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महिषासुर कोई मूलनिवासी, द्रविड़ या जनजाति समुदाय का नहीं था, वह एक क्रूर राक्षस था

महिषासुर कौन था? जानिए वास्तविकता

Abhinav Kumar द्वारा Abhinav Kumar
1 October 2019
in इतिहास, ज्ञान
महिषासुर

PC: NBT

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महिषासुर कौन था? एक दलित या एक राक्षस?

पवित्र नवरात्रि का आरंभ हो गया है और इसके साथ ही त्योहारों का महीना भी शुरू हो गया है। नवंबर के पहले सप्ताह तक विभिन्न त्योहारों का उत्सव बना रहता है। इसे देवी पार्वती की अवतार ‘दुर्गा’ के अवतरण के कारण मनाया जाता है। लेकिन हमारे देश के वामपंथी ब्रिगेड हिंदुओं के त्योहारों पर कोई विवाद न करें ऐसा कैसे हो सकता है। नवरात्रि की शुरुआत के साथ ही वामपंथी ब्रिगेड के पत्रकार व कुछ मंदबुद्धी लोग वही पुराना राग अलापने बैठ गए हैं। उनका कहना है कि महिषासुर एक जनजाति समुदाय से संबंध रखता था और छल से दुर्गा द्वारा मारा गया था।

यह वामपंथी इतिहासकारों और छद्म उदारवादियों द्वारा किया गया झूठा प्रचार है। सही ज्ञान न होने के कारण, लोग इन इतिहासकारों और लेफ्ट ब्रिगेड की बात मान रहे हैं। सबसे पहले यह ब्रिगेड महिषासुर को आदिवासी घोषित करता है जो अपने आप में स्पष्ट झूठ है क्योंकि शास्त्र असुर की उत्पत्ति की जानकारी देते हैं। महिषासुर एक असुर था, यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि देव और असुर की उत्पत्ति एक ही कश्यप ऋषि से हुई थी, तब महिषासुर यानि महिष और असुर आदिवासी कैसे हो सकता है? देवताओं को ‘सुर’ तो दैत्यों को ‘असुर’ कहा जाता था। देवताओं की अदिति, तो दैत्यों की दिति से उत्पत्ति हुई। तो फिर यह आदिवासी और उच्च जाति कहाँ से आ गया?

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वैदिक और उत्तर-वैदिक साहित्य में ‘असुर’ शब्द का उल्लेख स्पष्ट रूप से मिलता है। यह संभवतः मूल ‘सुर’ से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है ‘देवता’ या देवता के गुणों वाला। तथा ‘अ’ उपसर्ग लगा कर सुर का विलोम शब्द ‘असुर’ का संधि होता है। तथा अर्थ बदल कर ठीक उल्टा हो जाता है। यानि ‘असुर’ का अर्थ जिसमें देवत्व न हो।

वैदिक शब्दों का शब्दकोश ‘निरुक्त’ ’असुरों’ को परिभाषित करता है। सभी असुर, दैत्य, दानव और राक्षस ब्रह्मा और कश्यप से सीधे तौर पर जुड़े हुए थे। लेकिन विदेशी इतिहासकारों ने जानबूझ कर उन्हें द्रविड़ और आदिवासी बताया। पुराणों, महाकाव्यों और पहले के ब्राह्मणों जैसे कि सप्तपद ब्राह्मण या तैत्तिरीय आरण्यक का अध्ययन करने वालों को समझ में आ जाएगा कि इन शब्दों का क्या अर्थ है।

महिषासुर की कहानी

महिषासुर का जन्म पुरुष और महिषी (भैंस) के संयोग से हुआ था। इसलिए उसे महिषासुर कहा जाता है। इसी वज़ह से महिषासुर इच्छानुसार जब चाहे भैंस और जब चाहे मनुष्य का रूप धारण कर लेता था। संस्कृत में महिष का अर्थ भैंस होता है।

महिषासुर सृष्टिकर्ता ब्रम्हा का महान भक्त था और ब्रम्हा जी ने उसे वरदान दिया था कि कोई भी देवता या दानव उस पर विजय प्राप्त नहीं कर सकते।

महिषासुर बाद में स्वर्ग लोक के देवताओं को परेशान करने लगा और पृथ्वी पर भी उत्पात मचाने लगा। उसने स्वर्ग पर एक बार अचानक आक्रमण कर दिया और इंद्र को परास्त कर स्वर्ग पर कब्ज़ा कर लिया तथा सभी देवताओं को वहाँ से खदेड़ दिया। जब सभी देवता भगवान विष्णु के पास अपनी समस्या लेकर पहुंचे तो उन्होंने उन्हें सुझाव दिया कि आप भगवती महाशक्ति की आराधना करें। सभी देवताओं ने आराधना की। तब ‘शक्ति’ का अवतरण हुआ और इनका अवतरण महिषासुर के अंत के लिए ही हुआ था। इसलिए इन्हें ‘महिषासुर मर्दिनी’ कहा जाता है। समस्त देवताओं के तेज से प्रकट हुई देवी को देखकर पीड़ित देवताओं की प्रसन्नता का ठिकाना नहीं रहा।

भगवान शिव ने देवी को त्रिशूल दिया। भगवान विष्णु ने देवी को चक्र प्रदान किया। इसी तरह, सभी देवी-देवताओं ने अनेक प्रकार के अस्त्र-शस्त्र देवी के हाथों में सजा दिए। इंद्र ने अपना वज्र और ऐरावत हाथी से उतारकर एक घंटा देवी को दिया। सूर्य ने अपने रोम कूपों और किरणों का तेज भरकर ढाल, तलवार दिया तथा पर्वतराज हिमालय ने दिव्य सिंह यानि शेर को सवारी के लिए उस देवी को अर्पित कर दिया। विश्वकर्मा ने कई अभेद्य कवच और अस्त्र देकर महिषासुर मर्दिनी को सभी प्रकार के बड़े-छोटे अस्त्रों से सुशोभित किया। अब बारी थी युद्ध की।

देवी दुर्गा ने महिषासुर पर आक्रमण कर उससे नौ दिनों तक युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध कर दिया। इसी उपलक्ष्य में हिंदू दस दिनों का त्यौहार दुर्गा पूजा मनाते हैं और दसवें दिन को विजयादशमी के नाम से जाना जाता है। जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। नवरात्रि के दौरान मां दुर्गा के सभी नौ रूपों की पूजा की जाती है। नवरात्रि के नौ दिनों को बेहद पवित्र माना जाता है। नवरात्रि शरद ऋतु में अश्विन शुक्‍ल पक्ष से शुरू होती हैं और पूरे नौ दिनों तक चलती है। ये सभी बातें मार्कण्डेय पुराण की ‘देवी महात्म्य’ में स्पष्ट रूप से उल्लेखित है, यह पुराण 18 पुराणों में से एक है।

और पढ़े : ASI ने खोज निकाला पुख्ता सबूत, जितना हम जानते हैं उससे भी कहीं ज्यादा पुराना है महाभारत

अब इसी पौराणिक आख्यान के पात्र को उठाकर जेएनयू और कई वामपंथियों द्वारा एक हवा-हवाई इतिहास को गढ़ा गया है कि महिषासुर एक दलितोद्धारक, न्यायप्रिय और जनप्रिय राजा था, जिसको सवर्णों द्वारा प्रेरित एक स्त्री दुर्गा ने छल से मार दिया। इसके साथ ही ब्रिटिश काल के इतिहासकारों और ज्ञानियों ने भारत में ही रहने वाली एक ‘असुर’ जनजाति को केंद्र में रख कर यह कहानी बनाई तथा उन्हें भ्रमित किया कि महिषासुर उनके पूर्वज थे। इस वजह से महिषासुर की पूजा कुछ समुदायों द्वारा की जाने लगी और वे संथाल और असुर अनुष्ठानों का पालन करने लगे। यहां तक कि वे ‘असुर’ को अपने उपनाम के रूप में भी इस्तेमाल करते हैं। इन समुदाय के लोगों के दिमाग में यह डाल दिया गया कि देवी दुर्गा के साथ लड़ाई में उनके पूर्वज और ‘जनजाति महिषासुर’ को छल से मारा था इसलिए वे इसे एक अनुचित लड़ाई मानने लगे।

ऋषि कश्यप असुर के दादा थे यह झूठ है – TrueIndology

यह सफ़ेद झूठ ही है क्योंकि ऋषि कश्यप महिषासुर के दादा थे। हालांकि TrueIndology ने भी इस झूठ को उजागर किया और कई ऐसे प्रमाण दिये जिससे यह साबित होता है कि महिषासुर और भारत में पाये जाने वाले ‘असुर’ जनजाति का कोई संबंध नहीं है। इन जनजातियों पर काफी शोध किया गया है, लेकिन किसी भी अनुसंधान ने महिषासुर का उल्लेख नहीं किया है।

TrueIndology ने जॉन-बैपटिस्ट हॉफमैन के 15 संस्करणों की अपनी किताब, ‘एनसाइक्लोपीडिया मुंडारिका’ (1928) का उदाहरण दिया है, जो असुर और अन्य पड़ोसी मुंडा जनजातियों पर केन्द्रित है। इसके साथ ही वह मानवविज्ञानी और इतिहासकार K.K Leuva का उदाहरण देते हैं जो रांची में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के सहायक आयुक्त के रूप में तैनात थे।

असुर जनजाति पर एक दशक से अधिक के रिसर्च को K.K Leuva  ने अपनी पुस्तक ‘द असुर’(1963) लिखा था। इसके साथ ही और कई किताब जैसे  Land and tribal people of Bihar’ (नर्मदेश्वर प्रसाद 1961), ‘ट्राइब्स ऑफ इंडिया’ (केएस सिंह 1994) और ‘Asurs and their dancers’ (joseph marianus kujur 1996) जैसी पुस्तकों का उदाहरण मिलता है। हाल ही में, भाषाविद् जीडीएस एंडरसन ने मुंडा भाषाओं पर के शोध किया था।

और पढ़े : भारतवर्ष को अंग्रेजों ने नहीं खोजा था, यह सनातन है और इसके साक्ष्य भी हैं

इनमें से किसी भी शोध में कहीं भी यह उल्लेख नहीं है और ना ही महिषासुर और असुर जनजाति में किसी प्रकार का संबद्ध है। अभी तक किसी भी विद्वानों के शोध में इन दावों का कोई उल्लेख नहीं मिलता है। जेएनयू स्थित वामपंथी इतिहासकारों के इन झूठे दावों को कूड़ेदान में फेंक देना चाहिए।

हालांकि हर बात में दूसरों से तथ्य और प्रमाण मांगने वाले ये महिषासुर के मुट्ठी भर समर्थक अपने इस मनगढ़ंत और हवा हवाई इतिहास के विषय में आजतक कोई ठोस प्रमाण नहीं दे सके हैं; बस हिटलर के प्रचार मंत्री गोयबल्स की तरह इस झूठ को बार-बार रट-रटकर सही साबित करने की नाकाम कोशिश में लगे रहते हैं।

वैसे, इनके इस बौद्धिक कुकृत्य का विडंबनात्मक पक्ष ये है कि एक तरफ तो ये भारतीय पौराणिक इतिहास को मिथक और कपोल-कल्पित कह इसे ‘मिथ’ कहते है  और दूसरी तरफ वहीं से दुर्गा-महिषासुर जैसे चरित्रों को उठाकर मनगढ़ंत कहानी बना कर पेश भी करते हैं। यह बात दिल्ली में बैठे महिषासुर के इन आधुनिक मानस-पुत्रों को समझ में नहीं आ सकता क्योंकि, इन्हें इस देश और इसके सभी जाति-धर्म के वासियों की एक प्रतिशत भी समझ नहीं है। इनकी समझ का दायरा इनके लाल सलाम की बजबजाहट से शुरू होकर कभी महिषासुर जैसे अधर्मी को उच्च स्थान देकर, तो कभी अफज़ल गुरु जैसे देशद्रोही को अपना जीवनादर्श मानकर ख़त्म हो जाता है।

Tags: नवरात्रिमहिषासुरराक्षसलेफ्ट लिबरलवामपंथी
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26 July 2025

देशभक्ति को बढ़ावा देने और स्थानीय नायकों की स्मृति को संजोने के उद्देश्य से दिल्ली सरकार अपने सरकारी स्कूलों का नाम कारगिल युद्ध में शहीद...

अब तक आजाद नहीं हो सकीं आजाद की अस्थ्यिां, पांच दशक से लखनऊ में बंद है अस्थि कलश
इतिहास

आज तक ‘आज़ाद’ नहीं हो सकीं चंद्रशेखर आजाद की अस्थियां, 5 दशक से लखनऊ में बंद है अस्थि कलश

23 July 2025

एक ऐसे अमर स्वतंत्रता सेनानी, जिन्होंने देश को आजाद करने की कसम तो खाई ही, खुद भी आजाद ही रहे, अंतिम समय तक। लेकिन, यह...

ड्रूज़ समुदाय (Photo - The National News)
इतिहास

इस्लाम से निकले ड्रूज़ समुदाय की कहानी जो करता है पुनर्जन्म में विश्वास; इन्हें बचाने के लिए इज़रायल ने किए सीरिया में हमले

18 July 2025

इज़रायल ने हाल ही में सीरिया की राजधानी दमिश्क पर हवाई हमले किए और इनमें सीरियाई रक्षा मंत्रालय व राष्ट्रपति भवन के आसपास के क्षेत्र...

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