हमारे देश में एक प्रथा चली आई है, मुद्दा विहीन होने की रीत में कुछ तत्व हिन्दू विरोध में इस कदर बौरा जाते हैं कि हिन्दुओं की आस्था के प्रतीक हज़ारों साल पुराने उनके देवस्थानों को अपनी जमीन बताने लगते हैं। 492 साल लंबी समयसीमा के बाद अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आने में जहाँ इतने वर्ष लग गए तो ऐसा अब और अन्य शेष चल रहे मुकदमों में न हो, इसी क्रम में न्यायलय अपनी कमर कस चुका है। राम जन्मभूमि विवाद के बाद अब काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद परिसर से संबंधित मामलों सुनवाई का क्रम 29 मार्च से बिना रुके प्रतिदिन शुरू हो जाएगा। इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गुरुवार को वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद परिसर से संबंधित मामलों को 29 मार्च तक के लिए स्थगित कर दिया, निर्देश दिया कि इसके बाद सभी संबंधित मामलों में उनके निष्कर्ष तक नियमित आधार पर बहस जारी रहेगी।
दरअसल, गुरुवार को सुनवाई के दौरान मंदिर के वकील ने कहा कि वादी के बयानों से स्पष्ट है कि विवादित संपत्ति, यानी भगवान विश्वेश्वर का मंदिर प्राचीन काल से अस्तित्व में है और विवादित क्षेत्र में स्वयंभू भगवान विशेश्वर निवास करते हैं। “इसलिए, विवादित भूमि अपने आप में भगवान विशेश्वर का अभिन्न अंग है।” उन्होंने तर्क दिया कि मंदिर का भूतल का तहखाना, जो कि 15 वीं शताब्दी से पहले की एक संरचना है अभी भी उनके कब्जे में है। यह तर्क दिया जाता है कि पूजा स्थल का धार्मिक स्वरूप 15 अगस्त, 1947 को वही रहा, इसलिए ऐसे में इस परिप्रेक्ष्य में पूजा स्थल अधिनियम, 1991 के प्रावधानों को यहाँ लागू नहीं किया जा सकता है।
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फैसला आने तक रोज सुनवाई होगी!
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने गुरुवार को फैसला किया कि वह 29 मार्च से शुरू होने वाले वाराणसी के काशी विश्वनाथ मंदिर-ज्ञानवापी मस्जिद विवाद से संबंधित मामले में नियमित सुनवाई करेगा। प्रकाश पाडिया की खंडपीठ ने अंजुमन की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह आदेश दिया। इंताज़ामिया मसाज़िद, वाराणसी ने पिछले साल वाराणसी की अदालत की कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की, और निचली अदालत के समक्ष लंबित मुकदमे की स्थिरता को चुनौती देने वाले आवेदन भी दायर किए।
कोर्ट ने पहले ही सूट पर रोक लगा दी है, जिसमें ज्ञानवापी-काशी भूमि विवाद मामले में वाराणसी की निचली अदालत का आदेश भी शामिल है, जिसमें उसने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) को मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण करने का निर्देश दिया था। अनिवार्य रूप से, अंजुमन इंताज़ामिया मस्जिद , वाराणसी ने स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की प्राचीन मूर्ति द्वारा वाराणसी कोर्ट के समक्ष दायर किए गए मुकदमे को (एचसी के समक्ष) चुनौती दी है और वर्ष 1991 में 5 अन्य लोगों ने उस भूमि की बहाली का दावा किया है जिस पर ज्ञानवापी मस्जिद हिंदुओं की है।
गुरुवार को, प्रतिवादियों ने अदालत के समक्ष तर्क दिया कि याचिकाकर्ता [अंजुमन इंतज़ामिया मसाज़िद, वाराणसी] ने शुरू में आदेश VII नियम 11 (डी) सीपीसी के तहत वादी (स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर की प्राचीन मूर्ति की) को खारिज करने के लिए एक आवेदन दायर किया था, हालांकि, उन्होंने काफी समय तक उस पर दबाव नहीं डाला और उपरोक्त आवेदन पर दबाव डालने के बजाय, उन्होंने वादी में लिखित बयान दाखिल करने का विकल्प चुना।
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प्रतिवादी के वकील द्वारा आगे यह तर्क दिया गया कि बाद में दलीलों के आधार पर, वाराणसी कोर्ट द्वारा मुद्दों को तैयार किया गया था। वकील ने यह भी प्रस्तुत किया कि विचाराधीन संपत्ति, अर्थात भगवान विश्वेश्वर का मंदिर प्राचीन काल से, यानी सतयुग से अब तक अस्तित्व में है। यह उनका आगे निवेदन था कि स्वयंभू भगवान विश्वेश्वर विवादित संरचना में स्थित है, और इसलिए विवादित भूमि अपने आप में भगवान विशेश्वर का अभिन्न अंग है।
मस्जिद समिति द्वारा दिए गए तर्क पर कि चूंकि वादी पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 के प्रावधानों द्वारा वर्जित था, इसलिए इसे खारिज कर दिया जाना चाहिए, उत्तरदाताओं ने तर्क दिया कि पूजा स्थल का धार्मिक चरित्र बना रहा। 29 मार्च, 2022, अन्य जुड़े मामलों के साथ और कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि इसके बाद तर्क अपने निष्कर्ष तक नियमित आधार पर जारी रहेंगे।
महादेव का प्यार है बनारस और घर है विश्वनाथ मन्दिर!
इस पूरे मुक़दमे का संदर्भ महादेव की नगरी काशी की उस देवस्थली से है जहाँ के अस्तित्व को नकारना और सत्यता को दरकिनार करना किसी के भी बस की बात नहीं है। अतिक्रमण और जबरन कब्ज़ा कर एक भूमि को बिना किसी प्रमाण के अपनी बताना कुछ द्रोही तत्वों की आदत बन गई है। पहले रामजन्मभूमि में अड़ंगा डाल उसे अपना बताया, काशी विश्वनाथ पर तो निगाह बहुत पहले से गढ़ाए ही बैठे थे, मथुरा-गोकुल नगरी को भी अब यह लोग अपना बताने और केस लड़ने जैसी बकलोली कर रहे हैं क्योंकि सब इन्हीं का तो था, हिन्दू तो कल पैदा हुए हैं।
निश्चित तौर पर इन लोगों की रोटी ही हिन्दू देवस्थानों को अपना बताने से चलती आई है, और पीढ़ी दर पीढ़ी ये लोग इसे ही अपना पेशा बना घर के चुल्हे का इंतज़ाम करते रहें हैं। ऐसे में इस बार न्यायालय ने देरी न करने और रामजन्मभूमि विवाद की भाँति इसे और लंबा न खींचा जाए उसपर ध्यान केंद्रित कर हर दिन लंबित मामलों और याचिकाओं पर सुनवाई करने का निर्णय लिया है।