एडमिरल फिलिप डेविडसन को ट्रम्प प्रशासन के दौरान 2018 में अमेरिका की इंडो-पसिफ़िक कमांड का 25वां कमांडर बनाया गया था। डेविडसन उन अमेरिकी कमांडरों में हैं जिन्हे उनके चीन विरोधी छवि के लिए जाना जाता है। डेविडसन जो चीन को अमेरिका के साथ ही स्वतन्त्र विश्व के लिए खतरा बताते हैं, उन्हें इंडो पसिफ़िक जैसे सबसे महत्वपूर्ण समंदर का कमांड बनाना ट्रम्प की एक समझदारी भरी नीति थी। ट्रम्प की विदाई के बाद से बाइडन चीन के साथ सम्बन्ध सुधारने की कोशिश में हैं, लेकिन फिलिप उनके रस्ते में खड़े हैं।
हाल ही में उन्होंने कांग्रेस के समक्ष 27 बिलियन डॉलर के बजट की मांग की है। यह मांग पेंटागन के बजट से अलग है और इसको बीजिंग को केंद्र में रखकर बनाया गया है। कांग्रेस के लिए इस मांग को ठुकराना आसान नहीं होगा क्योंकि एडमिरल फिलिप अमेरिका की सबसे बड़ी सैन्य कमांड के सबसे बड़े अधिकारी हैं। बता दें कि, अमेरिका की कुल 11 कमांड हैं जिसमें हिन्द प्रशांत क्षेत्र में रखकर बनाई गई कमांड इस समय सबसे बड़ी है। इसमें सैन्य और असैन्य कर्मचारियों को जोड़कर कुल 3,80,000 लोग हैं।
साथ ही एडमिरल समय समय पर अपने बयानों से यह जाहिर करते रहे हैं की चीन कैसे अमेरिका के लिए सबसे बड़ा खतरा है। इस प्रकार उन्होंने पहले ही अपनी मांग के पक्ष में अनुकूल माहौल बना रखा है। उन्होंने अपने बयान में कहा था “मैं मानता हूँ की चीन अमेरिका के लिए ही नहीं स्वतन्त्र समाजों के लिए भी इस सदी का सबसे बड़ा खतरा है।”
इंडो पसिफ़िक क्षेत्र के लिए अतिरिक्त धन की मांग करते हुए डेविडसन ने यह साफ कर दिया है की वह इस क्षेत्र में मौजूद अमेरिकी सैन्य अड्डों को और मजबूत बनाना उनकी प्राथमिकता है। इसकी शुरुआत गुआम के सैन्य अड्डे से होगी। पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में स्थित अमेरिकी सैन्य बेस है। फिलिप ने कहा है की वह इस द्वीप की एंटी एयर और एंटी मिसाइल क्षमता को बढ़ाएंगे। उनका कहना है की यह बेस न सिर्फ मिलिट्री कार्रवाई के लिए आधार बनेगा बल्कि यह इस क्षेत्र में अमेरिकी सेना के लिए ‘होमलैंड’ का काम भी करेगा। स्पष्ट है डेविडसन इस बेस को चीन से किसी भी संभावित युद्ध की स्थिति में अमेरिकी सेना के मुख्य आधार की तरह तैयार करने वाले हैं।
हमने एक लेख में बताया था की कैसे चीनी मिसाइलें अमेरिका के लिए खतरा बन गई हैं। चीन की मध्यम दुरी की मिसाइलें क्षेत्र में अमेरिकी वर्चस्व के लिए सबसे बड़ी चुनौती है। यही कारण है की फिलिप डेविडसन ने कांग्रेस से अमेरिका के मिसाइल प्रोग्राम के लिए विशेष रूप से धन मांगा है। एडमिरल फिलिप भली भांति जानते हैं की ताईवान के मुद्दे को लेकर अगले एक दशक में अमेरिका और चीन के बीच सैन्य टकराव भी हो सकता है।
बाइडन कितनी भी कोशिश करें, चीन के तुष्टिकरण के लिए कितने भी काम करें, चीन ताईवान मुद्दे को लेकर विनम्र नहीं होने वाला। वास्तव में बाइडन का आना चीन के लिए अवसर है। बाइडन चीन से अधिक ध्यान मिडिल ईस्ट की तरफ दे रहे हैं। वह रूस के प्रति रवैया सख्त किये हुए हैं जबकि वास्तविक खतरा चीन है।
चीनी तुस्टीकरण की नीति अपनाकर बाइडन ने यह साबित भी कर दिया है कि वह एक कमजोर राष्ट्रपति हैं। ऐसे में चीन इस मौके का फायदा भी उठा सकता है। बाइडन के शपथ ग्रहण के बाद ही चीन ने अपने फाइटर जेट्स ताईवान की वायुसीमा में भेजकर बहुत हद तक स्पष्ट कर दिया था की उसके इरादे क्या हैं।
यदि भविष्य में ताइवान के कारण कोई छोटा सैन्य टकराव भी होता है तो टकराव में सबसे पहले शामिल होने वाली अमेरिकी सैन्य कमांड इंडो पसिफ़िक ही होगी। डेविडसन ने वाशिंगटन स्थित थिंकटैंक American Enterprise Institute द्वारा आयोजित कार्यक्रम में कहा था “अगले 6 वर्षों को लेकर हम चिंतित हैं, क्योंकि इस दौरान ऐसा हो सकता है कि चीन क्षेत्र में स्टेटस क्यू बदलने की कोशिश करे, हो सकता है यह ताइवान के साथ हो।”। इसलिए डेविडसन किसी भी बात को भाग्य भरोसे नहीं छोड़ना चाहते हैं। उन्होंने यह भी मांग की है की अमेरिका को ताइवान का समर्थन करना चाहिए और उसे उत्साहित करना चाहिए की वह अपनी सेना को मजबूत करने के लिए और हथियार खरीदे।
डेविडसन की मांग बाइडन द्वारा चीन से रिश्ते सुधरने को लेकर हो रहे प्रयासों पर पानी फेर सकती है। किन्तु एक तरह से देखा जाए तो यह अमेरिका के लिए अच्छा ही है। क्योंकि एक प्रसिद्ध कहावत है, ‘शांति का मतलब है दुश्मन से लम्बा डंडा आपके पास हो’। यह तब और भी आवश्यक हो जाता है जब आपका दुश्मन चीन हो।