जापान को पिछले सात दशकों से दुनिया एक शांतिवादी राष्ट्र के रूप में जानती है। परंतु, पिछले कुछ समय से जापान में आ रहे बदलाव को देखा जाए, तो यह स्पष्ट हो जाएगा कि जापान अब आक्रामकता और प्रखरता को धीरे-धीरे अपना रहा है। जिस तरह से यह देश अपने आप को हथियारों से लैस कर रहा है, उससे किसी को भी ऐसा लगेगा कि जापान किसी देश के खिलाफ युद्ध की तैयारी कर रहा है। जापान अपने F-15 लड़ाकू विमानों को ‘जापानी सुपर इंटरसेप्टर (JSI)’ मानक में अपग्रेड कर रहा है, तो वहीं ताइवान के मुद्दे पर अमेरिका के साथ संयुक्त अभियान योजना भी तैयार कर रहा है। यही नहीं, इस द्वीप देश का रक्षा बजट जीडीपी के 1% की सीमा को भी पार कर रहा है।
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‘जापानी सुपर इंटरसेप्टर’
रिपोर्ट्स के अनुसार जापान ने आखिरकार अपने 98 बोइंग F-15 J लड़ाकू विमानों के बेड़े को ‘जापानी सुपर इंटरसेप्टर’ (JSI) मानक में अपग्रेड करने की अपनी योजना बनाई है। इस अपग्रेड के साथ F-15 फाइटर जेट्स को नए इलेक्ट्रॉनिक वारफे सिस्टम, नए एवियोनिक्स और नए हथियारों से लैस किया जाएगा। यह पांचवीं पीढ़ी के F-35 लड़ाकू विमानों का पूरक होगा और जापानी वायु आत्मरक्षा बल (JASDF) को अमेरिकी वायु सेना के समान ही परिचालन में समन्वयित करेगा।
उन्नत रडार प्रणाली के साथ नई JASDF F-15 ‘जापानी सुपर इंटरसेप्टर’ हवा से जमीन पर मार करने की क्षमता हासिल करने में सक्षम होगा। यही नहीं, समुद्री गश्त लगाते समय भी इसकी ताकत दोगुनी हो जाएगी। यह लड़ाकू विमान हवा से हवा में मार करने वाली स्वदेशी मिसाइल AAM-4B से भी लैस होगा। इसका अर्थ यह है कि यदि कोई चीनी पोत या सैन्य विमान जापानी क्षेत्र में घुसपैठ करता है या जापानी हवाई क्षेत्र का उल्लंघन करता है, तो जापानी इंटरसेप्टर चीनी पोतो पर बम वर्षा कर सकता है। यह जापान को एक अति-शक्तिशाली वायु सेना भी बनाता है, जो ताइवान को लगातार चीनी हवाई क्षेत्र के उल्लंघन से बचा सकता है।
जापान ने रक्षा बजट सीमा को पार किया
जापान काफी समय से अपने रक्षा बलों को टुकड़ों-टुकड़ों में सशक्त बनाता रहा है। वास्तव में, जापान खुद को परमाणु पनडुब्बियों से लैस करना चाहता है। ऐसे में अगर इस द्वीप देश पर किसी ने दबाव बानने की कोशिश की, तो यह देश परमाणु हमला करने के साथ-साथ विरोधियों को जवाब देने में भी सक्षम होगा।
हालांकि, जापान ने परंपरागत रूप से रक्षा बजट को GDP के 1 प्रतिशत रखा है। एक अलिखित नियम के रूप में, टोक्यो ने कभी भी अपने सशस्त्र बलों पर अपने सकल घरेलू उत्पाद का 1 प्रतिशत से अधिक खर्च नहीं किया। अब मानव रहित प्लेटफॉर्म, हाइपरसोनिक मिसाइल और वायु रक्षा प्रणालियों जैसी कई नई तकनीकों को लेकर जापान अपने रक्षा बजट को अपने सकल घरेलू उत्पाद के 1 प्रतिशत से ऊपर बढ़ाने जा रहा है। यानी अब चीनी सेना को मुंहतोड़ जवाब देने हेतु जापान ने कमर कस लिया है।
बीते शुक्रवार को जापान ने $47.2 बिलियन के रिकॉर्ड रक्षा बजट को मंजूरी दी और सैन्य खर्च पर GDP के 1 फीसदी की सीमा को भी पार कर लिया। बढ़े हुए बजट के साथ, जापान सचमुच युद्ध के सभी आयामों में नई ऊंचाई को छू रहा है। चाहे वह अंतरिक्ष गतिविधि हो, साइबर सुरक्षा हो या एक दर्जन F-35 खरीदकर शस्त्रागार को और मजबूत करना हो, जापान हर क्षेत्र में आगे निकल रहा है।
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ताइवान के मुद्दे पर जापान और अमेरिका की प्लानिंग
अब जब जापान अपने शस्त्रागार को ताकतवर बना रहा है, तो ऐसे में सवाल उठता है कि वह इन सभी हथियारों का क्या करेगा? बेशक, यह चीनी सेना को टक्कर देने के लिए है। दक्षिण चीन सागर से लेकर पूर्वी चीन सागर तक चीन अपनी गुंडागर्दी दिखा रहा है। ऐसे में उस क्षेत्र में जापान ही एक ऐसा देश है, जो उसे टक्कर दे सकता है। ताइवान से लेकर सेनकाकू द्वीप के मुद्दे पर चीन की आक्रामकता को जवाब देने के लिए जापान ने एक बार फिर से अपने आप को मजबूत करना आरंभ किया है।
क्योडो न्यूज के अनुसार, जापानी सरकार के सूत्रों का कहना है कि जापानी आत्मरक्षा बलों और अमेरिकी सेना ने ताइवान की आकस्मिकता की स्थिति में जापान के दक्षिण-पश्चिम में नानसेई द्वीप श्रृंखला के साथ एक बेस स्थापित करने के लिए एक संयुक्त अभियान योजना पर सहमति व्यक्त की है। इसका अर्थ यह है कि यूएस मरीन नानसेई द्वीपों पर एक अस्थायी हमले का अड्डा स्थापित करेगी।
ऐसे में यदि ताइवान में चीन किसी भी तरह की कुछ बेवकूफी करता है, तो जापानी आत्मरक्षा बल अमेरिकी सेना के साथ मिल कर चीनी सेना को सबक सिखाएगी। इस प्रकार जापान और अमेरिका ने स्पष्ट कर दिया है कि यदि चीन ताइवान पर आक्रमण करने की योजना बनाता है, तो अमेरिकी मरीन चीनी पीएलए सैनिकों पर आक्रमण करने के लिए पूरी तरह तैयार होगी। इसलिए जापान अपनी तैयारी में कोई कसर नहीं छोड़ रहा है। उसे एहसास हो गया है कि उसे देर-सबेर चीन से लड़ना ही है और इसके लिए वह युद्धस्तर पर तैयारी कर रहा है। यह CCP के लिए बुरी खबर है।
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