिम बंगाल में भी सरकारें बदल रही थीं और बांग्लादेश में भी स्थितियां राजनैतिक हलचलों की ही थी। इसके कारण 1997 से 2004 के बीच की संयुक्त तकनीकी दलों की बैठकों का कोई ख़ास नतीजा नहीं निकला था। जब 2004 में एक जॉइंट टेक्निकल ग्रुप बनाया गया तो पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री की सहमती नहीं बनी। फिर डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेसी सरकार को भी 2011 में ममता बनर्जी के विरोध के कारण तीस्ता समझौते को ताक पर रखना पड़ा है।

फरक्का बांध जब 1974 में बना तो सीमा से करीब दस किलोमीटर दूर इसका निर्माण जल संसाधनों, सिंचाई और बाढ़ जैसी समस्याओं को सुलझाने के लिए हुआ था। भारत के हित भी इस बांध से जुड़े थे। कोलकाता के बंदरगाह पर सिल्ट जमने के कारण उसके समाप्त होने का खतरा था और जाड़े के मौसम में जब पानी कम होता तो एक 40 किलोमीटर लम्बी फीडर कैनाल के जरिये उसतक पानी पहुँचता। इससे भारत के करीब 13 राज्यों की अर्थव्यवस्था पर प्रभाव पड़ता है।

भारत और बांग्लादेश दोनों ही जगह सरकारें 1996 में बदलीं तो 12 दिसम्बर 1996 को दोनों देशों में गंगा जल बंटवारे की संधि हो पाई। ये संधि तीस वर्षों के लिए थी और अब इसका समय समाप्त होने ही वाला है। फिलहाल भारत-बांग्लादेश समझौते में 70 हजार क्यूसेक तक पानी आने पर भारत बांग्लादेश दोनों को 35-35 हजार क्यूसेक पानी मिलता है। अगर 70 से 75 हजार क्यूसेक पानी आये तो 35 हजार क्यूसेक बांग्लादेश को और शेष प्रवाह भारत को मिलता है। जब 75 हजार से अधिक पानी आता है तो 40 हजार क्यूसेक भारत को और शेष प्रवाह बांग्लादेश जाता है। इस संधि की तीस वर्षों बाद समीक्षा होनी थी और ये समयसीमा 2026 में पूरी होगी। इसलिए दोनों देशों की तकनीकी वार्ता शुरू होने वाली है।

इसमें बिहार का पक्ष कहाँ है?

बिहार में प्रवेश के समय बक्सर के चौसा में 14-15 हजार क्यूसेक पानी गंगा में आता है। बिहार में सोन, पुनपुन, गंडक, घाघरा, बूढी गंडक, कोसी, बागमती, और महानंदा नदियाँ गंगा में मिलती हैं। बिहार से बाहर जाते समय भागलपुर के पीरपैंति में 52-55 हजार क्यूसेक पानी गंगा से निकलता है। यानी बिहार में जितना पानी आता है, उससे कहीं अधिक निकल रहा है। कृषि प्रधान राज्य बिहार एक ओर उत्तर में कोसी आदि नदियों में बाढ़ का असर झेलता है तो दूसरी तरफ दक्षिणी बिहार अक्सर सूखे की चपेट में आता रहता है।

फरक्का बराज पहले से ही यहाँ एक बड़े विवाद का कारण हिया। बिहार के जल संसाधन मंत्री कह चुके हैं कि बिहार जो 1996 से ही इस समझौते की समीक्षा की मांग कर रहा है, उसे उस दौर में एचडी देवेगौड़ा की सरकार ने अनसुना कर दिया था। सीधी सी बात है कि समझौते में उन सभी राज्यों की हिस्सेदारी होनी चाहिए जहां से गंगा बहती है। अभी जो बंटवारे की शर्तें हैं, उसमें तो स्पष्ट ही ऐसा दिख रहा है कि बांग्लादेश को गंगा से मिल रहे पानी की ज्यादातर आपूर्ति बिहार कर रहा है। अन्य राज्यों की हिस्सेदारी कहाँ गयी पता नहीं।

दोनों देशों का पक्ष

गंगा जल समझौता कोई इकलौता मामला नहीं है जिसपर विवाद है। ब्रह्मपुत्र और तीस्ता नदियों से जुड़े विवादों को भी इसमें जोड़ा जाना चाहिए। फरक्का बराज को लेकर बांग्लादेश की एक शिकायत ये रही है कि उसे न्यूनतम कितना पानी मिलेगा, ये तय ही नही है। ये पूरी तरह से भारत पर निर्भर है। अगर पानी का स्तर फरक्का पर 1145 मीटर क्यूब प्रति सेकंड से कम हो गया तो किसे कितना पानी मिलेगा, ये तय नहीं हुआ है। आपसी विवादों को सुलझाने के लिए भी इस समझौते में कोई तरीका तय नहीं किया गया था। सूखे के मौसम में पानी की आपूर्ति कैसे कितनी हो, ये भी गंगा जल समझौते में तय नहीं हुआ था।

भारत के पक्ष की दिक्कत ये है कि कोलकाता बंदरगाह और फरक्का के नेशनल थर्मल पॉवर कारपोरेशन के लिए उसे पूरा पानी नहीं मिलता। इसके अलावा पानी से ही जुड़ा तीस्ता नदी का मसला भी है। जब पश्चिम बंगाल सरकार ने तीस्ता नदी पर बराज बनाने 1979 में शुरू किये तो रंगपुर इलाके के जो धान की खेती करने वाले बांग्लादेश के हिस्से थे, उनके हितों के लिए बांग्लादेश ने आपत्ति की। इसे सुलझाने के लिए 1983 में एक अस्थाई समझौता हुआ। मौजूदा माहौल देखा जाये तो भारत के उत्तरपूर्व से जुड़े सामरिक हितों के कारण बांग्लादेश से भारत के सम्बन्ध महत्वपूर्ण हो जाते हैं।

हाल में जो राजनैतिक बदलाव बांग्लादेश में हुए हैं और उसके बाद से वहाँ अल्पसंख्यकों (हिन्दुओं) के साथ जैसा व्यवहार हो रहा है, वो भी भारत-बांग्लादेश संबंधों पर असर डालता है। पानी के विवाद जैसे पड़ोसी देशों से होंगे, वो अन्य विवादों को भी हवा देंगे और बांग्लादेश की कट्टरपंथी ताकतें भी इस असंतोष को अपने पक्ष में भुनाने का पूरा प्रयास करेंगे ही। ऐसे में जल समझौतों से जुड़े मुद्दों को निपटाना भारत के लिए एक नयी चुनौती होगी।

स्रोत: भारत, बांग्लादेश, जल समझौता, बिहार, गंगा, नरेंद्र मोदी, मोहम्मद यूनुस, India, Bangladesh, Water Treaty, Bihar, Ganga, Narendra Modi, Mohammad Yunus,
Tags: BangladeshBiharGangaIndiaMohammad YunusNarendra ModiWater Treatyगंगाजल समझौतानरेंद्र मोदीबांग्लादेशबिहारभारतमोहम्मद यूनुस
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