पावर या एनर्जी सेक्टर एक ऐसा क्षेत्र है जिसमें भारत दशकों से आत्मनिर्भर बनने के लिए संघर्ष कर रहा है। 21वीं शताब्दी के शुरुआत में तो अधिकतर ग्रामीण क्षेत्रों में बिजली पहुंची तक नहीं थी। हालांकि, पिछले दो दशकों में, ऊर्जा उत्पादन की क्षमता में वृद्धि हुई है और आज यह देश 370 GW की क्षमता के साथ इलेक्ट्रिसिटी का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है। पर फिर भी आज हमारे देश में डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियां घाटे में चल रही हैं। इसका क्या कारण है और केंद्र सरकार ने कोरोना के समय को इन क्षेत्र में रिफॉर्म के लिए क्या कदम उठा रही है?
बिजली कंपनियां घाटे में चल रही हैं, क्या कारण है?
पिछले कुछ वर्षों में भारत के पावर सरप्लस देश बन चुका है और लगभग 100 प्रतिशत क्षेत्रों तक बिजली पहुँच चुकी है। फिर भी अभी देश में इलेक्ट्रिसिटी का प्रतिव्यक्ति खपत कम है। यही नहीं पिछले कुछ वर्षों में जीवाश्म ईंधन यानि fossil fuel की हिस्सेदारी में भी कमी आई है और नवीकरणीय ऊर्जा यानि Renewable energy का विस्तार हुआ है, इसलिए यह कहा जा सकता है कि देश अब अधिक से अधिक साफ बिजली उत्पादन करने का प्रयास कर रहा है।
फिलहाल के लिए तो बिजली क्षेत्र में उत्पादन की समस्या सुलझ चुकी है परंतु सरकार और पॉलिसी बनाने वाले अभी भी इस क्षेत्र में रिफॉर्म की बात क्यों कर रहा है?
बता दें कि भारत में उत्पादन से अधिक समस्या इलेक्ट्रिसिटी के ट्रांसमिशन और डिस्ट्रिब्यूशन में है।
यानि NTPC बिजली उत्पादन करने के बाद कई डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों को इलेक्ट्रिसिटी बेहद कम दाम पर बेचता है। ये डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियाँ अधिकतर राज्य सरकारों द्वारा अधिकृत है और ये बिजली को प्रति यूनिट 4 से 12 रुपये में बेचती है लेकिन फिर भी वे घाटे में चलती हैं। PRAAPTI पोर्टल के अनुसार ये डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों का बिजली उत्पादन करने वाली कंपनियों पर 90 हजार करोड़ से अधिक का बकाया है। डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों का कुल कर्ज 2 लाख 64 हजार करोड़ रुपये से अधिक है और हर साल वे हजारों करोड़ रुपये का नुकसान दिखाते हैं।
मुफ्तखोरी का लालच देकर नेता लोग कंपनियों को घाटे में ढकेल रहे हैं
आखिर इसके पीछे का कारण क्या है? राजनीति और नौकरशाही ये दो ऐसे कारण है जो भारत के हर समस्या की जड़ हैं। इस क्षेत्र में भी नुकसान के मुख्य कारण ये ही हैं। एक तरफ जहां अरविंद केजरीवाल जैसे नेता वोट के लिए शहरी लोगों को फ्री में इलेक्ट्रिसिटी देते हैं तो वही पंजाब और हरियाणा में पार्टियां ग्रामीण क्षेत्रों में खेती के करने वालों को लालच देने के लिए फ्री इलेक्ट्रिसिटी देने के वादे को को अपने मेनिफेस्टो में रखती हैं।
कृषि क्षेत्र पावर डिमांड का 18 प्रतिशत उपयोग करता है और यह डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों के लिए घाटे में सबसे बड़ा योगदान देता है। अधिकतर यह देखा गया है कि किसान फ्री में मिलने वाले बिजली से ट्यूब वेल को 24 घंटे चलाता है जिससे फालतू में बिजली की खपत होती है। राज्य सरकारें किसानों के सभी बिजली बिलों को सब्सिडाइजड कर देती है जिसके कारण वे बिजली का बेतहासा इस्तेमाल करते हैं बिना उसकी कीमत समझे।
बिजली के घरेलू इस्तेमाल की बात करें तो वो बिजली के कुल खपत का लगभग 24 प्रतिशत होता है और वो भी अधिकतर सब्सिडाइजड ही होता है। ग्रामीण क्षेत्रों में तो मीटर भी नहीं लगी होती! और उन घरों को एक तय कीमत अदा करनी होती है। कितना यूनिट का खपत हुआ इससे कोई मतलब नहीं होता। कई घर तो चोरी से बिजली का इस्तेमाल करते हैं और वे उसका बिल भी नहीं देते हैं। हालांकि जब पीयूष गोएल ऊर्जा मंत्री थे तब मीटर को लगाना अनिवार्य कर दिया गया था।
अब इंडस्ट्रियल या कॉमर्सियल क्षेत्र की बात करते हैं जहां पर सबसे अधिक बिजली की खपत होती है। यह क्षेत्र कुल बिजली के खपत का 52 प्रतिशत उपयोग करता है। यही क्षेत्र सबसे अधिक बिजली बिल देता है जिसके कारण घरेलू उपयोग और किसानों को सबसिडी मिलती है। औद्योगिक और वाणिज्यिक क्षेत्र, कृषि क्षेत्र द्वारा फ्री बिजली की तुलना में 12 रुपये प्रति यूनिट बिजली बिल देता है।
नेता वोटबैंक के लिए बिजली क्षेत्र में सुधार नहीं करने देता और नौकरशाह सुधार कर देगा तो भ्रष्टाचार कहां से करेगा?
इस तरह से एक क्षेत्र का दूसरे क्षेत्र को फायदा देने के कारण ऊर्जा के क्षेत्र में भारी नुकसान हो रहा है। एक तरफ नेता अपने वोट बैंक को बचाने के लिए सुधार लाना ही नहीं चाहते हैं। अगर कोई पार्टी या नेता राज्यों के बिजली क्षेत्र में सुधार लाना चाहते हैं तो फिर नौकरशाह नहीं लाने दे रहे हैं क्योंकि फिर उनके लिए भ्रष्टाचार करने का दरवाजा बंद हो जाएगा।
मध्य प्रदेश के हरीश को 30 हजार का बिल
कुछ ही दिन पहले मध्य प्रदेश के आगर मालवा के निवासी हरीश जाधव के घर बिजली का बिल 30 हजार से ज्यादा आ गया जिसके बाद उन्होंने ऑनलाइन इसकी शिकायत दर्ज की। शिकायतकर्ता ने जब ऑनलाइन शिकायत के निपटारे की स्थिति पूछी तो जवाब आया- “अगर बिल में छूट पाना है तो बीजेपी को हटाना है और कांग्रेस को लाना है, 100 में 100 रुपए का आना है।”
इसी से भ्रष्टाचार का अंदाजा लगाया जा सकता है। कुल तकनीकी और वाणिज्यिक नुकसान औसतन 19.2 प्रतिशत है। जम्मू-कश्मीर में 47.88 प्रतिशत और बिहार में 34.2 प्रतिशत के साथ कुछ सबसे अधिक नुकसान वाले राज्यों में से एक हैं।
अब कोरोना वायरस के कारण लगाए गए लॉकडाउन के कारण इन डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों के नुकसान में भारी इजाफा हुआ है और इसका कारण मुनाफे वाले इंडस्ट्रियल सेक्टर के बंद होने से डिमांड में कमी है जबकि नुकसान वाले घरेलू और कृषि के क्षेत्र में काफी मांग बढ़ी है। इससे पिछले दो महीनों में लगभग 30 से 40 प्रतिशत तक का नुकसान होने की संभावना है।
परंतु सरकार भी इस महामारी से पैदा हुई स्थिति का फायदा रिफॉर्म लाकर उठाना चाहती है। बिजली वितरण क्षेत्र में सुधारों पर जोर देने के लिए, केंद्र सरकार ने राज्य को बिजली सब्सिडी के लिए डाइरेक्ट बेनीफिट ट्रांसफर को लागू करने के लिए प्रोत्साहित किया और वे 0.25 प्रतिशत अधिक उधार ले सकते हैं।
केंद्र सरकार चाहती है कि किसानों और घरेलू परिवारों को बिजली सब्सिडी डीबीटी के माध्यम से हस्तांतरित की जाए और हर उपभोक्ता चाहे वह किसी भी क्षेत्र यानि घरेलू, कृषि और वाणिज्यिक क्षेत्र का ही क्यों न हो, वह बाजार के दरों पर शुरू में बिजली की एक ही कीमत चुकाए।
उसके बाद, राज्य अपनी नीतियों और दरों के अनुसार उपभोक्ता के खातों में सब्सिडी ट्रांसफर कर सकते हैं। यही नहीं सरकार पावर डिस्ट्रिब्यूशन में निजीकरण को बढ़ावा दे रही है जिससे डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों को होने वाले नुकसान को कम किया जा सके जिसे बाद में राज्य सरकार को ही भुगतान करना पड़ता है। कोविड -19 राहत पैकेज में, वित्त मंत्री ने केंद्र शासित प्रदेशों में डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों को बचाने और इन कंपनियों के निजीकरण में 90,000 करोड़ रुपये की liquidity देने की घोषणा की थी।
बिजली के क्षेत्र में निजीकरण और सब्सिडी का DBT के जरीए ट्रांसफर डिस्ट्रिब्यूशन कंपनियों की दक्षता में बढ़ेगी और बिजली विभाग में बाबुओं द्वारा भ्रष्टाचार के रास्ते खत्म होंगे। सरकार को बस यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि नौकरशाह इन सुधारों को जल्द से जल्द लागू करें।