विदेशों में बिखरी भारत की विरासत और संस्कृति को अपने देश में लाने के लिए शुरू से ही मोदी सरकार का रुख बेहद सकारात्मक रहा है। आज भारत की कई ऐतिहासिक मूर्तियाँ और पुरावशेष दुनिया के अलग-अलग कोनों में बिखरे पड़े हुए हैं और इसका कारण है कि इन्हें लगातार कई सालों तक भारत से चुराकर ऑस्ट्रेलिया, अमेरिका, यूके और जर्मनी जैसे देशों में बेचा जाता रहा है। हालांकि, अभी भारत सरकार इन्हें वापस अपने देश में मंगाने की जद्दोजहद में लगी है और उसे सफलता भी मिल रही है। इसी कड़ी में अभी ऑस्ट्रेलिया ने अगले साल जनवरी में भारत से चुराई हुई तीन मूर्तियों को वापस भारत को लौटाने का ऐलान किया है। अगले साल जनवरी में ऑस्ट्रेलिया के पीएम भारत के दौरे पर आ रहे हैं और तब वे अपने साथ ये तीन कलाकृतियों को भारत लेकर आएंगे।
बता दें कि ‘नेशनल गैलरी ऑफ ऑस्ट्रेलिया’ द्वारा ये कलाकृतियां सुभाष कपूर नाम के एक व्यक्ति से खरीदी गयी थी। भारत और अमेरिका में कपूर के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई चल रही है। गैलरी द्वारा किए गए शोध के बाद उन्होंने स्वेच्छा से भारत को कलाकृतियां वापस करने का निर्णय लिया है। लौटाई जा रही कलाकृतियां तमिलनाडु के 15वीं सदी के द्वारपालों का जोड़ा और छठी से 8वीं शताब्दी के बीच राजस्थान या मध्य प्रदेश के नागराज की हैं। इससे पहले वर्ष 2014 में भी ऑस्ट्रेलिया के तत्कालीन प्रधानमंत्री टोनी एबॉट ने भारत को हिंदू देवताओं की दो प्राचीन मूर्तियां सौंपी थी, जिन्हें कथित तौर पर तमिलनाडु के मंदिरों से चुराया गया था।
बता दें कि भारत से प्राचीन पुरावशेषों को चोरी होने से रोकने या उनकी पहचान करने के लिए भारत सरकार पहले ही बड़े पैमाने पर अभियान चला चुकी है। यह अभियान इसी वर्ष 13 सितंबर से 28 सितंम्बर, 2019 तक चलाया गया था तथा इस दौरान किसी भी 100 साल पुरानी कलाकृतियों या पुरावशेषों का रजिस्ट्रेशन किया गया था।
यहां आपको पता होना चाहिए कि पुरावशेष और कला खजाने अधिनियम 1972 और अधिनियम 1973 के तहत व्यक्तियों, या संस्थानों द्वारा रखे गए पुरावशेषों का पंजीकरण और फिर पंजीकरण के बाद सरकार के हवाले करना अनिवार्य है। अधिनियम की धारा 14 (3) के अनुसार, उप-धारा (1) के तहत जारी अधिसूचना में किसी भी 100 वर्षों से पुरानी वस्तु के मालिक को पंजीकरण कराना आवश्यक होता है।
बता दें कि प्राचीन मंदिरों में हजारों मूर्तियां और कलाकृतियां यूं ही पड़ी रहती हैं और उनका देखभाल कोई नहीं करता, लेकिन यही मूर्तियां जब चोर तस्करी कर अमेरिका पहुंचाते हैं तो वो करोड़ों में बिकती हैं। ऐसे ही भारत में न जाने कितने पुरावशेष मौजूद होंगे। ये मूर्तियां और कलाकृतियां देश की धरोधर और संपदा हैं जो आप को देश पर गर्व करने का मौका देती हैं। इंडिया प्राइड प्रोजेक्ट के संस्थापक अऩुराग सक्सेना अनुसार अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसके बड़े-बड़े तस्कर बैठे हैं और हमें इसकी भनक भी नहीं लगती। किसी गांव से जब कोई मूर्ति चोरी होती है तो लोग बस अंदाजा लगाते हैं कि इन मूर्तियों को विदेशी बाजार में बेच दिया गया होगा।
यूनेस्को के अनुसार भारत से लगभग 50 हज़ार ऐतिहासिक कलाकृतिया चोरी हुईं हैं। पिछले साल संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस संबंध में एक (2119) रिज्योल्यूशन भी पास किया था। इसके अनुसार बहुत से देशों से जो मूर्तियां चोरी हो रही हैं, वो आईएस (इस्लामिक स्टेट) या ऐसे ही अन्य संगठन करवा रहे हैं, जो उसके लिए टेरर फंडिंग के स्रोत हैं। न्यूयॉर्क में एक तस्कर के यहाँ छापा पड़ा तो उसमें 106 मिलियन डॉलर (लगभग 7 अरब रुपए) की मूर्तियां बरामद की गईं थीं। ऑस्ट्रेलिया के म्यूजियम में रखी 500 साल पुरानी नटराज (भगवान शिव) की मूर्ति चोरी की निकली और आर्ट गैलरी ने इस बात की पुष्टि की थी। अब भारत सरकार पूरी दुनियाभर से भारत की प्राचीन कलाकृतियों को वापस स्वदेश लाने की नीति पर काम कर रही है जो वाकई प्रशंसा के लायक है।