आज अगर चीन दुनिया के सबसे बड़े खतरे के रूप में सामने है तो उसका सबसे बड़ा श्रेय 1970 के दशक में अमेरिका के NSA तथा उसके बाद विदेश मंत्री का पद संभालने वाले हेनरी किसिंजर को जाता है। अब एक बार फिर से चीन के चीयरलीडर कहे जाने वाले किसिंजर ने अमेरिका के होने वाले राष्ट्रपति जो बाइडन को चीन से दोस्ती करने की सलाह दी है।
हेनरी किसिंजर ने कहा है कि बाइडन प्रशासन को चीन के साथ बातचीत की लाइनों को बहाल करने के लिए जल्द से जल्द कदम बढ़ाना चाहिए जो ट्रम्प के कार्यकाल के दौरान खराब हुए थे और सैन्य संघर्ष की दिशा में आगे बढ़ गए थे।
अपने चीन प्रेम के लिए मशहूर किसिंजर के इस बयान के तुरंत बाद चीन से समर्थन भी मिलना शुरू हो गया और चीनी मीडिया में उनके बयान को किसी भगवान के बयान की तरह पेश किया गया। CCP मुखपत्र ग्लोबल टाइम्स ने लेख प्रकाशित करते हुए लिखा “अमेरिका को किसिंजर की चेतावनी पर ध्यान देना चाहिए।”
ग्लोबल टाइम्स ने धमकी देते हुए आगे लिखा कि, “कई चीनी लोगों का मानना है कि अमेरिका चीन के विकास को रोकना चाहता है और ताइवान स्ट्रेट और दक्षिण चीन सागर में चीन को उकसाना जारी रखेगा। ऐसे में चीनी अमेरिका द्वारा शुरू किए गए युद्ध के लिए शारीरिक और मनोवैज्ञानिक तैयारी कर रहे हैं।“ इस लेख में आगे अमेरिका के सहयोगी देशों के लिए चेतावनी के रूप में यह भी लिखा गया है कि सहयोगी देशों को भी किसिंजर की चेतावनी पर ध्यान देने की जरूरत है अन्यथा एक बार युद्ध शुरू होता है तो उन सहयोगी देशों का हाल दो लड़ने वाले हाथी के पैरों के नीचे घास जैसी हो जाएगी। वहीं CGTN ने भी इसी तरह का एक लेख प्रकाशित किया।
किसिंजर को चीन के चीयरलीडर के रूप में जाना जाता है। यह किसिंजर ही थे जिन्होंने पाकिस्तान की मदद ले कर 1972 में गुप्त रूप से चीन का दौरा किया था और Zhou Enlai से मुलाक़ात कर चीन के लिए अमेरिका के साथ सम्बन्धों का दरवाजा खोला था।
यही नहीं, चीन को “दीर्घकालिक हित को ध्यान में रखकर नीतियाँ बनाने वाले देश” के रूप में प्रचारित करने का का श्रेय भी किसिंजर को ही जाता है। जबकि इतिहास या वर्तमान देखा जाए तो चीन की एक भी नीति सफल होती नहीं दिखाई दे रही है। चीन की “one-child policy”, “Belt and Road Initiative”, “one country-two system” जैसी नीतियाँ दर्शाती हैं कि चीन ने लंबे समय के हितों को ध्यान में रखकर जितनी भी नीतियाँ बनाई हैं, उनमें से अधिकतर फेल ही साबित हुई हैं। यह भ्रांति चीन के पहले प्रिमियर Zhou Enlai और तत्कालीन अमेरिकी NSA Henry Kissinger के बीच वर्ष 1972 में हुई एक बैठक के बाद ही फैली थी।
कहा तो जाता है कि किसिंजर एक बेहद सक्षम रणनीतिकार थे, लेकिन वास्तव में देखा जाए तो वह किसी अवसरवादी बेवकूफ से कम नहीं थे। 1971 में बंगालदेश में हो रहे हिंदुओं और बंगाली मुसलमानों पर पाकिस्तान के अत्याचार को नजरंदाज कर भारत के खिलाफ विमानवाहक पोत USS एंटरप्राइज के नेतृत्व में यूएस 7th फ्लीट को भेजने वाले किसिंजर के कई ऐसे कारनामे हैं जिससे जान कर यह स्पष्ट हो जाएगा कि वह किस तरह के अवसरवादी तथा चीन के प्रिय मित्र थे। चीन के लगातार धोखे के बावजूद चीन की तरफदारी करना उनके चीनी नेताओं से मिलने वाले लाभ को भी स्पष्ट करता है। 1970 के दशक में किसिंजर का अमेरिकी राष्ट्रपतियों पर मजबूत प्रभाव था (निक्सन से बेहद मजबूत)। 1969 से ले कर 1977 तक तो वे पहले NSA और फिर विदेश मंत्री रहे और उसके बाद अमेरिकी विदेश नीति को प्रभावित करने के लिए उन्होंने किसिंजर एसोसिएट्स की स्थापना कर ली। यह सभी को पता है कि अमेरिका में थिंक टैंक नीति निर्धारण प्रक्रिया में एकीकृत भूमिका निभाते हैं।
1969 में चीन की सोवियत संघ के खिलाफ युद्ध की स्थिति को देखते हुए किसिंजर ने पाकिस्तान को समर्थन और चीन के साथ दोस्ती करने की कवायद शुरू की। एक बात तो स्पष्ट थी कि चीन किसी भी स्थिति में अमेरिका का मित्र नहीं था। लेकिन फिर भी वे अपने चीन प्रेम की राह पर आगे बढ़ते रहे। यह दोनों ही कदम भारत के खिलाफ थे और तब से भारत के साथ अमेरिका के रिश्तों में भी दरार आई।
आज तक यह किसी को समझ नहीं आई कि आखिर क्यों किसिंजर चीनी क्रूरता, जहां माओ के ग्रेट लीप फॉरवर्ड (1958-1962) में 45 मिलियन चीनी मारे गए, उसके बाद सांस्कृतिक क्रांति (1966-1976) ने लगभग 20 मिलियन लोगों की जान ली, उसके बावजूद चीन की चीयरलिडिंग करते हैं। विडम्बना तो ये है कि किसिंजर को माओ एक “दार्शनिक राजा” के रूप लगते हैं और यह उनकी किताब On China से स्पष्ट भी होती है।
आज जब विश्व के सामने चीन सबसे बड़ा खतरा बना हुआ और उसके दिये गए कोरोना महामारी ने 1.33 मिलियन लोगों को मौत की नींद सुला दिया तब ऐसे में ये दुनिया के सबसे बड़े बेवकूफ चीन के साथ सम्बन्धों को सुधारने की बात कर रहे हैं। अब पूरी दुनिया को चीन के वास्तविक रंग का पता चल चुका है। ऐसे में यह देखना है कि बाइडन हेनरी किसिंजर के मन्दारिन में रंगे वैश्विक दृष्टिकोण को अपनाते हैं या नहीं।