वर्ष 2017 में जब से नेपाल में कम्युनिस्ट सरकार सत्ता में आई है, तभी से नेपाली सरकार का रुख चीन की तरफ कुछ ज्यादा ही बढ़ गया है। चीन भी नेपाल को अपनी ओर आकर्षित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है, और नेपाल में बड़ी मात्रा में निवेश करने की बात कर रहा है। हालांकि, चीन की दोस्ती का सभी देशों को एक बड़ा दाम चुकाना पड़ता है। यह चीन की कूटनीति का एक हिस्सा रहा है कि वह एक दोस्त का मुखौटा पहनकर सामने वाले देश को आर्थिक, सुरक्षा और रणनीतिक तौर पर हाईजैक करने की कोशिश करता है। ठीक वैसा ही चीन नेपाल के साथ भी कर रहा है। चीन तिब्बत में चल रही सड़क निर्माण परियोजना के नाम पर नेपाल की जमीन को हड़प रहा है। अब नेपाल में चीन के बढ़ते इस अतिक्रमण को लेकर भारी विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहा है।
दरअसल, नेपाल के लोग अब चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के खिलाफ खुलकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं क्योंकि उनके मुताबिक चीन ने नेपाल के एक हिस्से पर जबरन कब्जा कर लिया है। नेपाल के कई शहरों में चीन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और लोग चीन के खिलाफ नारेबाज़ी कर रहे हैं। इससे एक बार फिर यह स्पष्ट हो गया है कि एक तरफ जहां नेपाल की सरकार चीन के साथ अपने रिश्तों को बढ़ावा दे रही है, तो वहीं चीन नेपाल की ज़मीन पर कब्जा कर नेपाल के लिए सुरक्षा खतरा बनता जा रहा है।
बता दें कि कुछ दिनों पहले नेपाल के सर्वे विभाग ने एक सर्वे को जारी करते हुए यह दावा किया कि चीन ने नेपाल की 36 हेक्टेयर ज़मीन पर कब्जा कर लिया है। यह 36 हेक्टेयर ज़मीन नेपाल के अलग-अलग जिलों में पड़ती है जिसे अब चीन ने आधिकारिक तौर पर तिब्बत का हिस्सा बना दिया है। इसके बाद नेपाल के सप्तरी, बरदिया और कपिलवस्तु जैसे जिलों में लोगों ने बड़े पैमाने पर चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के खिलाफ प्रदर्शन किया और उनके पुतले को भी फूंका।
हालांकि, यह ऐसा पहला उदाहरण नहीं है जहां नेपाल के लोगों ने चीन की रंगबाजी के खिलाफ कोई विरोध प्रदर्शन किया हो। नेपाल के लोग चीन द्वारा किए जा रहे ‘साइबर अटैक्स’ से भी तंग आ चुके हैं। नेपाल के लोगों का आरोप है कि चीन की कंपनी हुवावे का नेपाल की लगभग 200 वेबसाइटों को हैक करने में हाथ शामिल था। इन वेबसाइट्स में कुछ सरकारी वेबसाइट्स भी शामिल थीं। इसको लेकर लोगों ने 14 अगस्त को काठमाण्डू में मौजूद हुवावे कंपनी के ऑफिस के बाहर विरोध प्रदर्शन भी किए थे। लोगों ने इस दौरान चीन और हुवावे के खिलाफ नारे लगाए थे। लोग कंपनी पर इतने भड़के हुए थे कि उनमें से कुछ ने तो कंपनी के ऑफिस में घुसने तक का प्रयास किया था जिनमें से 5 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया।
इकनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक लोगों का यह भी आरोप है कि नेपाल की टेलिकॉम रेगुलेटर और नेपाल के टेलिकॉम मिनिस्टर भ्रष्टाचार के तहत हुवावे को 5जी तकनीक क्षेत्र में हुवावे के हित में काम कर रहे हैं, और हुवावे के नेपाल-विरोधी कार्यक्रमों पर आँख बंद किये हुए हैं। लोगों का यह भी कहना है कि हुवावे को बिना किसी बिडिंग के ही कांट्रैक्ट दिये जा रहे हैं। इसके अलावा चीन द्वारा नेपाली बैंकों में किए जा रहे ऑनलाइन फ़्रॉड से भी लोगों में गुस्सा है।
इसी वर्ष अगस्त में चीन में बैठे हैकरों ने नेपाल राष्ट्रीय बैंक के एटीएम को हैक कर लगभग सवा करोड़ नेपाली रुपये चुरा लिए थे। इसके बाद बैंक को एहतियातन ATM से पैसा निकालने पर लिमिट लगानी पड़ी थी इससे वहां के लोगों को भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ा था।
बता दें कि चीन की दादागिरी सिर्फ तकनीक क्षेत्र तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वह नेपाल से महिलाओं की तस्करी करने के भी आरोप झेल रहा है। इसी वर्ष सितंबर महीने में जब चीन के विदेश मंत्री नेपाल के दौरे पर गए थे, तो इसको लेकर लगभग 15 महिलाओं ने नेपाल में मौजूद चीन के दूतावास के सामने अपना विरोध जताया था। पुलिस ने इनमें से 9 महिलाओं को गिरफ्तार भी कर लिया था। हालांकि, नेपाल की मीडिया में इन विरोध प्रदर्शनों को काफी कवर किया गया था। लोगों का यह आरोप था कि चीन के नागरिक नेपाल की महिलाओं को चीन में नौकरी दिलवाने के बहाने उन्हें चीन ले जाते हैं और उनसे शादी करते हैं।
लोगों में चीन के इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट्स को लेकर भी काफी चिंताएँ हैं। नेपाल में सत्ताधारी पार्टी के एक एमपी खुद इस मुद्दे को उठा चुके हैं। दरअसल, चीन अभी अरुण नदी पर एक बड़े बांध का निर्माण कर रहा है, और लोग इसका भी विरोध कर रहे हैं। नेपाल के संखुवासभा से एमपी राजेन्द्र गौतम ने चीन के इस प्रोजेक्ट पर अपनी बड़ी आपत्ति जताई। उनका मानना है कि बारिश के मौसम में चीन इस बांध से ज़्यादा पानी छोड़ देता है जिसके कारण नेपाल के प्रांत-1 और प्रांत-2 में बाढ़ आती है। इसके अलावा अन्य कई नेता भी पार्टी लाईन से हटकर खुलकर चीनी सरकार का विरोध कर रहे हैं।
स्पष्ट है कि जैसे-जैसे चीन का प्रभुत्व नेपाल पर बढ़ता जा रहा है, ठीक वैसे ही नेपाल में चीन के विरोधी सुर भी मजबूत होते जा रहे हैं। नेपाल के लिए यही ठीक होगा कि वह चीन के मंसूबों को पहले ही पहचानकर उससे एक संतुलित रिश्ता बनाकर रखे, वरना भविष्य में नेपाल को चीन की दोस्ती की और भी बड़ी कीमत चुकानी पड़ सकती है।