भारत जनसंख्या के अनुसार दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है और लंबे समय से ऐसी उम्मीद लगाई जाती रही है कि इस मामले में हम जल्द ही चीन को पीछे छोड़ देंगे। हालांकि, अब खबर सामने आई है कि देश की आबादी घटने जा रही है और इसका कारण है TFR यानी Total fertility rate। रिपोर्ट के अनुसार अपने जीवन काल में एक महिला द्वारा कुल बच्चों को जन्म देने वाली औसत संख्या प्रतिस्थापन दर (Replacement Level) से नीचे आ गई है और अब ये 2 हो चुकी है। यह खबर हिंदुओं के लिए किसी खतरे से कम नहीं है। देश की प्रजनन दर कम होना सीधे हिंदुओं से जुड़ा हुआ है क्योंकि देश में 75 प्रतिशत से अधिक हिंदुओं की जनसंख्या है। अगर इसी दर से हिंदुओं का प्रजनन दर कम होता रहा तो बेहद कम समय में ही पहले से घट रही आबादी के कारण हिन्दू अल्पसंख्यक हो जाएंगे।
दरअसल, नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (National Family Health Survey) के डेटा 2019-21 के अनुसार देश में कुल प्रजनन दर प्रतिस्थापन दर से नीचे आ गई है और अब ये 2 हो गई है। प्रतिस्थापन दर उसे कहते हैं जिसमें एक पीढ़ी, दूसरी पीढ़ी को रिप्लेस करती है। समान्यतः किसी देश का रिप्लेसमेंट दर 2.1 होना चाहिए लेकिन अब भारत में ये दर 2 हो चुकी है। 2015 और 2016 के बीच किए गए सर्वेक्षण के चौथे संस्करण के अनुसार, TFR राष्ट्रीय स्तर पर 2.2 था, जबकि पांचवां सर्वे 2019 से 2021 के बीच दो चरणों में कराया गया।
रिपोर्ट के अनुसार बड़े राज्यों में, केवल तीन राज्य ऐसे हैं जहां प्रतिस्थापन दर 2.1 से अधिक है। इन राज्यों में बिहार (3.0), उत्तर प्रदेश (2.4) और झारखंड (2.3) शामिल हैं। हालांकि, पिछले बार से इनके TFR में कमी आई है लेकिन अब भी यह 2.1 से अधिक है और यह सभी को पता है कि इन राज्यों में एक विशेष वर्ग की संख्या ही बढ़ रही है। केरल में तो यह दर बढ़ी है। इस राज्य में यह दर 1.6 से 1.8 हो चुकी है। National Family Health Survey 2015-16 के अनुसार उत्तर प्रदेश में हिंदुओं में Total Fertility Rate 2.7 है, तो वहीँ मुस्लिमों में यह आंकड़ा कुछ अधिक 3.1 है।
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यही ही नहीं प्यू रिसर्च सेंटर की एक रिपोर्ट की माने तो भारत में महिलाओं की प्रजनन दर में पिछले 25 सालों में ही जबरदस्त बदलाव देखने को मिला है। आजादी के बाद से जनसंख्या परिवर्तन हिंदू 84 से घटकर 78-79 हो गए, जबकि मुसलमान लगातार बढ़े हैं। 2011 में हुई जनगणना के अनुसार भारत में 1.2 बिलियन हिन्दू (120 करोड़) यानी कुल जनसंख्या का 79.8% थे। यह प्रतिशत 2001 में पिछली जनगणना की तुलना में 0.7 प्रतिशत अंक कम था, और 1951 में दर्ज 84.1% से 4.3 अंक कम है। यानी हिंदुओं की जनसंख्या खतरनाक स्तर से गिरी है। 2011 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि 2001 और 2011 के बीच, हिंदू आबादी में 16.76 प्रतिशत की वृद्धि हुई है, जबकि मुसलमानों की जनसंख्या में 24.6 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
भारत के प्रमुख धार्मिक समूहों में से एक मुसलमानों की प्रजनन दर 2015 में सबसे अधिक (2.6 बच्चे) थी, इसके बाद हिंदुओं में यह दर 2.1 थी। 2015 तक मुस्लिम महिलाओं के हिंदू महिलाओं की तुलना में औसतन 0.5 अधिक बच्चे होने की उम्मीद थी। अब पिछले 6 वर्षों में और भी स्पष्ट बदलाव हुए होंगे। प्रजनन अंतर के कारण भारत की मुस्लिम आबादी अन्य धार्मिक समूहों की तुलना में कुछ तेजी से बढ़ रही है और हिंदुओं की कमी हुई है। अगर हम संख्या की बात करें तो हिंदुओं की जनसंख्या वर्ष 1951 में 30 करोड़ से 3 गुना बढ़ कर वर्ष 2011 में 96 करोड़ हुई है। वहीं मुस्लिम समुदाय 1951 में 3.5 करोड़ थे जो 2011 तक 5 गुना बढ़ कर 17.2 करोड़ हो चुके हैं।
यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि हिंदुओं की जनसंख्या अधिक है और प्रजनन दर में थोड़ा भी बदलाव एक बड़ी आबादी पर असर करता है। ऐतिहासिक रूप से मुस्लिमों का प्रजनन हिंदुओं से अधिक रहा है। अगर मुसलमानों के प्रजनन दर में कमी आती भी है तो भी उनकी जनसंख्या वृद्धि दर हिंदुओं से अधिक रहेगा। वहीं हिंदुओं का प्रजनन दर पहले से कम था, और इसमें और कमी आने से एक बड़ी जनसंख्या पर यह असर डालेगा । इसके साथ ही हिंदुओं की आबादी में बड़े स्तर पर गिरावट देखने को मिलेगी। कम समय में आधिक जनसंख्या के प्रजनन दर में कमी आने से हिंदुओं की जनसंख्या का अन्य धर्मों के साथ अंतर बड़े स्तर पर कम होगा । अब जिस स्तर से यह अंतर कम हो रहा है उससे यह कहना गलत नहीं होगा कि कुछ दशकों में यह अंतर घटते-घटते हिंदुओं को ही अल्पसंख्यक बना देगा।