बिहार में बहार है यह डायलॉग फ़िल्मी है और फिल्म तक ही सीमित रह गया। जी हां, 1912 में अस्तित्व में आए बिहार की तरक्की और विकास में उसी के नेता बाधक बनते आए हैं। नीतीश कुमार इस राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में सबसे बड़ा कार्यकाल पूरा करने वाले इकलौते जीवित मुख्यमंत्री हैं। 5 कार्यकाल से 5 बार सीएम पद की शपथ लेना कोई आसान काम नहीं है पर जिस हिसाब से नीतीश 17 साल से राज्य में बतौर मुख्यमंत्री सरकार चलाते आए हैं उनके विपक्षी बाद में उनकी नीतियों पर उन्हें लताड़ते हैं पहले तो उनके घटक दल आते हैं। अब राज्य की सत्ता से नीतीश का भी मोह खिन्न सा रहता है और अमूमन उनके सहयोगी दल, विपक्षी और जनता भी चाहती है कि अब नीतीश बिहार के मुख्यमंत्री पद को छोड़ दें। इसी क्रम में इस बार संभवतः यह अटकलें सिरे चढ़ जाएं और नीतीश राज्य की राजनीति से दूर राज्यसभा की राजनीति तक पहुँच जाएं। अर्थात इसी जुलाई 2022 तक बदल सकते हैं नीतीश कुमार के किरदार, राज्य मुख्यमंत्री से एकराज्यसभा सांसद।
नीतीश 17 सालों से बिहार के सीएम हैं, लेकिन अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि राज्य की सत्ता से उनका भी मोह खिन्न सा हो गया है और अमूमन उनके सहयोगी दल, विपक्षी और जनता भी चाहती है कि अब नीतीश बिहार के मुख्यमंत्री पद को छोड़ दें। दरअसल, बिहार की जनता राजनीतिक खेले की बड़ी शौक़ीन है, अतरंगी जनता लालू और नीतीश को राज्य का नेता बना चुकी है और यही नेता अनेकों बार इस विश्वास का खून कर चुके हैं। लालू और उनके चश्मोचिराग़ों को जनता ने अपने मत से हरा दिया पर नीतीश के पास चूंकि भाजपा की बैशाखी थी तो माननीय चले आ रहे हैं। धरातल पर स्थिति यह है कि अब मोदी तुझसे बैर नहीं और नीतीश तेरी खैर नहीं के नारे आम हो चले हैं। नीतीश कुमार की इन्हीं हरकतों ने उन्हें अब जननेता वाले टैग से वंचित करना शुरू कर दिया है, ऐसे में रही बची इज़्ज़त बचाने के लिए नीतीश ने भी सरकने का मन बना लिया है। 2020 के राज्य विधानसभा के चुनावी नतीजे इसका जीता जागता परिणाम है। 115 सीटों पर लड़ने वाली जेडीयू को मात्र 43 सीटों पर जीत हासिल हुई, वही भाजपा खेला कर गई। विस्मय की बात थी कि 110 सीटों पर लड़ने वाली भाजपा ने कुल 74 सीटें हासिल की थी।
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बिहार मे भाजपा का उदय
इस बड़े हेर-फेर के बाद भी पीएम मोदी के निर्देशानुसार भाजपा ने बड़े भाई का फ़र्ज़ निभाते हुए नीतीश को ही मुख्यमंत्री बनाया, क्योंकि चुनाव नीतीश के ही नेतृत्व में लडा गया था। उससे भाजपा ने राजनीतिक शिष्टाचार भी पूरा किया और नीतीश को भी समझा दिया कि डांवाडोल रहकर कुछ नहीं मिलता, जवाबदेही और ज़बान भी कोई चीज़ होती है। बहरहाल, सरकार बनी, सरकार में भाजपा के दो नेताओं को उपमुख्यमंत्री बनाया गया और आज सरकार अपने स्तर पर काम कर रही है। वहीं, नीतीश बाबू के राज्यसभा जाने और राज्य से जाने की बातें बीते माह सामने आई, जब पत्रकारों से हल्के माहौल में बात करते हुए नीतीश ने कहा कि “वह भी किसी समय राज्यसभा के सदस्य बनना चाहते हैं। वह अब तक बिहार विधानसभा, विधान परिषद और लोकसभा के सदस्य रह चुके हैं बस राज्यसभा नहीं पहुंचे हैं।” अब बातें यूंही नहीं कहीं जाती, दो बाते हुई होंगी जिन्हें नीतीश बाबू दिमाग में लिए घूम रहे होंगे और बातचीत में वो बात भी निकल गई।
चूंकि राज्य की सत्ता में नीतीश अब उस सर्वमान्य नेता की कमी की पूर्ति नहीं कर पा रहे हैं जिसकी उम्मीद थी। ऐसे में अब यह ज़िम्मेदारी किसी और को देने के साथ ही भाजपा अब अपने चेहरे को भुनाने अर्थात् अपने किसी नेता को राज्य का मुख्यमंत्री बनाने की योजना बना रही है। बनाए भी क्यों न, राजनीति संभावनाओं और समीकरणों का खेल है, जिनके बनने और बिगड़ने में लेशमात्र भी समय नहीं लगता। आज का राजा कल का रंक और फ़कीर हो सकता है, इसको समझना बेहद आवश्यक है। भाजपा भी इसी मंत्र को लेकर आगे बढ़ रही है और जिन नेताओं के नाम ही सबसे अधिक चर्चा है वो हैं केन्द्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय और केंद्रीय ग्रामीण विकास और पंचायती राज विभाग मंत्री गिरिराज सिंह।
भाजपा के लिए अब यही क्षण अंतिम और यही क्षण भारी है, चूंकि भाजपा एक लंबे समय से बिहार में अपने मूल नेता के त्रास से जूझ रही है। ऐसे में यही एक समय ऐसा है जब नीतीश स्वैच्छा से मुख्यमंत्री पद का त्याग करेंगे और भाजपा बिहार में अपना उद्धभव। यह सर्वविदित है कि 2020 के चुनावों ने भाजपा को संजीवनी बूटी देने के साथ ही बिहार में राजनीतिक स्तर पर बहुत मजबूती दे दी है। हाल ही में VIP के विधायक भी भाजपा में शामिल हो गए, जिसके बाद उसका आंकड़ा 74 से 77 सीटों पर पहुंच गया।
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राज्यसभा में जेडीयू-बीजेपी-राजद
बता दें, नीतीश कुमार यदि राज्यसभा जाते हैं तो उनका चुनाव बहुत आसानी से पूर्ण हो जायेगा चूंकि बिहार के छह राज्यसभा सदस्यों का कार्यकाल 7 जुलाई को समाप्त हो रहा है, जिसमें एक सीट जो जदयू के राजा महेंद्र के निधन के कारण खाली हुई है और एक सीट जिसका प्रतिनिधित्व जदयू पार्टी के पूर्व अध्यक्ष शरद यादव ने किया था, ऐसे में इस समीकरण से नीतीश कुमार की राज्यसभा जाने की इच्छा पूरी होने की पूर्ण संभावना है। अपने दम पर जेडीयू-बीजेपी गठबंधन चार सीटें जीत सकता है, जबकि राजद दो सांसदों को भेजने की सहज स्थिति में है। जुलाई में सेवानिवृत्त होने वाले चार लोगों में से दो भाजपा से और एक-एक राजद और जदयू से हैं।
अब यदि भाजपा ने तय कर लिया तो इस बार उसका राज्य में मुख्यमंत्री पद से वंचित रहने का वनवास खत्म होगा और शीघ्र ही एक और राज्य में भाजपा का मुख्यमंत्री होने के साथ ही भाजपा बिहार से सटे राज्यों में और मजबूत हो जाएगी जैसे कि छत्तीसगढ़ और झारखंड। इन दोनों राज्यों में अभी गैर भाजपा सरकार है और दोनों ही राज्यों में क्रमशः 2023 और 2024 में चुनाव हैं। इन सभी से पूर्व यदि सब अमूमन अभी तक के ट्रेंड के मुताबिक ही चला तो जुलाई 2022 तक नीतीश कुमार का कद और पद दोनों बदल सकते हैं।
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