प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक ऐसे नेता हैं जो जनता की राय जुटाने और प्रशासनिक कार्यों को राजनीतिक आंदोलनों से बदलने में विश्वास करते हैं। यही कारण है कि वह देश की जनता के दिलों में राज करते हैं। ये विश्वास किसी PR एजेंसी की बनाई हुई धारणा नहीं है, इस विश्वास को उन्होंने मेहनत और पसीने से कमाया है। पीएम मोदी पर जनता के विश्वास के कारण ही मेक इन इंडिया, स्वच्छ भारत अभियान और जन धन योजना जैसी उनकी कई योजनाओं को सफलता मिली है। अब मोदी सरकार एक नया आंदोलन शुरू कर रही है। यह आंदोलन देश के एक अलग लेकिन आवश्यक मोर्चे पर लड़ी जा रही है। यह भारत से ड्रग्स की समस्या को मिटाने की लड़ाई है। मोदी सरकार नशा तस्करों और नशा करने वालों पर नकेल कस रही है। यह जटिल लड़ाई है क्योंकि कार्रवाई आसान नहीं है, क्योंकि इस कार्रवाई में हमारे अधिकारियों को ड्रग्स सिंडिकेट में और संगठित अपराधियों का सामना करना पड़ता है। इन सिंडिकेट को पाकिस्तान जैसे कट्टरपंथी देशों का समर्थन प्राप्त होता है। अब सरकार ने भारत से ड्रग्स की समस्या को मिटाने के लिए कदम बढ़ा दिए हैं।
बड़ा बदलाव लेकर आ रही मोदी सरकार
दरअसल, भारत सरकार ड्रग्स माफिया से निपटने के लिए जरूरी कदम उठाते हुए हवाई क्षेत्र में बड़ा बदलाव लेकर आ रही है। DGCA के नए नियमावलियों के तहत कोई भी हवाई क्षेत्र का कर्मचारी अगर ड्रग्स के जांच में नॉन नेगेटिव पाया जाता है तो उसे तुरंत नौकरी से निकाल दिया जाएगा। यह कदम सरकारी कर्मचारियों और ड्रग्स उद्योग के गठजोड़ को तोड़ने के लिए उठाया गया है।
यही नहीं गुजरात के कच्छ जिले के मुंद्रा बंदरगाह पर 21,000 करोड़ रुपये का ड्रग्स बरामद किया गया है और इस बंदरगाह का संचालन अडानी समूह द्वारा किया जाता है। वाम-उदारवादी लॉबी ने इस खबर के बाद मोदी सरकार और कॉरपोरेट जगत के बीच एक काल्पनिक गठजोड़ के बारे में बेबुनियाद कयास लगाना शुरू कर दिया था। 3000 किलो हिरोइन की बरामदगी कोई आम खबर नहीं थी।
अगर हम आपको यह बताएं कि अडानी पोर्ट से जब्त किए गए ड्रग की खबर को सरकार ने ही हवा दी थी, तो आपका क्या रिएक्शन होगा? जी हाँ सरकार ड्रग माफियानों को यह संदेश दे रही है कि अब उनके दिन लड़ गए हैं। आगे ऐसी तमाम खबरें आने वाले समय में सामने आएंगी क्योंकि मोदी सरकार अब ड्रग्स माफिया और उससे जुड़े लोगों पर कार्रवाई करने का प्लान बना चुकी है।
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मुंद्रा बंदरगाह जब्ती:
विपक्ष हर बार एक ही सवाल पूछ रहा है- अडानी ग्रुप द्वारा संचालित मुंद्रा बंदरगाह पर बड़े पैमाने पर ड्रग की तस्करी पर मोदी सरकार चुप क्यों है? वहीं, पूंजीपतियों और मोदी सरकार के बीच गंठजोड़ के आरोप भी लग रहे हैं। लेकिन उनकी आलोचना ज्यादा मायने नहीं रखती है, ऐसा हम कह रहे हैं क्योंकि…
– प्रवर्तन एजेंसियों ने ड्रग्स की खेप का भंडाफोड़ किया और कोई कवर-अप नहीं किया।
– प्रवर्तन एजेंसियां पहले से ही इस मामले में कार्रवाई कर रही है और इस मामले में कई गिरफ्तारी भी हो चुकी हैं।
– अडानी समूह केवल मुंद्रा बंदरगाह का परिचालक है और उसके पास बंदरगाह पर आने वाले शिपमेंट की सामग्री की जांच का अधिकार नहीं है।
सच यह है कि मोदी सरकार वास्तव में चाहती थी कि मुंद्रा बंदरगाह पर ड्रग्स की खेप का भंडाफोड़ हो और वह यह भी चाहती थी कि लोग इसके बारे में जानें, इसलिए इस मामले में मीडिया कवरेज को बंद या कम कराने की कोई कोशिश नहीं की गई। असल में मुंद्रा बंदरगाह पर ड्रग्स का भंडाफोड़ मोदी सरकार द्वारा भारत को ड्रग्स की समस्या से छुटकारा दिलाने के प्रयासों की एक श्रृंखला का हिस्सा है। सरकार अगर चाहती तो ऐसी खबरें बाहर निकलकर नहीं आती लेकिन यह खबर पूरी तरह से वायरल हो चुकी है। ऐसे में ड्रग्स को लेकर भारत सरकार की मंशा पर सवाल उठाना कदापि उचित नहीं है।
बॉलीवुड में ड्रग्स खपत पर NCB की कार्रवाई
नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) ड्रग कानून प्रवर्तन के क्षेत्र में उच्च एजेंसी के रूप में कार्य करती है। पिछले एक साल से ड्रग्स मामलों को लेकर यह एजेंसी काफी सक्रिय है। पिछले साल सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या के बाद रिया चक्रवर्ती को NCB ने राजपूत के लिए ड्रग्स खरीदने के आरोप में गिरफ्तार किया था। पिछले कुछ महीनों से NCB और स्थानीय पुलिस बलों द्वारा बॉलीवुड हस्तियों के बीच नशीली दवाओं के दुरुपयोग पर अभूतपूर्व कार्रवाई चालू है। भारती सिंह, अरमान कोहली और कपिल झावेरी जैसे जाने-माने कलाकारों को अलग-अलग समय पर प्रवर्तन एजेंसियों ने गिरफ्तार किया है।
NCB ने पिछले साल एक्ट्रेस दीपिका पादुकोण, सारा अली खान, श्रद्धा कपूर, रकुल प्रीत सिंह, सिमोन खंबाटा और सेलिब्रिटी मैनेजर श्रुति मोदी को भी पूछताछ के लिए तलब किया था। हाल ही में एनसीबी ने एक कदम आगे बढ़ते हुए शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को सेंट्रल एजेंसी द्वारा एक क्रूज शिप पर छापेमारी करते हुए गिरफ्तार कर लिया है। नशीली दवाओं के सेवन से संबंधित इस नए गिरफ्तारी से एनसीबी ने साहसिक उठाया है।
मोदी सरकार के लिए बॉलीवुड पर कार्रवाई वास्तव में इस कहानी का अंत नहीं है क्योंकि अंततः उपभोग के आरोप में गिरफ्तार की गई बॉलीवुड हस्तियां वास्तव में ड्रग्स का उत्पादन करने वाले लोग नहीं हैं। इन कदमों से मोदी सरकार एक जोरदार और स्पष्ट संदेश देना चाहती है कि कार्रवाई किसी पर भी हो सकती है अगर वह ऐसे में मामलों में संलिप्त है। भारत सरकार का मुख्य लक्ष्य अभी भी ड्रग्स की आपूर्ति करने वाले सिंडिकेट हैं।
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ड्रग सिंडीकेट्स पर नकेल कसने के लिए मोदी सरकार की योजना
मादक द्रव्यों के सेवन के मुद्दे को सामने लाकर मोदी सरकार ने एक सराहनीय काम किया है। कौन से लोग इसे खरीद रहे है, यह जानना जरूरी है ताकि यह पता किया जा सके कि आपूर्ति कौन कर रहा है। ड्रग्स आपूर्ति के कई स्रोत हैं, जिनसे भारत को निपटना है।
सबसे पहले स्वर्ण त्रिभुज है। भारतीय सेना की आधिकारिक वेबसाइट के अनुसार, “कुख्यात स्वर्ण त्रिभुज म्यांमार, लाओस और थाईलैंड के ग्रामीण पहाड़ी क्षेत्रों का समूह है। यह दक्षिण पूर्व एशिया का मुख्य अफीम उत्पादक क्षेत्र है और यूरोप और उत्तर अमरीका के सबसे पुराने नशीले पदार्थों की आपूर्ति करने वाले देशों में से एक है। गोल्डन क्रिसेंट के उद्भव से पहले भी, भारत की म्यांमार के साथ 1643 किलोमीटर सीमा, एक जोखिम के रूप में मौजूद रही है।”
वेबसाइट में कहा गया है, “अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड राज्य म्यांमार के साथ अपनी सीमा साझा करते हैं। अफीम, हेरोइन, मेथमफेटामाइन और कई अन्य ड्रग्स म्यांमार से पूर्वोत्तर में तस्करी कर लाए जाते हैं। इसके अलावा भारत में अवैध रूप से खेती की जाने वाली ड्रग्स की भी भारत में खपत होती हैं।”
भारत में ‘गोल्डन ट्रायंगल’ में उत्पादित ड्रग्स मिजोरम, मणिपुर और नागालैंड में म्यांमार के भामो, लैशियो और मांडले जैसे क्षेत्रों से भारत में प्रवेश करते हैं। यहां से मार्ग द्विभाजित होता है और एक रास्ता मणिपुर में मोरेह के माध्यम से उत्तर की ओर बढ़ता है जबकि दूसरा रास्ता प्रवेश करने के लिए दक्षिण की ओर मिजोरम के चंपई की ओर जाता है। मोरेह (मणिपुर), चंपई (मिजोरम), दीमापुर (नागालैंड), और गुवाहाटी (असम) भारत के पूर्वोत्तर में मादक पदार्थों की तस्करी उद्योग का केंद्र बन गए हैं।”
इसके अलावा पाकिस्तान भी सीमा पार से पंजाब राज्य और भारत के अन्य हिस्सों में ड्रग्स की आपूर्ति होती है। यह पाकिस्तानी सेना और ISI की ‘हजारों घावों के जरिए भारत का खून बहाने’ की रणनीति का हिस्सा है।
अफगानिस्तान में तालिबान के पुनरुत्थान के साथ अफगानिस्तान के माध्यम से भारत नशीली दवाओं के व्यापार को एक नए खतरे के रुप में देख रहा है। मुंद्रा बंदरगाह पर जब्त की गई हेरोइन अफगानिस्तान में उत्पन्न हुई और ईरान के बंदर अब्बास बंदरगाह से मुंद्रा भेजी गई थी। अफगानिस्तान दुनिया का सबसे बड़ा अवैध अफीम आपूर्तिकर्ता है और नशीली दवाओं का व्यापार, तालिबान की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।
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भारत इस मोर्चे पर एक साथ लड़ रहा है। ये व्यपार एक दो करोड़ का नहीं बल्कि कई हजार करोड़ों का व्यापार है। ये भारत के विरोधी ताकतों को आर्थिक बल तो देता ही है, यह देश की मुख्य संस्कृति में भी कुरीतियों को स्थापित कर रहा है। सरकार इस मोर्चे पर प्रतिबद्धता से लड़कर आर्थिक विकास और सांस्कृतिक विरासत की रक्षा कर रही है जो काबिल-ए-तारीफ है।