खनिजों की उपलब्धता की बात करें, तो भारत का भूगोल इस मामले में एक विशिष्ट स्थान प्रदान करता है। एक ओर जहां अभ्रक, बॉक्साइट और प्लूटोनियम जैसे खनिज यहां प्रचुर मात्रा में हैं, तो वहीं हमारे पास लिथियम और कोबाल्ट जैसे खनिजों की कमी है। अब मोदी सरकार विदेशों में लिथियम और कोबाल्ट खनन पर जोर दे रही है।
भारत विदेशों में सामरिक खनिजों के खनन के अधिकार हासिल करने के लिए तैयार है। सामरिक खनिज वे खनिज हैं, जो सामाजिक-आर्थिक विकास के साथ-साथ देश की रक्षा क्षमताओं को बढ़ाने के लिए आवश्यक हैं। भारत में कुल 10 खनिजों को सामरिक के रूप में वर्गीकृत किया गया है। अब भारत विभिन्न देशों में लिथियम और कोबाल्ट का खनन करेगा। इन खनिजों का खनन ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, बोलीविया और चिली जैसे देशों में किया जाएगा। यह भारत में विभिन्न उद्देश्यों के लिए उपयोग किए जा रहे कच्चे माल की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करेगा।
दूतावासों की सहायता के साथ शुरु होगा संयुक्त खनन
निष्कर्षण की प्रक्रिया को आसान बनाने और भारत में फिर से निर्बाध आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए खनन मंत्रालय द्वारा एक संयुक्त उद्यम (जेवी) कंपनी बनाई गई है। कंपनी का नाम खनिज बिदेश इंडिया लिमिटेड (KABIL) रखा गया है। नेशनल एल्युमीनियम कंपनी (NALCO), हिंदुस्तान कॉपर लिमिटेड (HCL) और मिनरल एक्सप्लोरेशन कॉरपोरेशन लिमिटेड (MECL) तीन कंपनियां हैं, जो इस संयुक्त उद्यम के मुख्य घटक हैं।
NALCO की कुल हिस्सेदारी में 40 प्रतिशत हिस्सेदारी है, जबकि KABIL में HCL और MECL की 30-30 प्रतिशत हिस्सेदारी है। जब खनिज संसाधनों की बात आती है, तो KABIL की मुख्य जिम्मेदारी भारत को एक आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाना है। यह भविष्य में ऐसे और खनन अधिकारों की पहचान करेगा और उन्हें हासिल करेगा।
एक आधिकारिक बयान में माइन्स मंत्रालय की ओर से कहा गया कि “एक कमीशन अध्ययन और चयन मानदंड के आधार पर चुनिंदा राष्ट्रों को खनिज संपत्ति अधिग्रहण की संभावनाओं की खोज के लिए चुना गया है। अब तक, ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना, बोलीविया और चिली जैसे स्रोत देशों के साथ KABIL की भागीदारी चल रही है, जो महत्वपूर्ण और रणनीतिक खनिजों से संपन्न हैं।” काबिल को भारत के दूतावासों और मिशनों द्वारा सहायता प्रदान की जाएगी। यह अधिकारियों के साथ खानों के आकार और उनकी क्षमता जैसे विवरण साझा करेगा। इसके बाद अधिकारी निवेश संबंधी निर्णयों से संबंधित उचित सावधानी बरतेंगे।
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लिथियम और कोबाल्ट– भारत के भविष्य के लिए प्रमुख खनिज
लिथियम और कोबाल्ट अक्षय ऊर्जा और ई-गतिशीलता क्षेत्रों के लिए कुछ सबसे बुनियादी आवश्यकताएं हैं। मौजूदा समय में भारत हरित ऊर्जा पर जोर दे रहा है। अक्षय ऊर्जा के लिए यह खनिज प्रमुख घटक हैं, क्योंकि हरित ऊर्जा क्षेत्र के फलने-फूलने के लिए लिथियम-आयन बैटरी एक मूलभूत आवश्यकता है। इसके साथ-साथ दुनिया में सेमीकंडक्टर चिप और लिथियम बैटरी की मांग भी तेजी से बढ़ती जा रही है। इन खनिजों की प्रचुरता भारत के मांगों को पूरा कर उसे आत्मनिर्भर बनाने में सक्षम होगी। दुर्भाग्य से, भारत में लिथियम-आयन बैटरी के लिए कोई विनिर्माण सुविधा नहीं है। लिथियम की कमी के कारण विनिर्माता चीन जैसे देशों से सेल और बैटरी पैक आयात करने को मजबूर हैं।
केशव राव समिति की रिपोर्ट पर संसदीय समिति ने जोर दिया था, जिसमें कहा गया था कि “भारतीय मूल उपकरण निर्माताओं (ओईएम) को लंबी अवधि के लिए लिथियम सेल बनाने के लिए सरकारी समर्थन की आवश्यकता है। लिथियम की आपूर्ति सुनिश्चित करने से वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धी मूल्य पर बैटरी बनाने में मदद मिल सकती है, जिसमें ईवी की कीमत कम करने की क्षमता है।”
मोदी सरकार द्वारा उठाया गया यह कदम देश को अक्षय ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाएगा। इसके अलावा, यह हमें हमारे भू-राजनीतिक पहलुओं को मजबूत करने के लिए रणनीतिक स्थल भी प्रदान करेगा। इस तरह की और भी पहलें की जा रही हैं और यदि सरकार इसमें सफल होती हैं, तो ये पहल भारत की महाशक्ति की महत्वाकांक्षा को बहुत अधिक गति प्रदान करेंगी। साथ ही यह सेमीकंडक्टर चिप, हरित एवं अक्षय ऊर्जा, इलेक्ट्रिक वाहन आदि के क्षेत्र के लिए वरदान साबित होगी।
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