देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों का ऐलान हो चुका है, जिसमें से एक पश्चिम बंगाल भी है। ऐसे में दो बार से मुख्यमंत्री रहीं TMC नेता ममता बनर्जी को सबसे बड़ी चुनौती इस बार बीजेपी से मिल रही है, लेफ्ट और कांग्रेस से तो ममता सुनिश्चित हैं, लेकिन उनकी परेशानी बीजेपी है जिसको लगातार बंगाल में भारी जनसमर्थन देखने को मिल रहा है। वहीं TMC की छवि नकारात्मक हो गई है। ऐसे में ममता की एक सबसे बड़ी परेशानी उनके उम्मीदवार भी हैं जो कि चुनाव से पहले ही हाथ खड़े कर दे रहे हैं।
ममता बनर्जी के लिए 2021 का विधानसभा चुनाव एक ऐसी पहेली है, जिसकी काट करना उनके लिए मुश्किल हो गया है। ऐसे में ममता के कई दिग्गज नेता उस श्रेणी में आ गए हैं जो न चुनाव लड़ना चाहते हैं न ही कहीं किसी दूसरी पार्टी में जाना चाहते हैं क्योंकि उन पर ममता अपनी पुलिस का इस्तेमाल करके आपराधिक केस कर सकती हैं। इन परिस्थितियों के बीच राज्यमंत्री लक्ष्मी रत्न शुक्ला, रबीरंजन चट्टोपाध्याय जैसे अनेक विधायक ऐसे हैं जो ममता के लिए अब चुनाव नहीं लड़ना चाहते क्योंकि TMC के झंड़े तले उन्हें अपनी हार ही दिख रही है।
और पढ़ें- हार को निश्चित देखकर ममता बनर्जी के करीबी नेताओं ने कहा “हमें अब चुनाव लड़कर भद्द नहीं पिटवानी”
इन बगावती नेताओं की सूची में अब प्रभावशाली माने जाने वाले मुस्लिम नेता सिद्दीकुल्लाह चौधरी का नाम भी जुड़ गया है। उनका कहना है कि वो अपनी मंगलकोट विधानसभा सीट से चुनाव नहीं लड़ेंगे। उन्होंने इसकी वजह पार्टी के जिला स्तर पर ‘असंगठनात्मक तरीके से काम करने’ और ‘शिष्टाचार की कमी’ को बताया है। उनका कहना है कि वो पार्टी सुप्रीमो ममता बनर्जी तक अपनी सारी बात पहुंचा चुके हैं। इसलिए किसी को कोई संशय नहीं होना चाहिए।
ममता के बड़े अल्पसंख्यक नेता ने अचानक से लिए अपने फैसले के बारे में कहा, “मैंने अपनी पार्टी के जिला नेतृत्व की कमजोरी के बारे में पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी को सबकुछ बता दिया है। मुझे लगता है कि जिले के कुछ पार्टी नेता इस कठिन चुनाव में उस तरह से काम नहीं कर रहे हैं, जैसा कि उन्हें करना चाहिए।” पर ऐसा क्यों है कि ये सभी लोग अचानक ही चुनाव न लड़ने की बात कर रहे हैं, क्योंकि ये कमी जिला स्तर की नहीं राज्य के स्तर की भी बन गई है।
पार्टी के बदलें रवैए के कारण ही TMC का एक बड़ा धड़ा बीजेपी में शामिल हो चुका है। बीजेपी में मुकुल रॉय से शुभेंदु अधिकारी और राजीव बनर्जी जैसे नेता शामिल हो चुके है़ं जो कल तक ममता के लिए तुरुप के इक्के का काम करते थे। इन नेताओं के साथ पार्टी का एक बड़ा रेला भी बीजेपी की तरफ जा चुका है और परिणाम भयावह हो गए हैं क्योंकि ममता अब अपने भतीजे अभिषेक बनर्जी और पार्टी के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के साथ अकेली पड़ चुकी हैं।
और पढ़ें- दिनेश त्रिवेदी का त्यागपत्र अर्थ है ममता की बर्बादी, नतीजे आने से पहले ही नतीजे आ चुके हैं
बीजेपी की इसी नीति का नतीजा है कि आज TMC के नेताओं को अपनी जीत का कोई आत्मविश्वास नहीं है। इसलिए वो नहीं चाहते कि किसी भी कीमत पर ममता के साथ चुनाव लड़ें, जिससे ममता बनर्जी के लिए सबसे बड़ी दिक्कत अपने उम्मीदवारों को चुनने की हो गई है, क्योंकि उन्हें जिताऊ उम्मीदवार मिल ही नहीं रहे हैं।