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‘इनको आता ही नहीं’, चीन के पास युद्ध लड़ने का कोई अनुभव नहीं है, इनकी सेना सिर्फ धमकियां देती हैं

साउथ चाइना के लिए ये क्या यूरोप-अमेरिका से लड़ेंगे!

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
15 May 2020
in रक्षा, रणनीति, विश्व
चीन, भारत, युद्ध, यूरोप, अमेरिका, ताइवान, सेना, चीनी,
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जब से वुहान वायरस दुनिया भर में तांडव मचा रहा है, तभी से पूरा विश्व चीन के विरुद्ध मोर्चा संभाल चुका है, और बौखलाहट में चीन साउथ चाइना सी और ईस्ट चाइना सी में अपनी गुंडई दिखाकर अपने आप को महा शक्तिशाली सिद्ध करना चाहता है, मानो वह किसी भी प्रकार के युद्ध हेतु पूरी तरह तैयार है।

परन्तु सच कहें तो चीन का वास्तव में युद्ध करना लगभग ना के बराबर है, क्योंकि चीन की विशाल पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के पास वास्तविक युद्ध का नाममात्र का भी अनुभव नहीं है। चाइना ने वास्तव में पिछले डेढ़ सौ सालों में एक भी ढंग का युद्ध नहीं लड़ा है। जब भी उसने किसी ने युद्ध लड़ा है, उसने सदा मुंह की खाई है। उदाहरण के लिए 1279 में जब मंगोल शासक कुबलई खान ने धावा बोला, तो सॉन्ग वंश ताश के पत्तों की तरह बिखर गई।

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कम्यूनिस्ट शासन के आगमन से पहले भी चीन की स्थिति कोई बेहतर नहीं थी। दूसरे विश्व युद्ध में जापान ने उसका कचूमर बना दिया था। शहर के शहर बिना लड़े ही घुटने टेक दिए थे।

अगर वर्तमान पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की बात करें, तो उसने भी कोई बड़ा तीर नहीं मारा है। यदि किसी देश के साथ उसकी तुलना करनी ही है, तो भारतीय सेना से करनी चाहिए। यदि कुछ लोग भारत के वर्षों पुराने युद्धों की स्वीकार करने को इच्छुक ना हो, तो भी वो इस बात को अवश्य स्वीकार करेगा कि आधुनिक भारतीय सेना के पास विशाल अनुभव था, चाहे वह 1897 में सारागढ़ी का युद्ध हो, प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध हो, और स्वतंत्रता के पश्चात के युद्ध हों।

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पीपुल्स लिबरेशन आर्मी वैसे है भी क्या? यह कुछ कथित क्रांतिकारियों का एक गुट था, जिसने चीन में कम्यूनिस्ट शासन स्थापित किया था। 1962 के भारत चीन युद्ध को चीन चाहकर भी अपने उपलब्धियों में नहीं गिन सकता।

यह युद्ध सिर्फ इसलिए लड़ा गया था, ताकि चीन का तानाशाह माओ त्से तुंग चीन में भूखमरी के संकट से ध्यान हटा सके। उनके लिए सोने पे सुहागा की बात यह थी कि उस समय भारत पर जवाहरलाल नेहरू का शासन था, जिनके अपरिपक्व नेतृत्व के कारण भारतीय सेना को काफी नुकसान उठाना पड़ा था।

लेकिन उसके बावजूद चाइना के लिए यह विजय कोई बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं थी, क्योंकि इस युद्ध में काम संसाधन और बेकार शस्त्रों से सुसज्जित होने के बावजूद भारतीय सेना ने चीनी खेमे में तांडव मचा दिया था।

उदाहरण के लिए 18 नवम्बर 1962 को भीषण तूफान, घटिया उपकरण और अपर्याप्त सर्दी के वस्त्र होने के बावजूद 13 कुमाऊं रेजिमेंट के चार्ली कम्पनी के 125 वीर योद्धा रेज़ांग ला में चाइना की पूरी 2500 सैनिकों से सुसज्जित आर्टिलरी रेजिमेंट पर वज्र के समान टूट पड़े थे, और खुद मरकर भी 1500 से अधिक चीनियों को यमलोक भेजा। 1500 से अधिक तो खुद चीनियों ने स्वीकार किया है, असल में हमारे वीरों ने कितनों का संहार किया होगा, ये शायद ही कोई जानता हो।

What are some lesser known or interesting facts about the Indo ...

जब 1967 में चीन ने एक बार फिर यह कथा दोहराने का प्रयास किया, तो उसने नाथू ला और चो ला के क्षेत्रों में China को पटक पटक के धोया। इस भिड़ंत में China को कितना नुकसान हुआ, इसका अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि चीन को खुद स्वीकारना पड़ा था कि 400 से अधिक चीनी सैनिक इस युद्ध में मारे गए थे। इस युद्ध में भारत के प्रचंड विजय के कारण ही सिक्किम का भारत में विलय संभव हो सका था।

When Indian Army Defeated Chinese Badly in 1967, The Heroic Story ...

इसलिए चीन की PLA भारत से युद्ध करने से पहले सौ बार सोचेगी। इसके अलावा भी चीन ने किसी अन्य देश से युद्ध करके कोई उपलब्धि नहीं हासिल की। 1979 में उसने वियतनाम पर आक्रमण करने की भूल की, जिसने कुछ वर्ष पहले अपने से कहीं ज़्यादा शक्तिशाली अमेरिका को युद्ध में पटखनी दी थी। परिणामस्वरूप चीन एक बार फिर अपना सा मुंह लेकर रह गया।

ऐसे में China हद से हद साउथ चाइना सी और ईस्ट चाइना सी की अपनी गुंडई से आगे कुछ नहीं कर सकता। चीन में भले ही सत्ताधारी पार्टी को ताइवान पर चढ़ाई करने के लिए उकसाया जा रहा हो, परन्तु वास्तव में वह ताइवान के विरुद्ध आंख तक नहीं उठा सकता।

ऐसा इसलिए है क्योंकि ताइवान पर हमला करना किसी बेवकूफी से कम नहीं होगा। ताइवान भली भांति जानता है कि चीन उस पर कब्ज़ा करने के लिए कितना लालायित है, और उसके लिए वह पिछले 70 सालों से भी अधिक समय से China को उसी की भाषा में जवाब देने के लिए तैयारी कर रहा है। कल्पना कीजिए यदि अमेरिका और आस्ट्रेलिया भी ताइवान के साथ मोर्चा संभाल ले, तो?

चीन भले ही दुनिया को अपनी ताकत का खौफ दिखाता हो, परन्तु वास्तव में वह अपने प्रिय प्रतीक ड्रैगन के समान है – बिन बरसे गरजने वाले बादल। China के पास ना तो संसाधन है, और ना ही उसके सैनिकों में इतना शौर्य है कि वह वास्तव में कोई युद्ध लड़ सके। ऐसे में यदि वह वुहान वायरस के रोकथाम के बाद कोई युद्ध लड़ने की गलती भी करता है, तो उसे ऐसा सबक मिलेगा कि जीवन भर उस गलती को वो नहीं भूल पाएगा।

Tags: अमेरिकाचीनचीनीताइवानभारतयुद्धयूरोपसेना
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