जब बात आती है वामपंथियों की लंका लगाने की, तो हरीश साल्वे का नाम अनायास ही मुख पर आ जाता है। बहुत कम ऐसे व्यक्ति हैं जो वामपंथी उपद्रवियों को कानूनी प्रावधानों के आधार पर मुंहतोड़ जवाब दे सके, और हरीश साल्वे ऐसे ही एक व्यक्ति है। पूर्व नौसेना अफसर कुलभूषण जाधव की फांसी रुकवाना हो, या फिर प्वाइंट बाय प्वाइंट CAA विरोधी प्रोपेगैंडावादियों की धज्जियां उड़ानी हो, आप बस बोलते जाइए और हरीश साल्वे ने वह सब किया है।
अभी हाल ही में महोदय ने एक बार फिर से वामपंथी समुदाय की पोल खोलते हुए उन्हें न्यायपालिका की आड़ में छुपने वाला कायर बताया। राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों के समूह का प्रतिनिधित्व करती CAN फाउंडेशन द्वारा आयोजित ऑनलाइन वेबिनार में बातचीत के दौरान हरीश साल्वे ने एक श्रोता के प्रश्न का उत्तर देते हुए कहा, “कुछ ऐसे लोग भी हैं, जिन्हें जनता ने अपना प्रतिनिधित्व करने के लिए नहीं चुना है। लेकिन ऐसे लोग अदालत के जरिए सरकार पर अपनी हेकड़ी दिखाने को लालायित है। हमें ऐसे लोगों से सतर्क रहना पड़ेगा”।
हरीश साल्वे ने इसी वेबीनार में आगे बताया कि कैसे यह लोग मीडिया ट्रायल के जरिए असली ट्रायल की अवमानना करने में कोई कसर नहीं छोड़ते है। हरीश साल्वे के अनुसार, “कई लोग कोर्ट में सिर्फ इसलिए आते हैं, ताकि सरकार को नीचा दिखा सके। यदि न्यायाधीश उनके पक्ष में निर्णय नहीं सुनाता है, तो वे जज के ही चरित्र पर प्रश्न करते हैं”।
इसके अलावा हरीश साल्वे ने कहा, ” यह कहना कि कोई निर्णय एक पार्टी के पक्ष में लिया गया है, ना केवल अपने आप में एक हास्यास्पद विचार है, अपितु काफी गलत धारणा पेश करता है। सुप्रीम कोर्ट आपका डार्ट बोर्ड नहीं है। आप जजमेंट की आलोचना कर सकते हो, जजमेंट के अप्रोच की निन्दा कर सकते हो, पर यदि आपको सुप्रीम कोर्ट से सकारात्मक निर्णय ना मिलें, और फिर आप ये कहें कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला सही नहीं है, तो यह गलत है”।
अपने इस डिस्कशन में हरीश साल्वे ने किसी को नहीं छोड़ा। क्या हर्ष मंदर, क्या श्रीनिवासन जैन, सभी को हरीश साल्वे ने पटक पटक के धोया। बता दें कि हर्ष मंदर वहीं एक्टिविस्ट हैं, जिनपर CAA विरोध की आड़ में पूर्वोत्तर दिल्ली में हुए दंगों को भड़काने और सुप्रीम कोर्ट को अपमानित करने का आरोप भी लगा है।
साल्वे ने कहा कि कुछ लोग सुप्रीम कोर्ट की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते हैं,ऐसा कहकर अप्रत्यक्ष तौर साल्वे ने हर्ष मंदर के उस बयान पर भी निशाना साधा जब पिछले वर्ष दिसंबर में जमिया मिलिया के उपद्रवियों को संबोधित करते हुए अयोध्या मामले, कश्मीर और एनआरसी के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर सवाल उठाए थे। इसके साथ ही कहा था कि, “अब फैसला न संसद में न सुप्रीम कोर्ट में होगा। इसका फैसला अब सड़कों पर होगा।”
इसके अलावा इस वेबिनार में 2008 के मालेगांव मामले में झूठे आरोप के अन्तर्गत फंसाए गए लेफ्टिनेंट कर्नल प्रसाद श्रीकांत पुरोहित को बेल मिलने पर प्रश्न करने वाले श्रीनिवासन जैन को हरीश साल्वे ने बुरी तरह धोया और उन्हें कोर्ट में स्वयं केस लड़ने की चुनौती दी।
हालांकि, यदि हरीश साल्वे की धुलाई से किसी को सर्वाधिक आघात पहुंचा, तो वे थे वकील प्रशांत भूषण। हरीश साल्वे के विचारों को बकवास बताते हुए जनाब ने एक अन्य वक्ता का मत शेयर करते हुए कहा कि या तो हरीश साल्वे को मजदूरों के हालात का आभास नहीं है, या फिर वे जानबूझकर इसे अनदेखा कर रहे हैं। इतना ही नहीं, अधिवक्ता दिनेश द्विवेदी के बयान की आड़ में प्रशांत भूषण ने हरीश साल्वे पर बिकाऊ अधिवक्ता होने की ओर भी इशारा किया।
Dwivedi On Salve's diatribe: "Either Salve did not witness the plight of the migrants or is ready to overlook it.The first appears improbable as the whole world saw it for days.The second can only be prompted by some other reasons which only he would know"https://t.co/EpyOpdptau
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) May 31, 2020
लगता है प्रशांत भूषण को आभास नहीं है कि हरीश साल्वे कौन है। यह वही अधिवक्ता हैं, जिन्होंने अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में पाकिस्तान के हर खोखले दावे की पोल खोलते हुए पूर्व नौसेना अफसर कुलभूषण जाधव को मौत के मुंह में जाने से बचाया। इससे पहले हरीश साल्वे ने प्रशांत भूषण को भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश सरोश होमी कपाड़िया पर भ्रष्टाचार का झूठा आरोप लगाने के लिए भी आड़े हाथों लिया था।
यही नहीं, CAA विरोधियों की ज़बरदस्त धुलाई करते हुए उन्होंने अपने एक लेख में कहा था कि “मैं यह समझने में विफल हूं कि एक कानून जो एक निश्चित वर्ग के लोगों को निश्चित समय सीमा और कुछ पैमानों के आधार पर कुछ अधिकार प्रदान कर रहा है तो उसे कैसे कोई भेदभाव से परिपूर्ण घोषित कर सकता है? समानता के सिद्धांत का मतलब यह नहीं है कि हर कानून का universal application होना ही चाहिए।”
बता दें कि प्रशांत भूषण भी नागरिकता संशोधन कानून के विरोध करने वालों में से एक थे। वो नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ दिल्ली में विरोध प्रदर्शन में भी शामिल हुए थे। इस दौरान जब पुलिस ने उन्हें रोकने की कोशिश की तब भी वह अपने प्रदर्शन को जारी रखने पर अड़े रहे और पुलिस से बहस करने लगे। यहाँ भी प्रशांत भूषण एक वकील होने के बावजूद कानून पर अपने नाम का रोब दिखा रहे थे परन्तु कानून कहाँ बड़ा और छोटा देखता है और प्रशांत भूषण को कानून तोड़ने के लिए सबक दिया। दरअसल, उस दौरान सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण ने पुलिसवाले से कहा कि “आप जानते हैं मैं कौन हूँ?” इसपर एक पुलिस वाले ने सीधा जवाब देते हुए कहा कि, “नहीं! मैं नहीं जनता सर आपको”।
~Aap jaante hain main kaun hoon? ~
How would Lutyens India survive without this weapon?#PrashantBhushan pic.twitter.com/YJjDJxo8YO— Nandini 🇮🇳 (@NAN_DINI_) January 30, 2020
खैर, हर्ष मंदर हो या प्रशांत भूषण इनका विवादों से गहरा नाता है। पर जिस तरह से हरीश साल्वे ने इन्हें आइना दिखाया उससे इन्हें खूब मिर्ची लगी है। आगे भी हरीश साल्वे ऐसे लोगों को आइना दिखाने में कोई कस्र नहीं छोड़ी है। सच कहें तो हरीश साल्वे उन चंद लोगों में से हैं, जो सत्य बोलने से बिलकुल भी नहीं हिचकिचाते, चाहे वो किसी को प्रिय लगे या नहीं। हरीश साल्वे निस्संदेह भारत के सबसे बेहतरीन अधिवक्ताओं में से एक रहे हैं, वे भारत के पूर्व सॉलिसिटर जनरल भी रह चुके हैं। वैसे भी जब तथ्यों के आधार पर वामपंथियों और अफवाह फैलाने वाले लोगों की पोल खोलनी हो, तो अधिवक्ता हरीश साल्वे का कोई सानी नहीं।