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कोयला संकट तो है बहाना, भारत है असली निशाना

दिल्ली और देश में बिजली संकट के झूठ का पूरा सच!

Animesh Pandey द्वारा Animesh Pandey
12 October 2021
in समीक्षा
कोयले का संकट
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सोनी लिव पर प्रसारित हुए विश्व प्रसिद्ध वेब सीरीज़ ‘स्कैम 1992’ का एक बड़ा ही महत्वपूर्ण संवाद स्मरण होता है, ‘जब किसी का काम नहीं खराब कर सकते ना तो उसका नाम खराब करो!’ ये संवाद इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस समय संसार भर में कोविड के कारण प्राकृतिक संसाधनों की किल्लत स्पष्ट दिखने लगी है। लेकिन एक देश ऐसा भी है, जहां स्थिति बिलकुल सामान्य तो नहीं, लेकिन इन देशों जैसी भयावह भी नहीं है, और वो है अपना भारत। भारत की प्रगति वैश्विक मीडिया से बर्दाश्त नहीं हो रही है, और ऐसे में वह विपक्ष के सहारे कोयले का ‘कृत्रिम संकट’ उत्पन्न कर रहा है, ताकि विश्व भर में भारत की बदनामी हो, ठीक वैसे ही जैसे कोविड की दूसरी लहर के दौरान अस्पतालों में आवश्यक दवाइयों और ऑक्सीजन सिलेंन्डरों की आपूर्ति को लेकर इन लोगों ने भय का माहौल उत्पन्न किया था।

वो कैसे? उदाहरण के लिए आप फाइनेंशियल टाइम्स के इस रिपोर्ट को देखिए –

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पंजाब के किसान बाढ़ से बेहाल हैं, लेकिन केंद्र सरकार को उन्हें मुआवजा देने में क्यों हो रही है दिक्कत?

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इस स्क्रीनशॉट के अनुसार फाइनेंशियल टाइम्स के लिए चीन में ऊर्जा संकट तो है, परंतु भारत में स्थिति ‘कम चिंताजनक’ नहीं है। इस पोर्टल के लेख के लिखे जाने तक तो कोयले का संकट भी नहीं आया था, जबकि दावा किया गया था कि केवल चार दिनों का स्टॉक देश के थर्मल प्लांट्स के पास बचा है l इस लेख को लिखे 6 दिन हो गए हैं, तो अब तक तो देश को अँधेरे में डूब जाना चाहिए था!

परंतु यह तो कुछ भी नहीं अब आप बीबीसी के इस लेख को देखिए –

बीबीसी के इस लेख के अनुसार भारत में जल्द ही एक भीषण ऊर्जा संकट आने वाला है, और इसी प्रकार का एक भ्रामक लेख अल जज़ीरा में भी छापा गया था। सभी लेखों में एक बात समान है – भारत में कोयले का स्टॉक केवल चार दिनों तक बचा है, और देश के आधे से अधिक कोयले के संयंत्र बंद होने के मुहाने पर है। यदि ऐसा है, तो अब तक तो देश में त्राहिमाम मच जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं निकला।तो फिर बार-बार देश में बिजली संकट की बात क्यों कही जा रही है ?

देश में कोयला संकट का कारण 

आपको शायद जानकर हैरानी होगी कि कोयले का संकट कोई आज की बात नहीं है, यह तो हर वर्ष होता है! जी आपने बिलकुल ठीक सुनाl  हर वर्ष वर्षा ऋतु के कारण उत्पादन में थोड़ी हानि अवश्य होती है, परंतु इस बार ये हानि कुछ ज्यादा हो गई, क्योंकि वर्षा ऋतु आशाओं के विपरीत काफी लंबी चली। यही बात केन्द्रीय ऊर्जा मंत्रालय ने भी समझाने का प्रयास किया, जब उन्होंने कहा कि इस बार उम्मीद से अधिक बरसात हुई, लेकिन उसके बाद भी कोयला उत्पादन में कोई कमी ‘नहीं’ आने दी गई l

सिर्फ वर्षा ही अकेली कारक नहीं है! आपको बता दें, कि कोविड की दूसरी लहर के बावजूद भारतीय अर्थव्यवस्था की अप्रत्याशित आर्थिक वृद्धि के कारण जो बिजली उत्पादन और बिजली उपयोग में भारी वृद्धि हुई, उसके कारण बिजली की मांग में भी वृद्धि होना स्वाभाविक था, और ऐसा ही हुआ, जिसके कारण वर्ष 2019 की तुलना में इस वर्ष उर्जा का उपभोग 17 प्रतिशत तक बढ़ गया। अब इसमें कोई रॉकेट साइंस तो नहीं कि कोयल सीमित संसाधन है, असीमित नहीं जो चलता ही जाएगा!

क्या दिल्ली सरकार ने बिजली संकट पर बोला झूठ ?

ऐसा क्या हुआ कि जो एक वार्षिक समस्या है, उसके पीछे इतनी हाय तौबा मचाई जाने लगी, जिसमें अरविन्द केजरीवाल वैसे ही बढ़चढ़कर हिस्सा ले रहे हैं, जैसे ऑक्सीजन सिलिन्डरों की ‘किल्लत’ के दौरान उनकी सरकार ने लिया था l

केजरीवाल सरकार ने कहा कि केंद्र सरकार लोगों को उल्लू बना रही है और दिल्ली सरकार के पास सिर्फ दो तीन दिन का ही कोयला बचा है,  तो केंद्र सरकार ने प्रमाण सहित झूठ की परतें खोलते हुए एक विशेष प्रेस कॉन्फ्रेंस में दिल्ली की ऊर्जा खपत का पूरा कच्चा चिट्ठा खोल दिया।

PIB द्वारा जारी प्रेस रिलीज़ में स्पष्ट किया गया है कि 10 अक्टूबर को दिल्ली की उच्चतम ऊर्जा डिमांड 4536 मेगावॉट की थी, और दिल्ली के विभिन्न डिस्कॉम से बातचीत से सामने आया कि ऊर्जा के अभाव के कारण बिजली आपूर्ति में कोई बाधा नहीं आई। इसके साथ ही उन्होंने पिछले दो हफ्तों के दिल्ली बिजली आपूर्ति के आँकड़े भी जारी किए, जहां अभाव का दूर-दूर तक कोई नामोनिशान नहीं था, उलटे जितनी आवश्यकता थी, उतनी ही बिजली दिल्ली को प्राप्त भी हुई l

अब यहाँ झूठ कौन बोल रहा है यह आप खुद ही समझ सकते हैं!

आपको बता दें कि चीन और यूके की भांति भारत अपने प्राकृतिक संसाधन के दोहन के लिए विदेशों पर अब अत्यधिक निर्भर नहीं है, और मोदी सरकार के नेतृत्व में वह निरंतर वैकल्पिक ऊर्जा के स्त्रोतों की ओर अपने कदम बढ़ा रहा हैl

और पढ़ें : पहले मुफ्त बिजली देने का वादा किया, फिर अपने ही खोदे गड्ढे में गिर गए कुछ मुख्यमंत्री

केन्द्रीय ऊर्जा मंत्री आरके सिंह एवं कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी ने एक संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में जनता से तथ्य साझा करते हुए बताया कि घबराने की कोई बात नहीं है। भारत के पास जो पावर स्टेशन में स्थित कोयला रिजर्व है, वो औसतन 4 दिनों से भी अधिक टिक सकता है, और इसे हर दिन बदला जा सकता है। केवल कोल इंडिया लिमिटेड [जो भारत को सर्वाधिक कोयला प्रदान करता है] के पास 43 मिलियन टन से अधिक का स्टॉक है, जो देश के समस्त पावर प्लांट्स की आवश्यकताओं को पूर्ण करने हेतु 24 दिनों के लिए पर्याप्त है। ऊर्जा मंत्री आरके सिंह ने ये भी स्पष्ट बताया कि कोयले का संकट की बात तो दूर, इसके कारण बिजली कटौती की अफवाहें भी कोरी बकवास हैं, जो केवल लोगों को  भ्रमित करने हेतु फैलाई जा रही हैं –

परंतु ऊर्जा मंत्रालय और कोयला मंत्रालय के स्पष्टीकरण के बाद भी वामपंथियों का ये कुत्सित खेल खत्म नहीं हुआ, उदाहरण के लिए इस ट्रेंड को ही देखिए –

Earlier the government was responsible for power cuts.
"Now Coal is Responsible" Welcome to New India.
After diesel petrol, now it is the turn of electricity in the interest of the country.#BlackOutInIndia

— Bunny™️ (@Bunny3166) October 12, 2021

Modi is silent because of lack of courage on
– Coal shortage which shuts power plants.
– Farmers' murdered by Minister's son
– Chinese refuse to disengage
– LPG & Fuel Prices hitting new highs every day.
– Civilians being killed in Kashmir.#BlackOutInIndia pic.twitter.com/393DEuoLCs

— सुहाना INC 🇮🇳 (@2Suhana25) October 12, 2021

 

अब भारत में कहीं भी कोयले का संकट के कारण बिजली कटौती नहीं हुई है, लेकिन ‘Blackout in India’ फिर भी ट्विटर पर ट्रेंड हुआ। इसके पीछे का उद्देश्य क्या था? इसके अंतर्गत अधिकतर ट्वीट काँग्रेस आईटी सेल ने ही किए, जिससे स्पष्ट था कि उन्हे केंद्र सरकार के बयान पर कतई विश्वास नहीं, और वे जानबूझकर जनता को डराना धमकाना चाहते हैं। लेकिन जैसे ही कॉंग्रेस का झूठ पकड़ा जाने लगा, उन्होंने तुरंत अपना पाला बदलते हुए मोदी सरFकार पर कोयले का संकट का झूठ खेल रचकर ‘अडानी अंबानी’ समूह को फायदा पहुंचाने का हास्यास्पद आरोप लगाया।

ऐसे में खेल तो स्पष्ट है – ऊर्जा संकट तो बस बहाना है, असल में कोविड संकट की भांति केंद्र सरकार को नीचा दिखाना था, चाहे इसके लिए भारत की वैश्विक छवि ही क्यों न तार-तार हो जाए। यही प्रयोग कोविड की दूसरी लहर के दौरान भी हुआ था, जो आंशिक रूप से सफल हुआ था, परंतु इस बार अंतर्राष्ट्रीय मीडिया और विपक्ष के अतिउत्साह ने उनका ही खेल बिगाड़ दिया, और हर जगह उनकी भद्द पिट रही है।

Tags: BBCअरविंद केजरीवालकोयला संकट
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