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किसानों के बड़े हितैषी, शिक्षाविद, समानता के प्रणेता परन्तु इतिहासकारों ने किया इतिहास से गायब

Shubham Upadhyay द्वारा Shubham Upadhyay
24 September 2017
in इतिहास
महाराजा हरि सिंह जम्मू कश्मीर

Image : NDTV

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भारत देश की भूमि में अनेकों महानायको ने जन्म लिया है। महान समाजसुधारक, धर्म प्रवर्तक, योद्धा, साधु, संत, सन्यासी, क्रांतिकारी, देशप्रेमी, राष्ट्रवादी तरह के तमाम नायकों ने इस पवित्र भूमि को अपने अपने रक्त और कर्म से सींचा है। बहुत से ऐसे गुमनाम नायक रहें हैं जिनके साथ कभी इतिहास और इतिहास निर्माताओं ने न्याय नहीं किया। चाटूकार इतिहासकारों को गांधी-नेहरु परिवार के अलावा देश में कोई महानायक और देशभक्त नहीं दिखा था। भारत की भूमि में ऐसे ही एक महनायक महाराजा हरि सिंह का जन्म 23 सितम्बर 1895 को हुआ था।

1925 में यही हरि सिंह महाराजा हरि सिंह बनकर जम्मू कश्मीर रियासत के सबसे लोकप्रिय राजा बने। भारत के इतिहास में महाराजा हरि सिंह को हमेशा अनदेखा किया गया। महाराजा हरि सिंह ही वो व्यक्तिव है जिनकी वजह से आज जम्मू कश्मीर भारत का हिस्सा है। आज हम जिस हक़ से “कश्मीर हमारा है”, और “कश्मीर माँगोगे तो चीर देंगे” कहते है वो महाराजा हरि सिंह के बिना सम्भव नहीं था। महाराजा हरि सिंह ने ही ब्रिटिश इंडिया के विभाजन के समय भारत के साथ विलय प्रपत्र में हस्ताक्षर कर जम्मू कश्मीर रियासत को भारत में विलय किया था। महान समाज सुधारक और भारत के प्रति पूरी निष्ठा रखने वाले देशभक्त महाराजा हरि सिंह एक ऐसे महापुरुष हैं जिनके साथ कभी उचित न्याय नहीं हुआ। अपनी वीरता और बुद्धि बल के दम पर हरि सिंह मात्र 20 वर्ष में ही जम्मू कश्मीर सियासत के मुख्य सेनापति नियुक्त हो चुके थे।

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महाराजा हरि सिंह गांधी से बड़े किसान नेता थे :

भारत किसानों का देश है, कृषि भारत की आत्मा है। भारत में महात्मा गांधी को ग्रामीणों और किसानों के बड़े नेता के रूप में स्मरण किया जाता है, इतिहासकारों ने तो ऐसा पढ़ाया है कि जैसे गांधी से बड़ा कभी कोई किसानों का हमदर्द इस देश में पैदा ही नहीं हुआ। इसी वैचारिक चटुकारिता के चलते महाराजा हरि सिंह जैसे नायकों के बारे में कभी बताया ही नहीं गया। महाराजा हरि सिंह किसानों और कृषि की महत्ता को बख़ूबी जानते थे इसीलिए उन्होंने किसानों के साथ साथ क्षत्रिय जनता को कृषि के प्रति प्रेरित करने के लिए ख़ुद हल चलाया था। भारत में कृषि के क्षेत्र में आधुनिकता लाने वाले महाराजा हरि सिंह ही थे। किसानों की दशा सुधारने, पैदावार बढ़ाने और किसानों की सुरक्षा को लेकर महाराजा ने कई सकारात्मक क़दम उठाए थे। एग्रीकल्चर रिलीफ़ एक्ट’ जैसे नियम बनाकर किसानों और मजदूर वर्ग के हो रहे शोषण का उन्होंने दमन किया था। महात्मा गांधी ने जिस तरह किसानों के लिए आन्दोलन किये वैसे ही अनेकों कृषि संबंधी सुधार लाकर महाराजा ने किसानों को सशक्त करने का बीड़ा उठाया था। रियासत में अधिकतर जनता ग्रामीण ही हुआ करती थी। ग्रामीण क्षेत्रों में विकास और महाराजा के सुधारों को पहुंचाने के उद्देश्य से ग्रामीण पंचायतों के विकास के लिए महाराजा हरि सिंह ने 1937 में ग्रामीण विकास विभाग का गठन किया।

एक शिक्षाविद के रूप में 10 नेहरु भी कम पड़ जाए, ऐसे थे महाराजा हरि सिंह :

जिस महाराजा को इन वामपंथी इतिहासकारों ने अपनी ओछी हरकतों से विवादित और संदिग्ध साबित करने की कोशिश की और इसी क्रम में आज भी लगे हुए हैं वही महाराजा हरि सिंह तत्कालीन समय में दक्षिण एशिया के सबसे बड़े विद्वान के रूप में जाने जाते थे। भारत के पहले प्रधानमंत्री पं जवाहर लाल नेहरु को दूरगामी सोच वाला और महान शिक्षाविद के साथ साथ कानूनविद के रूप में पेश किया जाता है। लेकिन ये चाटूकार भूल गए कि इनके वजह से ही जम्मू कश्मीर का एक हिस्सा पाकिस्तान और एक हिस्सा चीन के क़ब्ज़े में चला गया है। एक तरफ़ जहां सत्ता पाते ही कांग्रेस ने एक विचारधारा और एकरूपता को जनता पर थोपा वहीं महाराजा हरि सिंह ने शिक्षा के स्तर पर अभूतपूर्व सुधार किया।

महाराजा रियासत के बच्चों के लिए प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य कर दिया था। शिक्षा के क्षेत्र में बड़े स्तर पर सुधार करने के लिए महाराजा हरि सिंह ने प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा को पूरी तरह निशुल्क कर दिया था। तत्कालीन समय में यह भारत में होने वाले सबसे बड़े समाज सुधार में से एक था। बच्चों और युवाओं को शिक्षा देने और सशक्त करने और शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए नए स्कूल और कॉलेज की स्थापना उन्होंने बड़े स्तर पर की। महाराजा ने उच्च और तकनीकी शिक्षा के लिए स्कॉलरशिप और लोन जैसी सुविधा रियासत के छात्रों के लिए मुहैया करवाई। महाराजा हरि सिंह अपनी जनता के विकास के लिए कितने गंभीर थे यह इसी से पता चलता है कि उन्होंने रियासत के युवाओं को बुद्धिजीवी वर्ग से जोड़ने के तमाम रास्ते खोल दिए थे।

सामाजिक समानता और दलितों के उत्थान में महाराजा सबसे ऊपर हैं :

भारत में हमेशा दलित उत्थान के लिए अंबेडकर को याद किया जाता है। हरिजन शब्द देने वाले महात्मा गांधी को याद किया जाता है। लेकिन देश में उनके ही समकालीन महान समाज सुधारक महाराजा हरि सिंह ने दलितों के उत्थान के लिए साथ ही सामाजिक समानता के लिए जम्मू कश्मीर रियासत में जो कार्य किया उसे कभी जनता के समक्ष लाया ही नही गया। अपनी रियासत में महाराजा हरि सिंह ने तो 1926 में सभी जाति धर्म के लोगों के लिए मंदिर के दरवाजे खुलवा दिए। इस मुद्दे से एक वाकया भी जुड़ा हुआ है कि जब महाराजा हरि सिंह ने दलितों को मंदिर में घुसाने की बात की तो पंडितों ने इसका विरोध किया। तब महाराजा ने कहा था कि “या तो दलित मंदिर के अंदर जाएंगे या पंडित मंदिर के बाहर जाएंगे।”

महाराजा कि इस कथन से पंडितों नाराज होकर मंदिर से बाहर जाने का फैसला कर लिया था। पंडितों के इस कड़े विरोध को देखते हुए भी महाराजा पीछे नहीं हटे और उन्होंने दलितों के लिए मंदिरों के दरवाजे हमेशा के लिए खुलवा दिए। ऐसे महान समाज सुधारक और दलितों के उत्थानकर्ता महाराजा हरि सिंह को आज तक सिर्फ इसलिए अनदेखा किया गया है क्योंकि वह सिर्फ किसी एक खास परिवार या एक खास विचारधारा के नहीं थे। मंदिरों से लेकर अस्पतालों और स्कूल कॉलेजों में दलित छात्रों के साथ भेदभाव को दूर कर महाराजा हरि सिंह ने छुआछूत के खिलाफ बड़े कदम उठाए। समाज सुधार के क्षेत्र में महाराजा हरि सिंह ने एक बड़ा कदम उठाते हुए समाज में व्याप्त कुरीतियों में से एक सती प्रथा को 1933 में खत्म करने हेतु एक नियम लाया। किसी एक ही शासक द्वारा इतने ज्यादा समाज सुधारक कार्य करने वाले महाराजा हरि सिंह एकमात्र शासक हुए जो सही मामलों में जनता के सेवक थे।

लोकतंत्र के मुखर समर्थक थे महाराजा :

कहा जाता है कि रियासतों में कुछ राजा ऐसे हुए जो लोकतंत्र के विरोधी थे और शासन में जनता की भागीदारी से नाखुश थे। वही लोकतंत्र आने के बाद कुछ राष्ट्राध्यक्ष ऐसे भी हैं जिन्होंने खुद को शासक समझ कर लोकतंत्र का ही दमन कर जनता की भागीदारी को ही खत्म कर दिया था। लेकिन इन सब के विपरीत जम्मू कश्मीर रियासत के महाराजा हरि सिंह लोकतंत्र के मुखर समर्थक थे। और महाराजा की सोच यह बताती है कि महाराजा हरि सिंह शासन प्रशासन में जनता की सहभागिता चाहते थे। 1934 में महाराजा हरि सिंह ने प्रजा सभा का गठन कर अपने लोकतांत्रिक व्यवहार का परिचय दिया था। जम्मू कश्मीर रियासत में जनता के विकास और प्रशासन में जनता को शामिल करने के लिए महाराजा ने 1935 में पब्लिक सर्विस कमीशन का गठन किया था। एक अहम् संस्थाओं का गठन करना महाराजा हरि सिंह के उस उद्देश्य को साफ-साफ दिखाता है जिसमें वह रियासत की जनता को मुख्यधारा में लाने के पक्षधर थे।

जम्मू कश्मीर के विलय में महाराजा का योगदान :

जब अंग्रेज़ों ने भारत छोड़ने का फ़ैसला लिया तब भारत में 600 से अधिक छोटी बड़ी रियासतें थी। ब्रिटिश इंडिया के विभाजन के समय 562 रियासतों ने भारत में विलय किया था। जम्मू कश्मीर रियासत का विलय भारत के लिए सबसे बड़ी कामयाबी थी। महाराजा हरि सिंह विभाजन के समय से ही भारत के पक्षधर थे। साथ ही उन्होंने द्विराष्ट्र के सिद्धांत और पाकिस्तान बनाए जाने का कड़ा विरोध किया था। आज जिस कश्मीर को लेने की बात पाकिस्तान करता है उसे तो रियासत के महाराजा ने पहले ही देने से मना कर दिया था। “यदि जम्मू कश्मीर के विलय को विवादित बनाना है तो विलय करने वाले को ही विवादित घोषित कर दो” इसी रणनीति के तहत पाकिस्तान ने अपना काम किया है। और पाकिस्तान की रणनीति का भारत में बैठे वामपंथी इतिहासकार, वामपंथी चिंतक, मूर्ख कांग्रेसियों और पाकिस्तान परस्त लोगों ने भरपूर साथ दिया।

इसी रणनीति के कारण आज जम्मू कश्मीर के विलय का मुद्दा विवादित कहकर उठाया जाता है, किंतु जम्मू कश्मीर का विलय उतना ही साफ़ है जितना अन्य रियासतों का। महाराजा ने उसी विलय प्रपत्र में हस्ताक्षर किए थे जिसमें देश अन्य रियासतों के राजाओं ने किए थे। महाराजा की छवि धूमिल करने के लिए फैलाए गए प्रॉपगैंडा के कारण आज देश की जनता के बीच एक संदेह की स्थिति पैदा करने की कोशिश की जाती है।

Tags: जम्मू-कश्मीरमहाराजा हरि सिंह
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