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IIT खड़गपुर के कैलेंडर ने आर्यन-आक्रमण थ्योरी के मिथक को किया नष्ट और लिबरल्स इससे चिढ़ रहे हैं

विदेशी आक्रांताओं के मिथक और वैदिक युग की सत्यता का प्रमाण है यह कैलेंडर!

Aniket Raj द्वारा Aniket Raj
29 December 2021
in चर्चित
IIT खड़गपुर कैलेंडर
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हाल ही में, IIT खड़गपुर ने वर्ष 2022 का कैलेंडर जारी किया है, जिसका शीर्षक है ‘Recovery Of The Foundation of Indian Knowledge Systems’ जिसका अक्षरशः हिन्दी अनुवाद है ‘भारतीय ज्ञान प्रणाली की नींव प्राप्ति।’ इस कैलेंडर में सिंधु सभ्यता, चक्रीय समय, अंतरिक्ष-समय के कारण, गैर-रेखीय प्रवाह और परिवर्तन, आर्य ऋषि, एक सींग का जानवर (Unicorn), समय के युग, ब्रह्मांडीय समरूपता, शब्दार्थ, और लाक्षणिकता और विश्व युद्ध जैसे विषयों को भी शामिल किया गया है। यह कैलेंडर एक परिचयात्मक उद्धरण के साथ शुरू होता है, जिसमें लिखा है- “भारतीय सभ्यता और इतिहास का वर्तमान कालक्रम संदेहास्पद और भ्रमयुक्त है। बुद्ध और महावीर के जन्म से भी पहले के भारतीय साहित्य, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक ग्रंथों का एक लंबा विकासवादी क्रम रहा है। जिसकी प्राप्ति के लिए भारतीय विद्वानों को कम से कम 1000 साल लगे होंगे।”

IIT खड़गपुर ने भारतीय सभ्यता पर जारी किया कैलेंडर

प्रारंभिक वैदिक श्रुति (श्रवण रूप) के साहित्यिकरण से लेकर बाद के वैदिक और पौराणिक साहित्य के क्रमित रचना में निश्चित रूप से 1000 साल लगे होंगे। पर, हमारा दुर्भाग्य जो इतने लंबे कालक्रम के दौरान हम दमन, आक्रमण, संकुचन और विकृतियों को झेलते रहें। IIT खड़गपुर कैलेंडर में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि एडॉल्फ हिटलर, मैक्स म्यूएलर, आर्थर डी गोबिन्यू और ह्यूस्टन स्टीवर्ट चेम्बरलेन जैसे लोगों ने अपने अत्याचारों को सही ठहराने के लिए इस सिद्धांत का प्रचार किया। IIT खड़गपुर कैलेंडर को तीन श्रेणियों में विभाजित किया गया है: पहला भाग, उन तथ्यों और संकेत को रेखांकित करता है, जिन्हें औपनिवेशिक इतिहासकारों द्वारा या तो मिटा दिया गया या फिर विकृत कर दिया गया।

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अगला भाग उन चार प्रमाणों को रेखांकित करता है, जो वैदिक संस्कृति और सिंधु घाटी सभ्यता (7000 ईसा पूर्व – 1500 ईसा पूर्व) को वैज्ञानिक रूप से जोड़ देते हैं और अंतिम भाग उन कारणों पर केंद्रित है कि क्यों औपनिवेशिक शासक इस तरह के मिथक को गढ़ने के लिए बेताब थे? वहीं, IIT खड़गपुर कैलेंडर स्वामी विवेकानंद और श्री अरबिंदो को भी उद्धृत करता है कि कैसे पश्चिमी विशेषज्ञों ने आर्य सभ्यता को गलत तरीके से समझाया है। अंततः यह ‘आर्यन भ्रम’ और दो विश्व युद्ध 1914 – 1945′ पर एक टिप्पणी के साथ समाप्त होता है, जिसमें अंकित है-30 जनवरी 1933 को राष्ट्रपति पॉल वॉन हिंडनबर्ग द्वारा एडोल्फ हिटलर को जर्मनी का चांसलर नियुक्त किया गया था।

आर्य आक्रमण का सिद्धांत

विदेशी इतिहासकारों द्वारा प्रतिपादित इसी आर्य सिद्धान्त पर हिटलर ने एंग्लो-सैक्सन और जर्मनों का एक अधिनायकवादी शासन स्थापित किया। वहीं, यहूदी-विरोधी का बदनाम इतिहास और विश्वव्यापी आक्रमण का प्रारम्भ हुआ। आर्यन आक्रमण की यूरोपीय परिभाषा के नाम पर 1914 और 1945 के बीच 120 मिलियन से अधिक नागरिक और सैनिक मारे गए! उपनिवेशिक शक्तियों और इस्लामिक आक्रमण जनित भारतीय नरसंहार को जायज ठहराने के लिए आर्य आक्रमण का झूठा सिद्धान्त गढ़ा गया। आर्यन मिथक को ट्रिगर करना विश्व युद्ध I और II का कारण बनना जो मानव इतिहास में अब तक का सबसे घातक संघर्ष था, जिसमें 110 मिलियन से अधिक मौतें हुई थी।

कैलेंडर के निर्माण लिए अवधारणा और शोध IIT खड़गपुर के ‘सेंटर ऑफ एक्सीलेंस फॉर इंडियन नॉलेज सिस्टम्स’ के अध्यक्ष प्रोफेसर जॉय सेन द्वारा किया गया है। सेन IIT खड़गपुर के ‘नेहरू म्यूजियम ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी’ के चेयरपर्सन भी हैं। इसके रचनाकारों ने कहा कि “कैलेंडर ने ‘वेदों के रहस्य की मान्यता’, ‘सिंधु घाटी सभ्यता की पुनर्व्याख्या’ और ‘आर्यन आक्रमण मिथक का खंडन’ के लिए बारह महीनों के माध्यम से ‘बारह साक्ष्य’ प्रदान किए।”

IIT खड़गपुर कैलेंडर में वर्णित माह बताते हैं

उदाहरण के लिए, कैलेंडर का फरवरी पृष्ठ कहता है, “स्वस्तिक’ के चक्रीय और गैर-रेखीय पैटर्न के साथ साथ आर्य ऋषियों के समय व्याख्या के प्रमाण भी सिंधु घाटी मुहरों में स्पष्ट हैं। इसलिए, यह साबित होता है की विदेशी आक्रमणकारी के पास भारतीय ब्रह्मांड विज्ञान के विकास के लिए कुछ भी नहीं था।“ गैर-रेखीय प्रवाह और परिवर्तन” शीर्षक वाला अप्रैल पृष्ठ भौतिकी और द्रव गतिकी की अवधारणाएं को सिंधु घाटी मुहरों में अंकित करता हुआ दिखाता है कि आक्रमणकारी आर्यों को इन सूक्ष्म निर्माणों का कोई पता नहीं था। यह आर्य आक्रमण का सिद्धान्त ही है।

बता दें कि आर्य आक्रमण को सिद्धांत पहली बार तब प्रतिपादित किया गया था जब औपनिवेशिक युग के दौरान यूरोपीय विद्वानों ने संस्कृत और प्रमुख यूरोपीय भाषाओं के बीच भाषाई समानता की खोज की थी। इस सिद्धांत के अनुसार 2000 ईसा पूर्व के दौरान यूरोप से आर्यों ने आक्रमण किया या एशियाई उपमहाद्वीप में प्रवास किया। इसमें कहा गया है कि इन ‘आक्रमणकारियों’ ने भारत के मूल निवासी ‘द्रविड़ों और आदिवासियों’ को मार डाला तत्पश्चात दक्षिण-एशियाई उपमहाद्वीप में आर्य जाति की स्थापना की।

भारत की गौरवशाली सभ्यता को अक्षूण रखने की कोशिश

आर्य आक्रमण सिद्धांत ने दावा किया कि ये ‘आक्रमणकारी’ आधुनिक भारतीय सभ्यता की जड़ थे ना की हड़प्पा या फिर किसी वैदिक सभ्यता के। इस सिद्धान्त का उपयोग ब्रिटेन, फ्रांस और स्पेन आदि उपनिवेशवादियों द्वारा भारत में अपने शासन को वैध बनाने के लिए किया जाता था। परंतु, राखीगढ़ी परियोजना में मिले 5000 साल पुराने हड़प्पा अवशेषों के डीएनए नमूने जब आधुनिक भारतीयों के डीएनए से ‘match’ हो गए तब पश्चिमी इतिहासकारों के झूठ का पर्दाफाश हुआ और उनके कपोलकल्पित आर्य आक्रमण के सिद्धांत को खारिज कर दिया गया। IIT खड़गापुर के 2022 कैलेंडर की छवियों ने ट्विटर पर आलोचना और प्रशंसा दोनों को आकर्षित किया।

@prasanto ने कहा, “असाधारण। IIT-खड़गपुर ने 2022 कैलेंडर जारी किया है जो ‘आर्यन आक्रमण सिद्धांत को खत्म करने’ के लिए छद्म विज्ञान से भरा है। IIT-Kh और उसके पूर्व छात्रों ने इतना कुछ किया है उसने वास्तविक विज्ञान और अनुसंधान को धूमिल कर दिया?” @parrysingh ने उपरोक्त ट्वीट का जवाब देते हुए कहा, “OMG! यह पूरी तरह से बचकाना और अवैज्ञानिक है। क्या इसकी पुष्टि हो गई है कि इसे IIT-K द्वारा जारी किया गया है?” @ Indian10000000 ने कहा- “यहां इतनी सारी भयावह गलतियां हैं कि मुझे नहीं पता कि कहां से शुरू करूं।”

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ऐसे में, विरोध करनेवाले लोगों की जानकारी के लिए बता दें कि पिछले साल भी भारत की पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों के विषयों पर कैलेंडर प्रकाशित किया गया था और यह होते भी रहना चाहिए ताकि भारत की गौरवशाली सभ्यता अंधकार से निकाल कर पुनः विश्व को प्रकाशित कर सके।

Tags: IITआर्यभारतसभ्यतासिंधु घाटी सभ्यता
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