अज़रबैजान और अर्मेनिया के बीच सैन्य संघर्ष, दिन प्रति दिन बद से बदतर होता जा रहा है। सीरियन ऑब्जर्वेटरी ऑफ ह्यूमन राइट्स ने अपने रिपोर्ट में बताया है कि 11 अक्टूबर तक सीरिया से आए भाड़े के अतंकवादियो की संख्या सौ पार कर चुकी थी।अज़रबैजान के समर्थन में तुर्की द्वारा भेजे गए इन लड़ाकों की मौत अर्मेनियाई पक्ष के लिए बड़ा मनोबल बढ़ाने वाला है और अब यह युद्ध आर्मेनिया के पक्ष में जाता दिखाई दे रहा है। इस जीत में एक बड़ा योगदान पुतिन का भी है।
रूस अर्मेनियाई सेना को हथियार और गोला-बारूद उपलब्ध कराता रहा है, जिनमें से अधिकांश ईरान के रास्ते से ले जाया जाता है। मामला अब यह हो चुका है कि ईरान भी अज़रबैजान को रोकने के लिए, रूस के साथ अर्मेनिया का पक्ष ले रहा है। तुर्की भी लंबे समय से सीरिया के भाड़े के लड़ाकों को इस युद्ध में भेज रहा है लेकिन कभी स्वीकार नहीं किया। हालांकि, कई मानवाधिकार संगठनों और पत्रकारों ने उनकी उपस्थिति की पुष्टि की है।
अब जैसा कि द वाशिंगटन पोस्ट ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि युद्ध में मारे गए लड़ाकों के शवों को ट्रक में भर कर वापस भेजा जा रहा है। आज अगर जियो पॉलिटिक्स को देखा जाए तो मॉस्को एक अच्छी कूटनीतिक नीति का पालन कर रहा है, लेकिन तुर्की द्वारा दक्षिणी काकेशस में भाड़े के सैनिकों को भेजना और अज़रबैजान के द्वारा उनका उपयोग किए जाने पर रूस ने तीखी प्रतिक्रियाएं दी थी। रूस के Foreign Intelligence Chief Sergei Naryshkin ने कहा था कि यह क्षेत्र इस्लामिक आतंकवादियों का लॉन्चपैड बन सकता है।
ईरान के अर्मेनिया के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध हैं और दोनों देशों का आर्थिक जुड़ाव तथा परिवहन कनेक्टिविटी भी है। इसी का फायदा उठा कर रूस आर्मेनिया की मदद कर रहा है। पुतिन ने एर्दोगन के खिलाफ एक बेहतरीन कूटनीति का इस्तेमाल किया है। उन्होंने इसी बहाने से ईरान को भी तुर्की के खिलाफ कर दिया है। अजरबैजान और तुर्की की दोस्ती देख कर अब तेहरान को इन दोनों के इरादो पर संदेह होना तय है। रूस और ईरान दोनों यह समझ चुके हैं कि जैसे-जैसे युद्ध दिन-प्रतिदिन और भीषण होता जा रहा है, जल्द ही यह नियंत्रण से बाहर हो जाएगा और पूरे क्षेत्र को एक बेकाबू जातीय और धार्मिक संघर्ष में बदल देगा।
स्थिति कितनी खतरनाक हो चुकी है यह मृत्यु-दर को देख कर अंदाजा लगाया जा सकता है। अर्मेनियाई लोगों ने कहा कि 16 अक्टूबर को उनकी सेना में मरने वालों की संख्या बढ़कर 604 हो गई है। अज़रबैजान ने मरने वालों की संख्या नहीं जारी की, लेकिन उनकी संख्या और अधिक होने की संभावना है। अज़रबैजान के अधिकारियों ने 2,300 अर्मेनियाई लोगों को मारने का दावा किया है और अर्मेनियाई लोगों ने 13 अक्टूबर को अज़रबैजान के 5000 सैनिकों को मारने का दावा किया है।
जबकि अर्मेनिया ने 12 अक्टूबर को 35 नागरिकों की मौत का दावा किया और अज़रबैजान ने दावा किया कि 11 अक्टूबर को उसके 46 नागरिकों की मौत हुई थी। आने वाले दिनों में इस संख्या का कई गुना बढ़ना तय है।
एर्दोगन ने सोचा कि अज़रबैजान को युद्ध में धकेल कर, वे वहां की ऊर्जा संसाधनों के साथ-साथ उस क्षेत्र में स्थायी प्रभाव जमाने में भी सफल हो जाएंगे लेकिन पुतिन के रहते यह संभव नहीं था। पुतिन अपने पूर्व यूएसएसआर के देशों को इस्लामिस्ट एर्डोगन के हाथो में कैसे जाने दे सकते थे। वहीं ईरान भी यह चाहता है कि आसपास में हो रहे युद्ध की जल्दी समाप्ति हो, जिससे उस क्षेत्र में शांति की स्थापना हो सके।
अब ऐसा लग रहा है कि आर्मेनिया रूसी हथियारों और गोला-बारूद के समर्थन के साथ-साथ रूस से आने वाले निजी लड़ाकों के सहयोग से इस युद्ध को अपने पक्ष में कर लेगा। इससे दक्षिणी काकेशस में तुर्की प्रभाव की, किसी भी प्रकार की संभावना समाप्त हो जाएगी। इसके साथ ही अज़रबैजान को तत्काल शांति समझौते के लिए मजबूर किया जा सकेगा। अब धीरे-धीरे यह स्पष्ट होते का रहा है कि पुतिन की दूरदर्शी नीतियों की मदद से यह युद्ध आर्मेनिया के पक्ष में झुक गया है।