चीन ने ASEAN और इंडो-पेसिफिक क्षेत्र की अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ मिलकर हाल ही में दुनिया के सबसे बड़े ट्रेडिंग ब्लॉक यानि RCEP का समझौता पक्का किया है। पिछले वर्ष भारत ने अपने आप को इस समझौते से बाहर रखने का फैसला लिया था, जिसका भारत में कुछ “अर्थशास्त्रियों” ने विरोध भी किया था। इन मौसमी विशेषज्ञों ने यह दावा किया था कि भारत RCEP से बाहर रहकर अपने आप को आर्थिक तौर पर दुनिया से अलग-थलग कर रहा है। हालांकि, इन विशेषज्ञों के दावों की अब पोल खुलती नज़र आ रही है। ऐसा इसलिए, क्योंकि अब चीन खुद इस बात के संकेत दे रहा है कि RCEP से उसे कोई आशा नहीं है और इसका विफ़ल होना निश्चित है।
दरअसल, RCEP का समझौता होने के बाद भी चीन बड़ी ही आक्रामकता के साथ दक्षिण कोरिया और जापान के साथ एक परस्पर व्यापार समझौते के लिए ज़ोर लगा रहा है। इतना ही नहीं, एक हैरान करने वाले फैसले में चीनी राष्ट्रपति ने यह भी कहा है कि चीन RCEP के बाद अब Comprehensive and Progressive Agreement for Trans-Pacific Partnership (CPATPP) का हिस्सा बनने का भी इच्छुक है। यह सब तब हो रहा है जब चीन पहले ही दुनिया के सबसे बड़े ट्रेडिंग ब्लॉक का हिस्सा बन चुका है। स्पष्ट है कि चीन अब खुद RCEP को लेकर आशावादी नहीं रहा है और उसने सिर्फ Eyeballs आकर्षित करने के लिए ही यह सब किया है। कोरोना के बाद डूबती इकॉनमी और टूटती सप्लाई चेन्स को दुरुस्त करने की चीन की आखिरी कोशिश विफ़ल साबित हो रही है।
RCEP से चीन का मोह भंग होने के कई कारण हैं। पहला तो भारत, जिसने इस समझौते से बाहर होने में ही भलाई समझी। अगर भारत इसका सदस्य बन जाता तो RCEP को जबरदस्त सफलता मिलती और बाकी सभी सदस्य देशों का भी आत्मविश्वास बढ़ता। हालांकि, अब RCEP के सभी सदस्यों को चीन के बढ़ते प्रभाव का खतरा सताता रहेगा। अगर भारत RCEP का हिस्सा होता, तो यह आसानी से चीन के प्रभाव को चुनौती देकर बाकी देशों के लिए बेहतर आर्थिक माहौल बनाने में सहायक सिद्ध हो सकता था।
दूसरा कारण यह भी है कि जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ चीन के संबंध बेहद खराब हैं, और ये दोनों ही देश रणनीतिक तौर पर अमेरिका की तरफ़दारी करते रहे हैं। ऐसे में ये दोनों अर्थव्यवस्थाएँ कल को RCEP का राजनीतिक इस्तेमाल कर चीन के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती है। RCEP में ऑस्ट्रेलिया और जापान दो सबसे अहम देश हैं और चीन के साथ इन दो देशों के ही सबसे ज़्यादा विवाद भी हैं। ऐसे में ये दो देश भविष्य में चीन के लिए बड़ी मुश्किलें पैदा कर सकते हैं।
इसके अलावा जिस प्रकार भारत ने RCEP के बाद अब कहा है कि वह यूरोप, अमेरिका और विकसित अर्थव्यवस्थाओं के साथ मिलकर व्यापार समझौतों को आगे बढ़ा सकता है, उसने भी चीन में असुरक्षा की भावना को भर दिया है। चीन को डर है कि कहीं भारत इन विकसित देशों के साथ मिलकर वैश्विक पटल पर चीन पर हावी ना हो जाये। ऐसे में उसने भी कहा है कि वह भारत की तरह ही पश्चिमी देशों के साथ व्यापार बढ़ाने को लेकर इच्छुक है।
RCEP जॉइन ना करने को लेकर भारत में बेशक कुछ लोग चिंतित हों, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं है कि इसको लेकर सबसे ज़्यादा चिंता बीजिंग में देखने को मिल रही है। भारत ने अपने एक फैसले से ना सिर्फ अपने यहाँ घरेलू बाज़ार के चीनीकरण से बचाया है, बल्कि दुनिया पर चीन के आर्थिक कब्जे को भी टाला है। अब भारत ने RCEP को उस मोड पर पहुंचा दिया है जहां खुद चीन RCEP को लेकर हतोत्साहित हो चुका है।