टोक्यो पैरालम्पिक में भारत ने इतिहास रचते हुए 19 पदक प्राप्त किए। इसमें 5 स्वर्ण, 8 रजत और 6 कांस्य पदक शामिल थे। इसमें भाला फेंक में स्टार एथलीट देवेन्द्र झाझरिया ने अपना प्रभुत्व कायम रखते हुए स्वर्ण नहीं, परंतु रजत पदक अवश्य प्राप्त किया। उनके साथ ही एक ऐसे व्यक्ति ने भी पदक प्राप्त किया, जो दुर्भाग्यवश रियो पैरालम्पिक में भाग लेने के बाद भी अफसरों की गड़बड़ी के कारण पदक पर दावा पेश करने से चूक गए थे। ये थे भाला फेंक एथलीट और पूर्व पैरा विश्व चैंपियन सुंदर सिंह गुर्जर, जिन्होंने इसी स्पर्धा में कांस्य पदक प्राप्त किया।
इस पदक के साथ उन्हें ऐसी भी चीज प्राप्त हुईं जिससे वे कई महीनों से वंचित थे – उनका वेतन। टाइम्स नाउ को दिए साक्षात्कार में सुंदर सिंह गुर्जर ने अपने जीवन के कुछ अनछुए पहलुओं को साझा करते हुए बताया कि टोक्यो पैरालम्पिक में भाग लेने से पहले वे पैरा विश्व एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में दो बार स्वर्ण पदक भी जीत चुके थे – 2017 और 2019 में। इसके बावजूद 2020 में दस महीने तक राजस्थान वन विभाग में काम करने के बाद भी उनका वेतन उन्हे नहीं दिया गया था। उनका वेतन उन्हें तभी मिला तब टोक्यो पैरालम्पिक में उन्होंने कांस्य पदक प्राप्त किया।
रिपोर्टस के मुताबिक सुंदर सिंह गुर्जर पिछले साल नवंबर से राजस्थान सरकार के वन विभाग में अधिकारी के रूप में काम कर रहे हैं, लेकिन उन्हें पहली बार वेतन पैरालंपिक पदक जीतने के बाद मिला है। सुंदर सिंह गुर्जर ने कहा, ‘‘मैं राजस्थान में वन विभाग में पांच नवंबर 2020 से काम कर रहा हूं लेकिन जिस दिन मैंने पैरालंपिक पदक जीता उस दिन दो घंटे के भीतर मुझे 10 महीने का वेतन मिल गया।’’
बता दें कि 2015 से पहले तक सुंदर सिंह गुर्जर भाला फेंक में जनरल वर्ग में ही भाग लेते थे। जिस कैंप में वे प्रशिक्षण लेते थे, उसी नेशनल कैंप में अंडर 18 वर्ग में आगे चलकर जूनियर विश्व चैम्पियनशिप और टोक्यो ओलंपिक में भारत का गौरव बढ़ाने वाले सूबेदार नीरज चोपड़ा भी भाग लेते थे। परंतु एक दुर्भाग्यपूर्ण दुर्घटना ने सुंदर के लिए सब कुछ बदल दिया। एक टिनशेड के कारण हुए एक्सीडेंट से सुंदर को अपने बाएँ हाथ का एक हिस्सा कटवाना पड़ा।
परंतु उन्होंने हार नहीं मानी, और उन्होंने तुरंत पैरा एथलेटिक्स में अपनी छाप छोड़ने के लिए तैयारी प्रारंभ की। सुंदर के दांव ऐसे थे, कि वे तत्कालीन विश्व चैंपियन और उन्ही के राज्य से आने वाले 2004 के पूर्व पैरालम्पिक चैंपियन देवेन्द्र झाझरिया को कांटे की टक्कर दे सकते थे। देवेन्द्र का सर्वश्रेष्ठ दांव तब 62 मीटर से कुछ ऊपर था, जबकि सुंदर एक हाथ के साथ भी 65 मीटर के पार फेंक सकता था।
रियो पैरालम्पिक में वह 70 मीटर तक भाला फेंकने के उद्देश्य से पूरी तरह तैयार था। परंतु पैरालम्पिक कमेटी के अफसरों की गड़बड़ी के कारण वह सही समय पर स्टेडियम नहीं पहुँच पाया, और वह इवेंट में भाग लेने से वंचित रह गया। सुंदर बताते हैं कि इस बात से वे इतने दुखी हुए कि उन्हें आत्महत्या के ख्याल आने लगे, परंतु उनके कोच महावीर सैनी ने उनके आत्मविश्वास में कोई कमी नहीं होने दी।
इसके बाद सुंदर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। देवेन्द्र झाझरिया ने टोक्यो पैरालम्पिक में अपना ही रिकॉर्ड तोड़ते हुए स्वर्ण पदक जीता, परंतु सुंदर अब उन्हे कांटे की टक्कर देने लगा था। भले ही दोनों टोक्यो में स्वर्ण पदक प्राप्त नहीं कर पाए, परंतु सुंदर सिंह गुर्जर ने हर चुनौती को पार पाते हुए ऐतिहासिक पदक प्राप्त किया। परंतु सुंदर का दुर्भाग्य देखिए, जिस व्यक्ति ने देश का इतना गौरव बढ़ाया, उसे अपने ही वेतन के लिए एक निष्ठुर सरकार से महीनों तक लड़ना पड़ा।