मलेशिया दक्षिण पूर्व एशिया में स्थित एक इस्लामिक देश है। इस संघीय और संवैधानिक राजतंत्र में 13 राज्य और तीन संघीय क्षेत्र शामिल हैं। दक्षिण चीन सागर ने मलेशिया को दो क्षेत्रों में विभक्त किया है-Borneo’s East Malaysia और प्रायद्वीपीय मलेशिया। मलेशिया की उत्पत्ति मलय साम्राज्यों से हुई है, जो 18 वीं शताब्दी में ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन हो गए थे। उसके बाद वे British Straits Settlements के प्रोटेक्टोरेट भी बनें। प्रायद्वीपीय मलेशिया को वर्ष 1946 में मलय संघ के रूप में एकीकृत किया गया। उसके बाद वर्ष 1948 में इसे मलय संघ के रूप में पुनर्गठित किया गया था और अंततः 31 अगस्त 1957 को इसने मलय संघ के रूप में स्वतंत्रता प्राप्त की। स्वतंत्र मलय 16 सितंबर 1963 को उत्तरी बोर्नियो, सरवाक और सिंगापुर जैसे ब्रिटिश उपनिवेशों को मिलाकर मलेशिया बना।
लेकिन अगस्त 1965 में सिंगापुर को इस महासंघ से निष्कासित कर दिया गया और सिंगापुर एक अलग स्वतंत्र देश बन गया। जितनी रोचक इस देश के भौगोलिक गठन की कहानी है, उससे भी रोचक है यहां का सामाजिक इतिहास। हिन्दुत्व यहां की सामाजिक संरचना के आत्मा के रूप में कार्य करता है। मलेशिया भले ही शरिया कानून से चलता है, पर मलेशिया अपनी भव्यता सनातन से प्राप्त करता है। पलायन, प्रवास और इस्लामी आक्रमण के अनेकों झंझावातों को झेलते हुए सनातन ने मलेशिया की भव्यता को संभाल लिया, अन्यथा यह देश भी अफगान-तालिबान में परिवर्तित हो गया होता। इस आर्टिकल में हम मलेशिया के बारे में विस्तार से समझेंगे, जो चलता तो इस्लाम से है लेकिन अभी तक हर तरह से बचा हुआ है, क्योंकि उसकी ध्वजा सनातन संस्कृति ने थाम रखी है।
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मलेशिया में हिंदुओं की जनसंख्या 18 लाख के करीब
इंडोनेशियाई द्वीप समूह के समान, मूल मलेशियाई लोग भी बौद्ध धर्म, हिंदू धर्म और इस्लाम के आगमन से पहले जीववाद और गतिशील विश्वासों का अभ्यास करते थे। 1,700 साल पहले मलय तटों पर हिंदुओं का सबसे पहले आगमन हुआ। भारत के साथ व्यापार की वृद्धि ने मलय दुनिया के अधिकांश तटीय लोगों को हिंदू धर्म के संपर्क में ला दिया। इस प्रकार, हिंदू धर्म, भारतीय सांस्कृतिक परंपराएं और संस्कृत भाषा पूरे देश में फैलने लगी। वहां मंदिर भारतीय शैली में बनाए जाने लगे और स्थानीय राजा खुद को भारतीय राजा के रूप में संदर्भित करने लगे। इतना ही नहीं, तब इस देश ने भारत सरकार के स्थापित व्यवस्था को अपनाया। उसके बाद, मलय प्रायद्वीप के तटीय क्षेत्रों में विशेष रूप से गंगा नेगारा, लंगकासुका और केदाह में छोटे हिंदू मलय राज्य दिखाई देने लगे।
मलेशिया में हिंदू चौथा सबसे बड़ा धर्म है। मलेशिया की वर्ष 2010 की जनगणना के अनुसार, लगभग 17.8 लाख मलेशियाई निवासी हिंदू हैं, जो कि कुल जनसंख्या का 6.3 फीसदी हैं। अधिकांश मलेशियाई हिंदू प्रायद्वीपीय मलेशिया के पश्चिमी भागों में बसे हुए हैं। मलेशिया में 3 राज्य ऐसे हैं, जहां हिंदू आबादी 10% से अधिक है। वर्ष 2010 की जनगणना के अनुसार, हिंदुओं के उच्चतम प्रतिशत वाला मलेशियाई राज्य, नेगेरी सेम्बिलन है, जहां हिन्दू आबादी 13.4% है। वहीं, सबसे कम हिंदू आबादी वाला राज्य सबा (0.1%) है।
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मलेशियाई हिंदुओं का सबसे बड़ा त्योहार है दिवाली
मलेशियाई हिंदू धर्म विविध है, जिसमें बड़े शहरी मंदिर विशिष्ट देवताओं को समर्पित हैं, जबकि छोटे मंदिर छोटे पुरानें ऐतिहासिक जागीरों में स्थित हैं, जिन्हें ‘Estate Temple’ कहा जाता है। एस्टेट मंदिर आम तौर पर भारतीय परंपरा का पालन करते हैं। मलेशिया के बहुत से हिन्दू दक्षिणी भारत की शैव परंपरा (शिव की पूजा) का पालन करते हैं।
हालांकि, मलेशिया में कुछ वैष्णव हिंदू भी हैं, उनमें से कई उत्तर भारत से गए हैं और वे सेक्सयेन 52 में स्थापित गीता आश्रम और Kampung Kasipillay में स्थापित लक्ष्मी-नारायण जैसे हिंदू मंदिरों में पूजा करते हैं। इन मंदिरों में सेवाएं और प्रार्थनाएं आमतौर पर हिंदी और अंग्रेजी में आयोजित की जाती है। लोक हिंदू धर्म यहां के हिंदुओं में सबसे प्रचलित विविधता है, जिसमें आध्यात्मवाद और ग्राम देवताओं की पूजा करना शामिल है।
दीपावली (रोशनी का त्योहार), थाईपुसम (भगवान मुरुगन का त्योहार), पोंगल (फसल उत्सव) और नवरात्रि (दुर्गा त्योहार) यहां के कुछ प्रमुख हिंदू त्योहारों में शामिल हैं। दीपावली मलेशिया का सबसे बड़ा हिंदू त्योहार है। सरवाकी राज्य को छोड़कर दीपावली और थाईपुसम के दिन मलेशिया के सभी राज्यों में सार्वजनिक अवकाश होता है।
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कानून के खिलाफ है इस्लाम से हिंदू धर्म में धर्मांतरण
बताते चलें कि मलेशिया में हिंदुओं की आबादी पिछले 6 दशक में बहुत कम हो गई है। सरकार की इस्लामी कट्टरवाद की नीतियां और अन्य कारणों से मलेशिया में हिंदुओं की जनसंख्या कम होती जा रही है। मलेशिया के संविधान में इस्लाम को राज्य धर्म का दर्जा दिया गया है। यहां मुसलमानों के पक्ष में कई नियम हैं और शरीयत अदालतों द्वारा हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के अधिकारों की उपेक्षा की जाती है। मलेशियाई हिंदुओं के ईसाई और इस्लाम में जबरन धर्मांतरण की खबरें भी सामने आई है। कई हिंदू समूहों ने बताया कि वर्ष 1991 तक लगभग 1,60,000 हिंदू, ईसाई और इस्लाम में परिवर्तित हो गए थे, जिनमें से 1,30,000 ईसाई और 30,000 इस्लाम में परिवर्तित हुए। उनमें से अधिकांश सिंगापुरी और मलेशियाई तमिल थे।
मलेशिया में इस्लाम से हिंदू धर्म में धर्मांतरण कानून के खिलाफ है, लेकिन हिंदू, बौद्ध और ईसाइयों का इस्लाम में धर्मांतरण वैध है। सरकार सक्रिय रूप से देश में इस्लाम के प्रसार को बढ़ावा देती है। अगर कोई भी हिंदू, मुस्लिम से शादी करता है, तो उसे पहले इस्लाम में परिवर्तित होना होगा अन्यथा विवाह को अवैध माना जाएगा। इससे इतर, यदि हिंदू माता-पिता में से कोई एक इस्लाम अपनाता है, तो उनके बच्चे माता-पिता की सहमति के बिना स्वतः ही मुस्लिम हो जाते हैं।
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मलेशिया में हिंदुओं का उत्पीड़न
मलेशियाई अदालतों में हिंदुओं के उत्पीड़न से संबंधित कई मामले हैं। उदाहरण के लिए, अगस्त 2010 में मलेशियाई अदालत ने सिती हसनाह बांगगर्मा नाम की एक मलेशियाई महिला को हिंदू धर्म अपनाने के अधिकार से वंचित कर दिया था। बांगगर्मा एक हिंदू के रूप में पैदा हुई थी, लेकिन 7 साल की उम्र में उन्हें जबरन इस्लाम में परिवर्तित कर दिया गया था। वो हिंदू धर्म में वापस आना चाहती थी, उन्होंने अदालत से धर्मांतरण को मान्यता देन की अपील भी की थी। पर उनके अपील को अस्वीकार कर दिया गया।
गौरतलब है कि मलेशियाई सरकार और इस्लामिक अत्याचार ने मलेशिया के हिंदुओं को झुकाने और मिटाने के सतत प्रयास किये और अभी भी कर रहें है। परंतु, सनातन संस्कृति के ये संवाहक न तो उस समय झुके थे, न अभी झुके हैं और न ही आगे झुकेंगे। वैश्विक समुदाय को मलेशिया के हिंदुओं पर हो रहे अत्याचारों पर शीघ्रताशीघ्र संज्ञान लेना चाहिए, वरना हम एक समृद्ध विरसत खो देंगे।