विश्व हिंदू परिषद के 8 दिसंबर 2024 के कार्यक्रम में दिए गए अपने संबोधन को लेकर इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर यादव ने माफी मांगने से साफ इनकार किया है। उन्होंने इस मुद्दे पर हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को पत्र लिखकर बताया कि उनका बयान पूरी तरह से न्यायिक नियमों के दायरे में था।
जस्टिस शेखर कुमार यादव ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस को लिखा पत्र
जस्टिस शेखर यादव ने 17 दिसंबर, 2024 को सुप्रीम कोर्ट के कोलेजियम की बैठक के बाद एक पत्र भेजकर साफ किया कि उन्होंने अपने बयान के लिए माफी नहीं मांगी है और वह अपने शब्दों पर कायम हैं। इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस शेखर कुमार यादव ने यह स्पष्ट किया कि उनका बयान किसी भी न्यायिक आचरण का उल्लंघन नहीं था और यह सिर्फ उनकी व्यक्तिगत राय और विचारों की अभिव्यक्ति थी।
रिपोर्ट्स के अनुसार, जस्टिस यादव ने कहा कि उनका बयान गलत तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है और इसे राजनीतिक एजेंडे के तहत तोड़ा-मोड़ा गया है। उन्होंने इस बात की भी मांग की कि न्यायपालिका को उनके जैसे न्यायाधीशों का समर्थन करना चाहिए, क्योंकि वह बिना किसी दबाव के सही और सच्ची बातें कहने में विश्वास रखते हैं। उन्होंने कहा कि उनका संबोधन संविधान द्वारा निर्धारित मूल्यों के अनुरूप था और इसका उद्देश्य किसी भी धार्मिक समुदाय के खिलाफ घृणा फैलाना नहीं था। हालांकि, कुछ लोग इसे एक विवाद का रूप देने की कोशिश कर रहे हैं।
हालांकि TFI का सवाल अब भी वही है कि जब कोई न्यायाधीश समाज में फैली कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाता है, तो उसे क्यों निशाना बनाया जाता है, जबकि जब सुप्रीम कोर्ट का एक जज अपने व्यक्तिगत विश्वास के आधार पर किसी विदेशी धर्म से जुड़ी किताबों को न्याय का आधार मानता है, तो उस पर कोई सवाल नहीं उठाया जाता? जस्टिस R भानुमति, जिन्होंने हिंदू होते हुए भी जीसस क्राइस्ट को अपनी सफलता का श्रेय दिया था, लेकिन उनके खिलाफ कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई।