राजनीति में कोई किसी का सगा नहीं होता। आज के परिदृश्य में सुब्रमण्यम स्वामी पर यह बात सटीक बैठती है। सुब्रमण्यम स्वामी जो कुछ समय पहले तक मोदी सरकार की तारीफ करते नहीं थकते थे आज वो मोदी की अच्छी नीतियों के विपरीत बयान देकर चर्चाओं में बने रहना चाहते हैं। वर्तमान समय में भी सुब्रमण्यम स्वामी द्वारा यही किया जा रहा है। इस लेख में हम जानेंगे कि कैसे सुब्रमण्यम स्वामी ने Places of Worship Act को लेकर भाजपा और मोदी सरकार पर तंज कसा लेकिन उनका यह दांव खुद उन पर ही उल्टा पड़ गया है और स्वामी हास्य का पात्र बन गए है।
वाराणसी में ज्ञानवापी मस्जिद के विवादित ढांचे के अंदर एक शिवलिंग और कई अन्य हिंदू मूर्तियों और प्रतीकों की खोज के साथ, Places of Worship Act 1991 की वैधता पर फिर से बहस शुरू हो गई है और जैसे-जैसे हिंदू संगठन मुग़ल आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट किए गए प्राचीन हिंदू मंदिरों को पुनः प्राप्त करने के प्रयासों की मांग तेज कर रहे हैं वैसे वैसे ही यह विवादास्पद अधिनियम को निरस्त करने की मांग भी तेज हो गई है।
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मोदी सरकार की आलोचना करते हुए ट्वीट भी कर दिया
वहीं इसी मामले को लेकर परेशान नेता और पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने Places of Worship Act को लेकर मोदी सरकार की आलोचना करते हुए एक ट्वीट में टिप्पणी की कि “लोकसभा में पूर्ण बहुमत के साथ प्रधानमंत्री के रूप में 8 साल और राज्यसभा में वास्तविक बहुमत के बाद भी मोदी सरकार संसद में Places of Worship Act 1991 को हटाने में विफल रही है। उनका इतना बोलना ही था कि उनकी पुरानी गलतियों के लिए उनकी जमकर क्लास लगाई जाने लगी। दरअसल स्वामी तीन दशक पहले नरसिम्हा राव सरकार द्वारा बनाए गए विवादास्पद कानून पर भाजपा को घेरने की कोशिश कर रहे थे। हालांकि इतिहास हमें बताता है कि यह भाजपा ही है जो विवादास्पद कानून के विरुद्ध खड़ी हुई है और दूसरी ओर स्वामी का इस मुद्दे पर बहुत बूरा अतीत रहा है।
पिछले कुछ वर्षों से सुब्रमण्यम स्वामी Places of Worship Act का विरोध कर रहे हैं पिछले साल उन्होंने इस अधिनियम के विरुद्ध भारत के सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका भी दायर की थी। उन्होंने 1991 में पीवी नरसिम्हा राव सरकार द्वारा अधिनियमित अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिका दायर की थी।
हालांकि, अधिनियम पर उनका हालिया रुख एक बड़े पैमाने पर यू-टर्न है, क्योंकि 1991 में संसद द्वारा Places of Worship अधिनियम पारित होने से पहले सुब्रमण्यम स्वामी ने बिल का उत्साहपूर्वक समर्थन किया था। आपको बता दें कि 12 सितंबर 1991 को राज्यसभा में बिल पर बहस के दौरान उन्होंने बिल का समर्थन करते हुए कहा था कि यह बिल इस समस्या के समाधान का सबसे अच्छा तरीका है। ज्ञात हो की उस समय पूरे देश में राम जन्मभूमि आंदोलन चल रहा था।
बिल का समर्थन करते हुए सुब्रमण्यम स्वामी ने यहां तक सुझाव दिया था कि बाबरी ढांचे को मस्जिद के रूप में संरक्षित किया जाना चाहिए और उन्होंने यह भी कहा था कि यदि उत्तर प्रदेश में भाजपा सरकार राम जन्मभूमि मुद्दे की स्थिति को बदलने की कोशिश करती है तो केंद्र सरकार को कार्रवाई करनी चाहिए। उन्होंने राज्यसभा में अपने संबोधन में यह भी जोड़ा था कि आवश्यक हुआ तो वे यूपी में भाजपा की सरकार को बर्खास्त करने के लिए भी तैयार होंगे।
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अधिनियम के लिए भाजपा को दोषी ठहराया
इस अधिनियम के लिए भाजपा और राम मंदिर आंदोलन को दोषी ठहराते हुए स्वामी ने कहा था, “यह विधेयक अनिवार्य रूप से भाजपा के लिए लाया गया है। अगर 1947 में पता होता कि 44 साल बाद ऐसी स्थिति पैदा होने वाली है तो मुझे यकीन है कि ऐसा कानून 1947 में ही पारित हो गया होता। बहस के दौरान स्वामी ने दावा किया था कि ‘मूर्तियों और चित्रों को चुपके से बाबरी ढांचे में लाया गया था’, और दावा किया था कि उस जगह पर कभी कोई राम मंदिर नहीं था।
स्वामी ने जिस अधिनियम का उस समय समर्थन किया था उसे निरस्त नहीं करने के लिए आज वो भाजपा की आलोचना कर रहे हैं। भाजपा नेत्री उमा भारती ने संसद में बहस के दौरान विधेयक पर पार्टी की आपत्ति का नेतृत्व करते हुए कहा था कि धार्मिक स्थलों का मामला अदालतों में नहीं सुलझाया जा सकता।
आज जिस तरह से स्वामी Places of Worship Act 1991 को निरस्त नहीं करने के लिए भाजपा की आलोचना करते हैं वही सुब्रमण्यम स्वामी ने इस घटिया कानून का समर्थन किया था। सुब्रमण्यम स्वामी को पता होना चाहिए था कि पुरानी गलतियों पर एक बार विचार करके दूसरों पर आरोप लगाना चाहिए अन्यथा देश की जनता को सभी नेताओं का कर्मकांड अच्छे से पता होता है आप देश की ज्ञानी जनता को बरगलाया नहीं जा सकता।