2019 के लोकसभा चुनावों में कुछ चुनिंदा सीटें ऐसी हैं जहां लड़ाई सिर्फ चुनावों तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि उससे कईं ज्यादा है। ऐसी ही एक सीट है मध्यप्रदेश की भोपाल सीट। यह लोकसभा सीट बीजेपी के सबसे मजबूत किलों में से एक है, जहां 30 साल से बीजेपी का कब्जा है। साल 1989 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने भोपाल से पहली बार जीत दर्ज की थी उसके बाद से अभी तक सभी लोकसभा चुनावों में यहां से बीजेपी ही जीतती आ रही है। इस सीट पर काग्रेंस ने आखिरी बार साल 1984 में जीत दर्ज की थी। मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल वह सीट है जहां से कांग्रेस के कई बड़े नेताओं ने अपनी किस्मत आजमाई, लेकिन वे इस सीट से पार्टी को नहीं जिता पाए। किसी समय कांग्रेस की ओर से इस सीट पर नवाब मंसूर अली खान पटौदी और सुरेश पचौरी ने भी दांव खेला लेकिन जीत का स्वाद नहीं चख पाए।
बीजेपी के गढ़ के नाम से फेमस भोपाल सीट पर इस बार कांग्रेस ने दिग्विजय सिंह को टिकट दिया है। भाजपा की ओर से प्रत्याशी उतारने से काफी दिन पहले ही यहां से कांग्रेस ने दिग्विजय के नाम की घोषणा कर दी थी। कांग्रेस द्वारा दिग्विजय को उनकी परंपरागत सीट राजगढ़ के बजाय भोपाल से टिकट देने के बाद से कई सवाल भी खड़े हो गए थे क्योंकि भोपाल से टिकट देकर कांग्रेस ने दिग्विजय को एक तरह से हारी हुई सीट दे दी है। भोपाल से दिग्विजय को लड़ाना इस बात के भी संकेत देता है कि, मुख्यमंत्री कमलनाथ और दिग्विजय सिंह के बीच सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। ये कयास इसलिए लग रहे हैं क्योंकि, कमलनाथ से जब पत्रकारों ने दिग्विजय सिंह के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा था, “मैं एक घोषणा कर सकता हूं। सेन्ट्रल इलेक्शन कमेटी में दिग्विजय सिंह जी का नाम भोपाल से फ़ाइनल हो गया है। मैंने उनसे अनुरोध किया था कि आप लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे हैं। इसलिए आप राजगढ़ लोकसभा सीट से चुनाव लड़ो, यह आपको जंचता नहीं है। मैंने उनसे कहा कि भोपाल, इंदौर या जबलपुर जैसी मुश्किल सीट से लड़ें। इस पर दिग्विजय सिंह ने सहमति दे दी।”
दिग्विजय सिंह के जवाब में पहले भोपाल में बीजेपी की तरफ से शिवराज सिंह और उमा भारती को टिकट दिये जाने की चर्चा थी लेकिन फिर अंत में साध्वी प्रज्ञा का नाम फाइनल करके बीजेपी ने यहां से बड़ा दांव खेल दिया। सभी जानते हैं कि, साध्वी प्रज्ञा कट्टर हिंदुवादी छवि की हैं और दिग्विजय अपने हिंदू विरोधी बयानों के लिए बदनाम रहे हैं। यही नहीं, दिग्विजय ने अपने बयानों से साध्वी को कम प्रताड़ित नहीं किया है। इस तरह भोपाल सीट पर यह सिर्फ चुनावी लड़ाई ही नहीं रही बल्कि इससे कहीं ज्यादा बड़ी लड़ाई बन गई है। जहां इस मुकाबले को 72 की उम्र के दिग्विजय के लिए आर-पार की लड़ाई मानी जा रहा है तो वहीं साध्वी प्रज्ञा के लिए यह एक तरह से सियासत की शुरुआत है।
भोपाल संसदीय सीट पर मतदाताओं की बात करें तो यहां करीब 20 लाख वोटर हैं। जातीय समीकरण को देखा जाए तो यहां सबसे ज्यादा 75 से 80 प्रतिशत हिंदू वोटर हैं जबकि 20 से 25 प्रतिशत मुसलमान वोटर हैं जिनकी संख्या लगभग 5 लाख है। वहीं, यहां अनुसूचित जाति के वोटर्स का प्रतिशत 14.83 हैं और अनुसूचित जनजाति के वोटर्स 2.56 प्रतिशत है। इसके अलावा यह भी बता दें कि, इस सीट पर 21 प्रतिशत वोटर्स ग्रामीण इलाकों में रहते हैं और बाकी शहरी इलाकों में। इसके साथ ही बता दें कि, भोपाल लोकसभा सीट पर 8 विधानसभा सीटें है इनमें से वर्तमान में 3 पर कांग्रेस और 5 पर भाजपा का कब्ज़ा है।
करीब 5 लाख मुस्लिम वोटर होने के कारण दिग्विजय सिंह को यहां थोड़ा फायदा हो सकता हैं क्योंकि, दूसरी तरफ साध्वी के खड़े होने के कारण ध्रुवीकरण की संभावना है जिससे मुस्लिम वोट एकतरफा कांग्रेस के खाते में जा सकते हैं। लेकिन, इस चुनाव में सिर्फ धार्मिक ही नहीं बल्कि जातीय गणित का भी बहुत असर दिखने वाला है। बता दें कि, भोपाल में कायस्थों की अच्छी खासी संख्या है। कायस्थ वोटर यहां दो से ढाई लाख के बीच हैं। यहां से बीजेपी के वर्तमान सांसद आलोक संजर भी कायस्थ हैं। इससे पहले यहां मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव सुशील चंद्र वर्मा चार बार सांसद रहे। वे भी कायस्थ ही थे। वहीं कायस्थ के बाद दूसरे नंबर पर यहां ब्राह्मण समाज के लोग हैं। कायस्थ और ब्राह्मणों के वोटर्स की संख्या में यहां ज्यादा अंतर नहीं है। वहीं सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि, भोपाल के वोटरों का मिजाज़ लंबे समय से हिंदुत्व और संघ की ओर रहा है। साध्वी प्रज्ञा के मैदान में उतरने से ब्राह्मण या कायस्थ ही नहीं ब्लकि इस पूरे समूह का वोट एकमुश्त साध्वी को मिलने के आसार हैं।
बीजेपी द्वारा साध्वी प्रज्ञा का नाम सामने आने के बाद भोपाल लोकसभा सीट से दिग्विजय सिंह की मुश्किलें काफी बढ़ गई हैं। वह इसलिए क्योंकि बीजेपी ने मध्य प्रदेश में किसी बाहरी नेता को लोकसभा चुनाव का प्रभारी बनाने के बजाय पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को यह जिम्मेदारी दी है। साध्वी प्रज्ञा के नाम का ऐलान होने के बाद से ही शिवराज और संघ इस सीट पर एक्टिव हो गए है। भोपाल में शिवराज अच्छी खासी पकड़ रखते हैं और इस सीट के ग्रामीण इलाकों में भी उनकी गहरी पैठ है। वहीं शिवराज के साथ एक अच्छी बात यह भी है कि, वे मुस्लिम समुदाय के बीच भी काफी लोकप्रिय हैं। इस तरह भोपाल सीट पर अब साध्वी प्रज्ञा अकेली नहीं हैं बल्कि शिवराज सिंह भी वहां उन्हें मजबूती दे रहे हैं।