चीन की प्रोपोगेंडा पत्रिका ग्लोबल टाइम्स ने भारत चीन की वर्तमान स्थिति पर एक लेख लिखा है जिसका शीर्षक है “Does international community favor India in its conflict with China?” हालांकि, यह आर्टिकल सिर्फ दो देशों, रूस और अमेरिका, को ध्यान में रखकर लिखा गया है। चीन ने जापान, फ्रांस, यूरोप के बाकी देश आदि कई देशों को अपने लेख में जगह नहीं दी है। यह लेख चीन की मनोवैज्ञानिक युद्धनीति का हिस्सा है। सेना और प्रशासनिक अधिकारी इनसे प्रभावित नहीं होते किंतु आम लोगों पर इनका प्रभाव पड़ता है। चीन ऐसी psychological tactics का इस्तेमाल करता रहता है। अभी पिछले दिनों चीन ने पैंगोंग झील पर पर्यटकों के जाने का वीडियो वायरल किया था और यह जताने की कोशिश की थी कि पैंगोंग झील पर उनका कब्जा हो गया है। इसे कई ट्विटर हैंडल से यह कहते हुए शेयर किया गया कि यह भारतीय इलाके की झील है। जबकि सत्य यह था कि 135 किलोमीटर लंबी झील का 60 फीसदी से अधिक हिस्सा पहले ही चीन के पास है, 1962 के भी युद्ध से पहले से ही।
ऐसा भ्रामक खबरों का इस्तेमाल शत्रु देश पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए किया जाता है। चीन की ये सभी नीतियां उसकी ही कमजोरी दिखाती हैं। चीन को अफसोस होना चाहिए कि जो हरकतें पाकिस्तान करता था अब चीन कर रहा है।
बहरहाल, लेख में चीन की बौखलाहट साफ दिखाई देती है। लेख में कहा गया है कि भारत उकसावे की कार्रवाई कर रहा है क्योंकि उसे इस बात पर दृढ़ विश्वास है कि चीन युद्ध नहीं करेगा। यह हास्यास्पद है कि खुद चीन ने LAC पर यथास्थिति बदलने की कोशिश की एवं उन इलाकों में अपनी सेना उतार दी जो किसी एक पक्ष के हिस्से में नहीं थे एवं दोनों पक्षों द्वारा वहाँ पेट्रोलिंग की जाती थी। चीन भारत को दबाव में लाना चाहता था, जिससे वह अमेरिका के पक्ष में न जाए, किंतु चीन के अनावश्यक उकसावे के कारण भारत और उसके संबंध इस कदर बिगड़े हैं कि यह सुधरने में दशकों लगेंगे।
चीन ने आरोप लगाया है कि भारत सरकार घरेलू समस्याओं से ध्यान हटाने के लिए ऐसे कदम उठा रही है, और वह अति राष्ट्रवाद से प्रेरित है। यह दोनों बात विरोधाभासी हैं। अगर भारत सरकार अति राष्ट्रवाद का शिकार होती तो बिना सोचे समझे फैसले लेती, अस्थिर बुद्धि से। जबकि घरेलू मुद्दों से ध्यान हटाने की साजिश रचने के लिए स्थिर दिमाग चाहिए। दोनों एकसाथ हो ही नहीं सकता।
वैसे भी भारत लोकतंत्र है, यहाँ विपक्ष को राष्ट्रीय सुरक्षा और आंतरिक मुद्दे में अंतर करने आता है। यही कारण है कि अधिकांश विपक्ष या सरकार में बैठे राजनीतिक दल चीन मुद्दे पर बयानबाजी नहीं कर रहे, इसे पूरी तरह सरकार और सेना पर छोड़ दिया गया है। जबकि आंतरिक राजनीति में कोरोना से लेकर बॉलीवुड तक के मुद्दों पर चर्चा हो रही है। इसके विपरीत चीन में एक तानाशाही सरकार है, जिस पर उसकी ही निष्कासित प्रोफेसर ने आरोप लगाया है कि चीन सरकार घरेलू असंतोष से ध्यान हटाने के लिए पड़ोसियों के साथ झगड़े बढ़ा रही है।
चीन को आंतरिक मुद्दों को सुलझाने पर भारत को ज्ञान नहीं देना चाहिए। जिस देश का 3/4 हिस्सा मानवाधिकारों से वंचित हो वह घरेलू मुद्दों को सुलझाने की बात करे, यह बेशर्मी की हद है।
अब आते हैं लेख के मूल मुद्दे पर, चीन ने यह बताने की कोशिश की है कि दुनिया या कहें कि रूस और अमेरिका भारत और चीन के युद्ध में नहीं पड़ेंगे। भारत इस भुलावे में है कि आज उसके प्रति दुनिया में सकारात्मक रुख है और चीन के प्रति गुस्सा।
यह मजेदार है कि चीन को अपने घरेलू असंतोष का तो ध्यान नहीं है साथ ही उसे दुनिया में क्या चल रहा है इसकी भी जानकारी नहीं। समस्या यही है कि मध्यकालीन सोच से ग्रस्त ये देश अपने भूभाग को दुनिया मानता है। रूस और चीन पूर्वी यूरोप से लेकर व्लादिवोस्टोक तक अनेक मुद्दों पर एक दूसरे के खिलाफ हैं। जबकि रूस और भारत की बात करें तो दोनों देशों के पारंपरिक रूप से बेहद अच्छे संबंध हैं। यह सत्य है कि रूस नहीं चाहता कि भारत और चीन के बीच युद्ध हो, किंतु यह तो भारत भी नहीं चाहता कि युद्ध हो, तो फिर रूस और भारत के संबंधों में टकराव कहाँ है। वैसे भी रूस ने चीन को हथियारों की आपूर्ति पर रोक लगा दी है, क्योंकि वह अक्सर रूसी तकनीक की नकल करके अपने स्वदेशी हथियार तैयार कर लेता है।
इसके विपरीत रूस भारत चीन तनाव के बीच भी भारत को सुखोई-30 और मिग-29upg की आपूर्ति के लिए प्रतिबद्ध है। वह हाल ही में अंडमान निकोबार द्वीपसमूह के नजदीक संयुक्त सैन्य अभ्यास में भी सम्मिलित हुआ था और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि भारत को चीन के साथ किसी युद्ध में उलझना पड़ा तो उसे किसी देश की आवश्यकता नहीं। भारतीय सेनाएं स्वयं सक्षम हैं। यही कारण है कि विस्तारवादी चीन बातचीत से मामला सुलझाना चाहता है।
रही बात अमेरिका की, तो चीन का यह आरोप भी बकवास है कि अमेरिका सिर्फ अपने हथियार बेचने के लिए भारत को उकसा रहा है। भारत के अधिकांश हथियार रूस में निर्मित हैं, थोड़े से हिस्से में इजराइल, फ्रांस और अमेरिका आदि हैं। तनाव के बीच भी भारत ने जो दो बड़े समझौते किये हैं वह रूस और इजराइल के साथ हुए हैं। अमेरिका के साथ कोई बड़ा रक्षा समझौता हुआ ही नहीं है।
लेख लिखने का कारण वैश्विक स्तर पर चीन पर बढ़ता दबाव है। भारत अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और जापान के साथ मिलिट्री लॉजिस्टिक पैक्ट कर चुका है और जल्द ही भारत और रूस के बीच भी यह होने वाला है। भारत पहले ही QUAD का हिस्सा है ऐसे में रूस का भी भारत के साथ समझौता होना, चीन को तीन तरफ से नुकसान पहुँचाएगा।
प्रथम तो वह भारत पर दबाव बनाने के जो प्रयास कर रहा है वह बुरी तरह विफल होंगे, उसकी जो स्थिति अभी है, उससे भी अधिक अपमान होगा, दूसरा भारत रूस को हिन्द-प्रशांत क्षेत्र में सक्रिय भूमिका निभाने के लिए आमंत्रित कर रहा है, यदि ऐसा हुआ तो चीन की स्थिति और भी खराब हो जाएगी।
तीसरा महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि चीन अमेरिका के खिलाफ इसी भरोसे पर डटा है कि रूस उसके साथ है, अगर रूस भारत की हिन्द-प्रशांत रणनीति का हिस्सा बन गया तो अमेरिका के खिलाफ लड़ाई में भी चीन को मुँह की खानी होगी।
राजनाथ सिंह के मॉस्को दौरे के बाद हमने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि रूस का इस दौरे के समय रवैया चीन को एक संदेश था कि रूस भारत के पक्ष में है। अब ग्लोबल टाइम्स का यह लेख इसकी पुष्टि करता है कि चीन को रूस और भारत का संदेश भली-भांति समझ आ गया है।
पूरे लेख में केवल एक बात सही है कि युद्ध हुआ तो दोनों पक्षों को नुकसान होगा। ग्लोबल टाइम्स इसके लिए बधाई का पात्र है कि उसने यह स्वीकार किया कि चीन के सैनिकों को चोट लग सकती है। वैसे तो ग्लोबल टाइम्स की माने तो दुनिया में चीन से मजबूत सेना है ही नहीं। खैर जैसा पहले बताया गया यह psychological tactics का हिस्सा है, चीन का उद्देश्य था कि इसके माध्यम से भारतीय जनमानस और नीति निर्माताओं को डराया जाए। किंतु इस लेख की हवा-हवाई बातों ने चीन की घबराहट को ही जाहिर किया है, जो रूस के प्रत्यक्ष रूप से भारतीय पक्ष में आ जाने की संभावना से पैदा हुआ है।