चीनी सरकारी कंपनियों पर बढ़ता ऋण, चीन की अर्थव्यवस्था के लिए खतरा
चीन में सरकारी कंपनियों पर बढ़ता ऋण चीन की अर्थव्यवस्था के लिए खतरे की घंटी है। हाल ही में Nikkei Asia की रिपोर्ट के अनुसार चीनी सरकारी कंपनियों पर बढ़ते ऋण ने निवेशकों को डरा दिया है। वो कंपनी, जो सिविल इंजीनियरिंग और विनिर्माण से जुड़ी हैं, अर्थात जो चीन में इंफ्रास्ट्रक्चर विकास के लिए काम कर रही हैं, उन पर ऋण बढ़ता जा रहा है। चीन में इंफ्रास्ट्रक्चर विकास का अधिकांश काम विदेशी निवेश के जरिये होता है।
चीन में इस समय क्या आर्थिक संकट पैदा हुआ है, इसे समझने के लिए पहले सरकारी बांड और उससे जुड़ी प्रक्रिया को समझना आवश्यक है।
बांड दो प्रकार के होते हैं, सरकारी और निजी कंपनियों के। जब किसी प्रोजेक्ट के लिए सरकार अथवा निजी कंपनी को धन की आवश्यकता होती है तो वह निवेश आकर्षित करने के लिए बांड जारी करते हैं
जब सरकार इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट शुरू करती है तो वह इस काम के लिए आवश्यक धन जुटाने हेतु निवेशकों को आमंत्रित करती है। इसके लिए सरकार अक्सर अपने स्वामित्व वाली सरकारी कंपनी के जरिये, बांड जारी करती है। निवेशक सरकारी बांड में निवेश करते हैं।
बांड में निवेश करने पर सरकारी कंपनियां निवेशकों को एक निश्चित समय पर निश्चित ब्याज देती हैं। बांड में यह समझौता हो सकता है कि सरकारी कंपनी, निवेशक को हर 6 महीने पर 5% की दर से ब्याज का भुगतान करेगी। यह भुगतान कॉन्ट्रैक्ट में लिखी गई पूरी अवधि तक चलता है, जब तक बांड का समय खत्म नहीं होता या कहें कि बांड मैच्योर नहीं हो जाता। एक बाद एक निवेश पर 10 साल तक हर 6 महीने पर आपको ब्याज मिलता रहता है।
ऐसे कॉन्ट्रैक्ट 10 वर्षों, 15 वर्षों आदि जैसी लम्बी अवधि के होते हैं और समय पूरा होने पर अर्थात बांड मैच्युरिटी के बाद निवेशकों को उनके पूरे पैसे लौटने पड़ते हैं।
जब कोई निवेशक किसी सरकारी कंपनी में निवेश करता है तो सरकारी कंपनी कॉन्ट्रैक्ट के कारण उसे समय पर भुगतान करने के लिए बाध्य होती है। अगर सरकारी कंपनी पैसे वापस नहीं लौटा पाती तो सरकार अपनी साख बचाने के लिए खुद पैसे वापस करती है। एक बार अपने सरकारी बांड में निवेश किया तो आपका पैसा नहीं डूबेगा, इसकी जिम्मेदारी सरकार की है।
लेकिन चीनी सरकार ने अपनी सरकारी कंपनियों द्वारा लिए गए कर्जों को भरने से मना कर दिया है। ऐसे में जिन लोगों ने चीन की सरकारी कंपनियों में निवेश किया है, उनके पैसे डूब रहे हैं। यही कारण है कि अब निवेशक चीन में निवेश करने से डर रहे हैं।
बांड मैच्युरिटी पर भी पैसे न लौटाने के कारण चीनी सरकारी कंपनियों पर 2023 तक 2.14 ट्रिलियन डॉलर का कर्ज चढ़ जाएगा। 2020 की तुलना में चीनी कंपनियों पर कर्ज 60% तक बढ़ने वाला है।
अगर चीनी कंपनियां इसी तरह से कर्ज भुगतान में असफल रहती हैं तो वर्ष 2021 की समाप्ति पर चीन की कंपनियों का बकाया कर्ज भुगतान 748 बिलियन डॉलर होगा। 2022 में 669 बिलियन और 2023 में 727 बिलियन डॉलर का भुगतान शेष रह जाएगा।
इसके दो मुख्य कारण यह हैं कि चीनी सरकारी कंपनियां छोटी अवधि, दो साल या तीन साल, के लिए बांड निकलती हैं। इतने कम समय में लाभ कमाकर वापस भुगतान करना बहुत कठिन है, किन्तु कोरोना के फैलाव के कारण यह भुगतान असम्भव बन गया है। दूसरा कारण चीन का ग्लोबल सप्लाई चेन से बाहर खदेड़ा जाना है। चीन में निवेश के कारण इंफ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्ट बनकर तैयार हो जा रहे हैं, लेकिन विनिर्माण इकाइयों का पलायन, वैसा लाभ नहीं दे पा रहा जैसी उम्मीद चीनी कंपनियों को थी।
चीन के आर्थिक विकास में विदेशी निवेश का सबसे बड़ा योगदान रहा है। अब यही निवेश कर्ज बनकर उसकी अर्थव्यवस्था को दबा रहा है। चीन अपनी ही भीमकाय अर्थव्यवस्था के बोझ तले दबा जा रहा है।