इजरायल और फिलिस्तीनी उग्रवादी गुट हमास के बीच सीजफायर लागू हो गया है। 11 दिनों तक चले भीषण संघर्ष में 232 फलस्तीनी लोगों की मौत हो गई है और 12 इजरायली भी मारे गए हैं। इस संघर्ष का न सिर्फ इन दोनों देशों पर बल्कि वैश्विक जिओपॉलिटिक्स पर गंभीर असर पड़ने वाला है। इजरायल के लिए यह संघर्ष जिओपॉलिटिक्स को देखते हुए सबक लेने वाला रहा है तो वहीँ कई देशों और व्यक्तियों को हमास की हार से भारी नुकसान होने वाला है। इस लिस्ट में चीन, ईरान, तुर्की, हमास के साथ साथ बाइडन भी है। आईये देखते हैं कैसे हमास की इजरायल के हाथो हार के कारण इन देशों का नुकसान होने जा रहा है या हो चुका है।
चीन
सबसे पहले बात चीन की। यह कम्युनिस्ट देश शुरू से ही खाड़ी के देशों में अपना सिक्का जमाना चाहता था। BRI के जरिये तथा ईरान के साथ 25 वर्षीय समझौता करने के बाद वह इसमें सफल भी हो रहा था। परन्तु इस युद्ध में उसका फिलिस्तीन समर्थक और इजरायल विरोधी चेहरा भी सामने आगया है। अभी तक इजरायल चीन को दोस्त समझता था और साथ ही BRI का हिस्सा भी था। परन्तु जैसे-जैसे इज़राइल-गाजा संघर्ष बढ़ता गया, बीजिंग ने इजरायल की कीमत पर ईरान और फिलिस्तीन का समर्थन करने का फैसला किया। चीनी विदेश मंत्रालय ने इजरायल के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के बयान को रोकने के लिए अमेरिका की निंदा की। यही नहीं, इजरायल ने CCP द्वारा संचालित मीडिया पर anti-Semitic propaganda चलाने का आरोप लगाया है। अंतत: इससे यहूदी राष्ट्र को यह एहसास होगा कि वह बीजिंग के साथ व्यापारिक संबंध कायम नहीं रख सकता जिसके चीन को कुछ गंभीर परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। इजरायल के पीएम बेंजामिन नेतन्याहू अब इजरायल की अर्थव्यवस्था से चीनी निवेश को कम कर सकते हैं। बता दें कि चीन ने इजरायल की अर्थव्यवस्था में भारी निवेश किया है जिसमें से हाइफ़ा बंदरगाह सबसे महत्वपूर्ण है, जिसे चीन की बीआरआई परियोजना में एक महत्वपूर्ण मील के पत्थर के रूप में देखा जाता है। इसके अलावा चीनी कंपनियां Ashdod में एक इजरायली बंदरगाह और तेल अवीव क्षेत्र के माध्यम से चलने वाली एक रेलवे परियोजना का निर्माण कर रही हैं। अब इजरायल को पता लग चुका है कि चीन उसकी पीठ में छुरा घोंप रहा है और इसलिए इजरायल में प्रत्येक चीनी निवेश खतरे में है। नेतन्याहू सरकार को यह एहसास हो गया होगा कि चीन एक बाहरी शक्ति है जो तटस्थता की आड़ में खाड़ी देशों के अन्दर अपना प्रभाव फैलाने की कोशिश करता है। परन्तु वास्तव में वह ईरान का साथी है और फिलिस्तीन को समर्थन देना जारी रखेगा।
ईरान
दूसरा देश ईरान है जिसे हमास की हार का सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ेगा। आज अगर हमास आतंक फ़ैलाने में कामयाब है तो यह ईरान की ही मदद से। हमास को हुए नुकसान से ईरान को भी बड़ा आघात पहुंचा है। हमास के ईरान द्वारा समर्थित कई बड़े कमांडर इस युद्ध में मारे जा चुके हैं। यही नही अब बाइडन को भी मजबूरन इजरायल के समर्थन में उतरना पड़ा है। बता दें कि अमेरिका के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही जो बाइडन ईरान के समर्थन में दिखाई दे रहे थे। यही नहीं, उन्होंने तो डोनाल्ड ट्रंप द्वारा रद्द किये गए परमाणु समझौते को वापस लाने की कवायद भी शुरू कर दी थी। इससे अब परमाणु समझौता भी खतरे में पड़ चुका है क्योंकि अगर इस समझौते का सबसे बड़ा विरोधी अगर कोई है तो वह इजरायल ही है। ईरान बाइडन का इस्तेमाल कर अपने ऊपर लगे प्रतिबंधों में भी ढील करने और इजरायल को घेरने की चाल चल रहा था। अब अमेरिका के राष्ट्रपति बाइडन का मजबूरन इजरायल के पक्ष में उतरना न सिर्फ हमास को बड़ा झटका है बल्कि ईरान के लिए भी बड़ी हार है।
अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन
यह संघर्ष स्वयं बाइडन का बहुत बड़ा नुकसान कर चुका है। फिलिस्तीन को समर्थन करने वाले बाइडन को राष्ट्रपति होने के नाते अमेरिका के रणनीतिक साझेदार इजरायल का समर्थन करना पड़ा। परन्तु उससे पहले तक वह इजरायल के प्रधानमंत्री नेतान्याहू को ही हमास के हमलों का जवाब न देने और सीजफायर करने को कह रहे थे। यानी अब विश्व के सामने उनका चेहरा सामने आ गया कि वह फिलिस्तीन के समर्थक हैं। यह नुकसान नहीं है तो क्या है? इतना ही नहीं, बाइडन प्रशासन ने फिलिस्तीनी शरणार्थियों को दी जाने वाली आर्थिक मदद पुनः बहाल कर दी है। व्हाइट हाउस ने बिना विचार विमर्श किए गुपचुप तरीके से हाल ही में दो हफ्तों में तीसरी बार फिलीस्तीनियों के लिए वित्तीय सहायता भेजी है, और हर बार रकम बढ़ाके भेजी है, जिसका रिपब्लिकन सांसदों ने भारी विरोध भी किया था।
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यही नहीं इससे उनके JCPOA यानी ईरान परमाणु समझौता को दोबारा जीवित करने के मंसूबे पर भी पानी फिर गया। इजरायल यह कभी नहीं चाहेगा कि यह परमाणु समझौता दोबारा हो, जिसकी आड़ में ईरान को परमाणु हथियार हासिल करने का मौका मिले। यह कहा जा सकता है कि बाइडन को हमास और इजरायल के बीच युद्ध से दोहरा झटका लगा है।
हमास
वहीँ अगर हमास की बात की जाए तो यह आतंकी संगठन पूरी तहर तहस-नहस हो चुका है, हार चुका है। इस युद्ध में सबसे अधिक क्षति गाजा स्थित हमास को ही हुई है। गाजा के मध्य शहर दीर अल-बाला, दक्षिणी शहर खान यूनिस व गाजा के वाणिज्यिक मार्ग अल-सफ्तावी स्ट्रीट पर भी कई हवाई हमले हुए। इजरायली सेना ने हमास आतकी कमांडरों के कई घरों को निशाना बनाया और कई टॉप कमांडरों को मार गिराया। इजराइल का दावा है कि उसने हमास के 160 लड़ाकों को मार गिराया है। हमास के आवास से लेकर टेक्नीकल सपोर्ट और हथियारों के जखीरों पर भी हवाई हमला हुआ। इस युद्ध से उबरने में हमास को अभी कई वर्षों का समय लग सकता है।
तुर्की
वहीँ अगर तुर्की की बात की जाये तो यह देश हमास का सबसे बड़ा समर्थक रहा है। हमास की हार और इजरायल की जीत, तुर्की के लिए हार ही है। फिलिस्तीन के लिए डिप्लोमैटिक सपोर्ट जुटाने से ले कर इजरायल को घेरने की बात करने वाले एर्दोगन अब इजरायल की जीत से बेहद ही नाराज है। एर्दोगन ने इजरायल को चेतावनी दी थी कि अगर पूरी दुनिया भी खामोश हो जाए तो भी तुर्की अपनी आवाज उठाता रहेगा। एर्दोगन ने कहा था, “मैंने सीरियाई सीमा के निकट जिस तरह दहशतगर्दों का रास्ता रोका, उसी तरह मस्जिद-ए-अक्सा की के तरफ बढ़ते हुए हाथों को भी तोड़ देंगे।” यही नहीं तुर्की ने इज़रायल पर प्रतिबंध लगाने की भी अपील की है। ईरान ने भी खुलकर फिलिस्तीनीयों का समर्थन किया है। साथ ही संयुक्त राष्ट्र और इस्लामिक देशों से इजरायल को फिलिस्तीन पर हमले करने से रोकने की अपील की है।
एर्दोगन ने रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन से यह भी कहा था कि फिलिस्तीनीयों के प्रति इजराइल के रवैये के खिलाफ अंतरराष्ट्रीय समुदाय को ‘उसे कड़ा और कुछ अलग सबक सिखाना’ चाहिए। तुर्की के उपराष्ट्रपति फुआत ओकते ने गुरुवार को दुनिया के इस्लामिक देशों को एकजुट होने और इजरायल के खिलाफ हमास के साथ खड़े होने का आह्वान किया। हालाँकि, इतनी कोशिशों के बावजूद हमास को बर्बाद होने से नहीं बचा सके। हमास की इस हार को तुर्की की भी हार कहा जाये तो गलत नहीं होगा।
देखा जाये तो इन पांचों को इजरायल की जीत और हमास की हार के कारण सबसे अधिक नुकसान झेलना पड़ा है। इजरायल ने हर बार की तरह इस बार भी दिखा दिया है हमास जैसे आतंकी संगठनों से कैसे पेश आया जाता है। विश्व के अन्य देशों को भी आतंक के खिलाफ लड़ाई में इसी आक्रामक रणनीति को अपनाना चाहिए।