पहली बार, नागपुर स्थित रक्षा निर्माण कंपनी, इकोनॉमिक एक्सप्लोसिव्स लिमिटेड (ईईएल) ने मंगलवार को पूरी तरह से स्वदेशी रूप से निर्मित मल्टी-मोड हैंड ग्रेनेड (एमएमएचजी) का पहला बैच भारतीय सेना को सौंप दिया। इकोनॉमिक एक्सप्लोसिव्स लिमिटेड (ईईएल) के अध्यक्ष एसएन नुवाल ने नागपुर के पास कंपनी की 2,000 एकड़ के परिसर में आयोजित एक समारोह में केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को प्रतीकात्मक रूप से ग्रेनेड भेंट किया।
सभा को संबोधित करते हुए, राजनाथ सिंह ने मल्टी-मोड हैंड ग्रेनेड (एमएमएचजी) के निर्माण को सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बीच सहयोग बढ़ाने और रक्षा निर्माण में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक बड़ा कदम बताया। उन्होंने कहा, “आज का दिन भारतीय रक्षा क्षेत्र के इतिहास में एक यादगार दिन है। जब रक्षा उत्पादन की बात आती है तो हमारा निजी उद्योग पुराना होता जा रहा है। यह न केवल रक्षा निर्माण के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है बल्कि हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा परिकल्पित ‘आत्मनिर्भर भारत‘ को प्राप्त करने में भी सहायक है।” रक्षा मंत्री ने डीआरडीओ और इकोनॉमिक एक्सप्लोसिव्स लिमिटेड (ईईएल) की सराहना करते हुए कहा कि संस्थानों ने कोविड-19 प्रतिबंधों के बीच मांगों की त्वरित पूर्ति की। उन्होंने इस कंपनी से अगले खेप की तेजी से डिलीवरी करने का आग्रह भी किया है।
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भारत में निजी उद्योग द्वारा निर्मित किए जा रहे गोला-बारूद का पहला उदाहरण
यह भारत में निजी उद्योग द्वारा निर्मित किए जा रहे गोला-बारूद का पहला उदाहरण है। सोलर इंडस्ट्रीज इंडिया लिमिटेड की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी इकोनॉमिक एक्सप्लोसिव्स लिमिटेड (ईईएल) ने पिछले महीने सशस्त्र बलों को उन्नत हथगोले की डिलीवरी शुरू की। अब तक 1 लाख MMHG की पहली खेप पहुंचाई गई है। इस अवसर पर थल सेनाध्यक्ष जनरल एमएम नरवणे, डीआरडीओ के अध्यक्ष जी सतीश रेड्डी और इन्फैंट्री के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल एके सामंतरा उपस्थित थे। इकोनॉमिक एक्सप्लोसिव्स लिमिटेड (ईईएल) ने भारतीय सेना और भारतीय वायु सेना को 10 लाख आधुनिक हैंड ग्रेनेड की आपूर्ति के लिए 1 अक्टूबर, 2020 को रक्षा मंत्रालय के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किए थे। डिलीवरी दो साल में पूरी की जाएगी। ये नए हथगोले प्रथम विश्व युद्ध के पुराने डिजाइन वाले ग्रेनेड नंबर 36 की जगह लेंगे, जो आज तक सेवा में था।
रक्षा मंत्रालय की प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार- “एमएमएचजी के पास रक्षात्मक (विखंडन) और आक्रामक (स्टन) मोड दोनों में मारक क्षमता रखने वाली एक विशिष्ट डिजाइन है। इस प्रकार के मल्टी-मोड हैंड ग्रेनेडअत्यधिक सटीक है,‘डिस्चार्ज टाइम’ अधिक है , उपयोग में बहुत विश्वसनीयता है और वे कैरिज के लिए भी सुरक्षित हैं।”
ग्रेनेड को DRDO की बैलिस्टिक रिसर्च लेबोरेटरी टर्मिनल द्वारा डिजाइन किया गया है। इकोनॉमिक एक्सप्लोसिव्स लिमिटेड (ईईएल) ने 2016 में डीआरडीओ से यह तकनीक हासिल की थी। 2017-18 में भारतीय सेना और DGQA द्वारा मैदानी, रेगिस्तान और ऊंचाई वाले क्षेत्रों में व्यापक गर्मी और सर्दियों में इस ग्रेनेड का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया था।
विज्ञप्ति में कहा गया है- “इकोनॉमिक एक्सप्लोसिव्स लिमिटेड (ईईएल) द्वारा निर्मित मल्टी-मोड हैंड ग्रेनेड की सामान्य स्टाफ गुणात्मक आवश्यकता (जीएसक्यूआर) कम से कम 95 प्रतिशत आवश्यकता थी परंतु 95% के मुकाबले 99.8 प्रतिशत की अत्यधिक बेहतर विश्वसनीयता प्राप्त की गयी है। मल्टी-मोड हैंड ग्रेनेड (एमएमएचजी) कहानी की सफलता की इस कहानी में 100 प्रतिशत स्वदेशी सामग्री के उपयोग से तो चार चाँद और लग गए।’’
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राजनाथ सिंह ने रक्षा क्षेत्र को एक आत्मनिर्भर उद्योग में बदलने के लिए किए गए उपायों को सूचीबद्ध किया जो सशस्त्र बलों की वर्तमान और भविष्य की जरूरतों को पूरा कर सकते हैं। उन्होंने उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में रक्षा औद्योगिक गलियारों की स्थापना, रक्षा उत्पादन और निर्यात संवर्धन नीति (डीपीईपीपी) 2020 का मसौदा तैयार करने, घरेलू कंपनियों से खरीद के लिए 2021-22 के पूंजी अधिग्रहण बजट के तहत 64 प्रतिशत आधुनिकीकरण कोष निर्धारित करने का आह्वान किया।
आत्मनिर्भरता और रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने के लिए मोदी सरकार ने उठाए हैं कदम
उन्होंने बताया कि सरकार ने आत्मनिर्भरता और रक्षा निर्यात को बढ़ावा देने के लिए 200 से अधिक रक्षा वस्तुओं की दो सकारात्मक स्वदेशीकरण सूचियों को अधिसूचित करने के साथ-साथ, आयुध निर्माणी बोर्ड (ओएफबी) को शामिल किया, स्वचालित मार्ग के तहत और सरकारी मार्ग के माध्यम से एफडीआई सीमा को 49 से बढ़ाकर 74 प्रतिशत तथा 74 प्रतिशत ऊपर किया और पूंजी खरीद के लिए “स्वदेशी रूप से डिजाइन, विकसित और निर्मित” श्रेणी को सर्वोच्च प्राथमिकता दी है।
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रक्षा मंत्री सिंह ने डीआरडीओ द्वारा उद्योगों के प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के बारे में भी बात की। बाद में प्रौद्योगिकी के मुफ्त हस्तांतरण’ के लिए एक इनक्यूबेटर होने के साथ-साथ परीक्षण सुविधाओं और 450 से अधिक पेटेंट तक पहुंच प्रदान करने के लिए रक्षा उद्यमों की सराहना भी की।
सिंह ने स्वदेशी रूप से विकसित उत्पादों जैसे मल्टी-मोड ग्रेनेड, अर्जुन-मार्क -1 टैंक, मानव रहित सतह वाहन और सी थ्रू आर्मर के लिए उद्योग की सराहना की। उन्होंने कहा- “इस तरह के उत्पादों का न केवल उत्पादन किया जा रहा है बल्कि बड़े पैमाने पर निर्यात भी किया जा रहा है। 2016-17 से 2018-19 तक ऑनलाइन निर्यात प्राधिकरणों की संख्या 1,210 थी। पिछले दो वर्षों में यह बढ़कर 1,774 हो गया है। इसके परिणामस्वरूप पिछले दो वर्षों में 17,000 करोड़ रुपये से अधिक का रक्षा निर्यात हुआ है।‘’
स्वदेशी कंपनिया भी दसॉल्ट, लॉकहीड और रेयथेओन जितनी माद्दा रखती हैं
मोदी सरकार में भारत की आत्मनिर्भरता पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है खासकर रक्षा के क्षेत्र में। रक्षा के क्षेत्र मे आत्मनिर्भरता राष्ट्रीय हित और सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। इस संदर्भ को केंद्र में रखते हुए भारत अपने रक्षा जरूरतों का स्वदेशिकरण करना चाहता है। इतने जटिल और वृहद रक्षा उपकरणों तथा सैन्य साजो समान के लिए आधारभूत संरचना, संसाधन और शोध के निर्माण में समय तो लगेगा, परंतु जब जागे तभी सवेरा। वैसे भारत ने इस मामले में आशातीत सफलता पायी है। तेजस, अर्जुन, आकाश,मिसाइल प्रतिरोधक क्षमता, अग्नि इसके कुछ छोटे उदाहरण है। रक्षा उत्पादो के स्वदेशीकरण से सैन्य ताकत तो बढ़ेगी ही साथ ही साथ भारत एक बड़ी आर्थिक और सामरिक ताकत भी बन कर उभरेगा जो अपने रक्षा सौदों के लिए दूसरे देश पर आश्रित नहीं रहेगा। भारत के टाटा, रिलायंस, एसएसएस डिफेंस, L&T जैसी स्वदेशी कंपनिया भी राफेल, बोइंग और लॉकहीड और रेयथेओन जितनी माद्दा रखती हैं। बस, ज़रूरत है तो उनके संवभावनाओ को तराशने की।