जम्मू-कश्मीर की पाकिस्तान प्रायोजित अराजकता का मुद्दा उठाकर एक प्रोपेगेंडा हमेशा ही चलाया जाता रहा है, किन्तु ऐसा नहीं है कि ये प्रोपेगेंडा केवल पाकिस्तान से चलता है, बल्कि इसके लिए वैश्विक स्तर पर कुछ संगठन भी काम करते हैं। इन संगठनों को अमेरिका, ब्रिटेन और विश्व के कुछ अगड़े राष्ट्रों में बैठकर पाकिस्तान समर्थक लोग चलाते हैं।
साल 2015-16 से शुरू हुआ इन लोगों का ये पारिवारिक बिजनेस एक नए स्तर पर चला गया, जिसका मुख्य उद्देश्य पाकिस्तान और भारत विरोधियों को बढ़ावा देना था। साल 2015-16 के उसी नैरेटिव के दम पर आज भी ये लोग छिप-छिपकर प्रोपेगेंडा चलाते हैं, जिससे कश्मीर सदा वैश्विक स्तर पर एक ज्वलंत मुद्दा रहे, और इससे इनकी अपनी दुकान चलती रहे।
भारत सरकार की नीतियों में पीएम मोदी के आने के बड़े बदलाव देखे गए हैं, जिसके तहत ही विदेशी फंडिंग को FCRA के नियमों में बदलाव कर अधिक सख़्त किया गया था, जिससे कश्मीर में पैसा भेजकर अस्थिरता फैलाना वैश्विक शक्तियों के लिए असंभव हो गया। इसके बाद ही पाकिस्तान की सीनेट रिपोर्ट कश्मीर की कहानी को बदलने की प्रोपेगेंडा गढ़ती है और फिर वैश्विक स्तर पर कश्मीर मुद्दों पर भारत की आलोचना करने वाला एक समूह खड़ा होने लगता है।
इसके बाद इस समूह का एक युवा कथित कश्मीरी एक्टिविस्ट चेहरा मुजम्मिल ठाकुर कश्मीर संबंधी 6 संगठन खड़े करता हैं, जिनमें Polis Project, Equality Labs, KKRF जैसे संगठन शामिल हैं। मुजम्मिल के अलावा इन विशेषज्ञ एक्टिविस्टों की कमेटी में सीजे वर्लेमन, Audrey Truschke, हैलै, मैकएनटायर भी शामिल थे।
The Kashmir Narrative is controlled by a set of US/UK- based ‘Kashmiris’ who make a living off Kashmir conflict. Since about 2015-16, the ‘family business’ is being passed to the next gen with the help of Pak establishment, & vested interests.
A Thread:https://t.co/AZQFkFsV0V
— DisInfo Lab (@DisinfoLab) August 3, 2021
सऊदी के रहने वाले मुजम्मिल के कश्मीर के प्रति एक्टिव होने की बड़ी वजह ये थी कि उसकी शादी गिलानी द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपों में निकाले गए ग़ुलाम नबी की बेटी शाहिस्ता सैफी से हुई थी। वहीं उसकी पत्नी का संबंध भी ISI से था। मुजम्मिल बड़ी चालाकी के साथ पाकिस्तान के मीडिया में कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा बताता था।
वहीं वैश्विक मीडिया में इसे आजाद कश्मीर कहता है। उसके साथ इस एजेंडे में कथित तौर पर कई कश्मीरी एक्टिविस्ट भी शामिल हैं, जिनमें हफ्सा कंजवाल, समीरा फाजिली, एथर जिया और सेहला आशा हैं। महत्वपूर्ण बात ये है कि ये सभी यूएस/यूके में रह रहे हैं।
और पढ़ें- कश्मीर के नामुराद पत्थरबाजों के लिए न सरकारी नौकरी, न पासपोर्ट का सिक्योरिटी क्लीयरेंस
इन एक्टिविस्टों द्वारा बनाए गए संगठनों की बात करें तो, स्टैंड विद कश्मीर, जस्टिस फॉर कश्मीर, फ्रेंड्स ऑफ कश्मीर, फ्री कश्मीर, अमेरिकन फॉर कश्मीर इत्यादि हैं। ये लोग वेबिनार होस्ट करने के साथ सोशल मीडिया पर अभियान चलाते हैं, और सोशल मीडिया पर कश्मीर को लेकर जहर उगलते हैं। स्टैंड विद कश्मीर नामक संगठन हफ्सा, फाजिली, हुमा डार, आदि (विशेषज्ञ) और सेहला आशा (कोषाध्यक्ष) के साथ कश्मीरी विरोधियों के तौर पर काम करता था।
साल 2019 में इसमें एक बदलाव हुआ, और कुछ नए लोग भी शामिल किए गए, लेकिन इसका पूरा कंट्रोल ISI के हाथ में ही था, जो यूके और यूएस से संगठन चला इन लोगों को निर्देशित करता है। SWK को प्रमोट करने वाला में पहला नाम मुजम्मिल ठाकुर ही थे, जो फेसबुक से लेकर ट्विटर पर इसको वरीयता दिलाते रहे थे।
दूसरा संगठन Friends of Kashmir से संबंधित है। कश्मीर खालिस्तान रेफरेंडम फ्रंट गजला एच. खान द्वारा स्थापित किया गया है, जिसमें एक सिख फॉर जस्टिस के गुरपतवंत पन्नू की भी विशेष भूमिका रही है।
FOK के आईएचएफ के लिंक भी हैं, जिसे पीटीआई यूएसए के अध्यक्ष सज्जाद बुर्की द्वारा संचालित किया जाता है। इसके अलावा एक संगठन अमेरिकन्स फॉर फ्री कश्मीर भी है, जोकि अकरम डार के बेटे एजाज डार द्वारा गठित है। ये जमात-ए-इस्लामी जैसे आतंकी संगठन से संबंधित भी है, जिसे अब्दुल अली मुजाहिद संचालित करता है।
और पढ़ें- Blinken की भारत यात्रा से पाकिस्तान जल-भुन गया है, कारण जम्मू-कश्मीर और अन्य मुद्दे हैं
सटीक तौर पर कहा जाए तो कश्मीर के नाम पर प्रोपेगेंडा उगलने वाले ये एक्टिव लोग अगली पीढ़ी के हैं, जोकि अमेरिका और ब्रिटेन के कुछ अहम पदों पर भी पहुंच गए हैं। खास बात ये भी है कि पाकिस्तान के लिए कश्मीर संबंधित प्रोपेगेंडा चलाने वालों में पाक द्वारा नियुक्त लॉबिस्टों में इस्लामाबाद में सीआईए के पूर्व स्टेशन प्रमुख रॉबर्ट ग्रेनियर भी शामिल थे।
इसके अलावा पाकिस्तान ने कश्मीर पर ‘चिंताओं को व्यक्त करने वाली संस्थाओं’ को खरीदने के लिए लाखों डॉलर भी खर्च किए हैं। प्रमिला जयपाल ने जून-दिसंबर 2019 के बीच ऐसी चिंता व्यक्त की थी, और कश्मीर पर एक प्रस्ताव पेश किया था। उस दौरान पाकिस्तान प्रायोजित H&K जैसी संस्थाओं ने इसे राजनेताओं से जोड़कर कश्मीर को एक बड़ा मुद्दा बनाने की कोशिश की थी।
राजनेताओं को शामिल करने के लिए बड़े स्तर पर खेल चलता था। अमेरिका स्थित पाकिस्तानी एजेंट एहतेशम आशा और माजिद बट अमेरिकी राजनेताओं टेड लियू, स्टीव वॉटकिंस, ब्रैड शर्मन, जिम कोस्टा के लिए ‘कैश फॉर ट्वीट’ योजना चला रहे हैं।
अनुमान के अनुसार वे राजनेता प्रति ट्वीट $1000 चार्ज कर रहे हैं। इसके अलावा एक अन्य पाकिस्तानी एजेंटों का समूह यूरोप के राजनेताओं से भी कश्मीर पर चिन्ता व्यक्त करने के नाम पर जोड़ने की कोशिश करता था। इसी तरह यूके के भी कुछ नेता पाकिस्तान के पैसों पर पाकिस्तान का दौरा कर कश्मीर पर अपनी चिंताओं का ढोंग कर चुके हैं।
और पढ़ें- जम्मू-कश्मीर की 149 साल पुरानी ‘दरबार मूव’ की प्रथा को खत्म कर दिया गया है
इसी तरह ये सभी कथित कार्यकर्ता सोशल मीडिया पर फ़ेक न्यूज़ फैलाकर हिंसा फैलाने का काम भी करते थे, जिसमें भारतीय सेना की बर्बरता का दुष्प्रचार किया जाता था। इसका उद्देश्य कश्मीर में तानाशाही और जनता पर सरकार का दबाव प्रदर्शित करना, जोकि सत्य से परे है। इतना ही नहीं वैश्विक मीडिया में इसको बढ़ा-चढ़ाकर भारत की आलोचना करना भी इनका एक विशेष उद्देश्य रहता है।
ये लोग ट्विटर पर कुछ विशेष हैशटैग का प्रयोग भी करते हैं जिनमें हजारों की संख्या में साल 2019 के 5 अगस्त के बाद हुए। 5 अगस्त महत्व विशेष है क्योंकि अनुच्छेद 370 का खात्मा इसी दिन हुआ था। सबसे ज्यादा ट्रैंड में रहने वाला हैशटैग #RedForKashmir ही था।
विशेष बात ये भी है कि पिछले कुछ वर्षों में ये सारा प्रोपेगेंडा सऊदी से निकलकर तुर्की की तरफ चला गया है। राष्ट्रपति एर्दोआन की सुरक्षा करने वाली संस्था SDAT के अंतर्गत एक गैर-सरकारी संस्था UNW भी है, और गुलाम नबी फ़ैज़ UNW का सदस्य है।
ऐसे में ये कहा जा सकता है कि कश्मीर को लेकर पाकिस्तान प्रायोजित प्रोपेगेंडा ठाकुर, कांजवाल, आशा, फाजिली और सफी का पारिवारिक व्यवसाय बन गया है और पाकिस्तान अब इनके जरिए वैश्विक स्तर पर पाकिस्तान के समर्थन वाला कश्मीर पर प्रोपेगेंडा चलाता रहता है।
महत्वपूर्ण बात ये है कि वैश्विक स्तर के बड़े नेताओं के सहयोगी भी पाकिस्तान की इस चाल में पर्दे के पीछे से शामिल रहते हैं, और ऐसे में भारत के लिए सतर्कता बरतने वाला विषय बन जाता है, क्योंकि उन वैश्विक नेताओं की साख पर कश्मीर मुद्दे पर बोलने से विशेष फर्क भले न पड़े किन्तु ये भारत की छवि को दाग लगाने के पाकिस्तानी एजेंडे को सार्थक कर सकते हैं।