देश में कुछ ऐसी ताकतें हैं, जो कि इस्लामिक अराजकता को विस्तार देने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं। उनकी विचारधारा कुछ ऐसी होती है, जिससे देश की सुरक्षा पर खतरा हो सकता है। आतंकी संगठन तालिबान का पुनः अफगानिस्तान पर अधिपत्य होना वहां के आम निवासियों के लिए नई विपदाएं लाने वाला है। इसके विपरीत अफगानिस्तान में तालिबानी शासन से भारत का एक कट्टरपंथी वर्ग भी खुश है, जिनमें अलगाववादी ही नहीं बल्कि मुस्लिम समाज की मुख्य धारा के लोग भी हैं। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड से लेकर उत्तर प्रदेश की प्रमुख राजनीतिक पार्टी सपा के नेता एवं सांसद तक तालिबान के समर्थन में वक्तव्य देकर भारत में तालिबानी कनेक्शन के संकेत दे रहे हैं।
भारत जब अपनी स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूर्ण होने पर हीरक जयंती का आनंदोत्सव मना रहा था, तो उसी दिन भारत का हितैषी देश अफगानिस्तान अपने इतिहास को एक बार पुनः दोहरा रहा था। 20 साल की लड़ाई के बाद जब अमेरिकी सेना तालिबान से कथित समझौता कर वापस भाग गई, तो तालिबनी आतंकी संगठन ने पुनः काबुल पर अधिपत्य जमा कर अफगानिस्तानी स्थाई सरकार को पंगु बना दिया। ऐसे में अब निश्चित तौर पर ही अफगानिस्तान में अराजकता का वातावरण है लेकिन ये अराजकता भारत के कुछ विशेष लोगों बड़ी प्रसन्नता प्रदान कर रही है, एवं ये प्रसन्नता ही देश की आंतरिक सुरक्षा समेत संप्रभुता के लिए एक खतरा बन सकती है।
सपा के सांसद ने तालिबान को बता दिया स्वतन्त्रता सेनानी
जिस दिन तालिबान का कब्जा हुआ, भारत से तालिबान को बधाई देने वालों में सपा प्रमुख अखिलेश यादव के प्रिय नेता और लोकसभा सांसद शफीकुर्रहमान का नाम है। उन्होंने अपने वक्तव्य में तालिबानी आतंकियों की तुलना भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों के साथ कर दी, एवं उन्हें स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ने वाला घोषित कर दिया। हालांकि, इस संबंध में अब जब उनके ऊपर देशद्रोह का केस दर्ज कर लिया गया है, तो उन्होंने पलटी मार ली है। रहमान ने अपनी बयान को पलटते हुए कहा कि उनके बयान को गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया। हालांकि उन्होंने केस दर्ज होने के बाद दबाव में पलटी मार ली हो, किन्तु इससे तालिबान के प्रति उनका समर्थन स्पष्ट हो गया।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य ने भी किया समर्थन
ठीक इसी तरह ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य मौलाना खलीलुर रहमान सज्जाद नोमानी ने भी तालिबान आतंकियों के समर्थन में ही बयान दिया है। उन्होंने कहा, “हिन्दी मुसलमान आपको सैल्यूट करता है। पूरी दुनिया ने देखा कि कैसे एक निहत्थी कौम ने दुनिया की सबसे मजबूत फौजों का मुकाबला किया और काबुल के महल में वे दाखिल हो गए। उनमें किसी भी तरह का घमंड नहीं था, बड़े बोल नहीं थे। एक बार फिर यह तारीख रकम हुई है।” नोमानी का ये बयान आना पर्सनल लॉ बोर्ड के लिए एक फजीहत की तरह है। ऐसे में बोर्ड ने इसे नोमानी की निजी सोच बताकर खुद को अलग कर लिया है।
तालिबान मुख्य रूप से महिलाओं पर प्रतिबंध लगाने के लिए कुख्यात है। इसके संकेत पुनः मिलने लगे हैं, जब न्यूज चैनलों में महिला पत्रकारों के न्यूज प्रस्तुत करने पर प्रतिबंध लगाया गया। ये माना जा रहा है कि महिलाओं पर सबस अधिक प्रतिबंध होंगे, जिससे उनकी शिक्षा से लेकर मूलभूत अधिकार भी खत्म हो जाएंगे। अब इसे मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की सोच से कनेक्ट करें तो साल भारत में तीन तलाक के खात्मे की लड़ाई याद आती है। उस वक्त मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के अधिवक्ताओं में लिखित हलफनामा दिया था, कि महिलाएं कम अक्ल होती हैं। पर्सनल लॉ बोर्ड की तालिबानी सोच उस समय ही उजागर हो गई थी, ऐसे में भले ही नोमानी के बयान से पर्सनल लॉ बोर्ड खुद को अलग करने की नौटंकी करे, किन्तु उसके सदस्य ने नोमानी ने बोर्ड का असल चरित्र सामने रख दिया है, एवं डैमेज कंट्रोल में बोर्ड ने स्वयं को इससे अलग किया है।
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आतंकी संगठन तालिबान का एक कनेक्शन उत्तर प्रदेश के देवबंद से भी है, जिसे तालिबानी शिक्षा का केन्द्र माना जाता है। देवबंद में दारूल उलूम के जो मदरसे इस्लामिक शिक्षा प्रदान करते हैं, उनका एक सीधा संबंध अफगानिस्तान से भी है क्योंकि वहां अनेकों मदरसे दारूल उलूम से संबंधित ही हैं। इतना ही नहीं टीएफआई ने अपनी पहली रिपोर्ट में बताया भी है कि कैसे तालिबान का उदय होना, देवबंद में खतरा पैदा कर सकता है, क्योंकि कई आतंकियों का संबंध भी देवबंद से रहा है, जिसके चलते उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वहां एक एटीएस का कमांडो सेंटर बनाने का फैसला किया है।
स्पष्ट है कि भारत के कुछ इस्लामिक संगठन देश हित से परे अपने धर्म को अधिक महत्व देते हैं। भारत में हम पहले भी ऐसी घटनाएं देख चुके हैं, जब विदेशी नहीं अपितु भारत के ही कुछ स्लीपर सेल्स का ब्रेनवॉश करके उनका इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों में किया गया। ऐसे में अब जब तालिबान का उदय हो चुका है, एवं कुछ कट्टरपंथियों ने उसका समर्थन भी करना शुरु कर दिया है, तो आवश्यक है कि इन लोगों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई हो, जिससे भारत में तालिबानी सोच के ये लोग अपनी विचारधारा का प्रसार न कर सकें, एवं इनकी सक्रियता से पहले ही उनके पर कुतर दिए जाएं।