वैसे तो नागरिकों की रक्षा का जिम्मा पुलिस के हाथों में होता है। परंतु हर बार, हर जगह पुलिस उपस्थित हो या फिर एकाएक क्राइम वाली जगह पर उपस्थित हो पाए, इसकी बहुत कम संभावना होती है। विशेषकर, जिनकी जान को खतरा हो या फिर जिन्हें मारने की धमकियां दी जा रही हों उन्हें आत्मरक्षा के लिए बंदूक रखने की आवश्यकता तो पड़ ही सकती है। समझना होगा कि बंदूक केवल किसी की जान लेने के लिए ही नहीं होता बल्कि इसे आत्मरक्षा के लिए भी साथ रखा जा सकता है।
इस लेख में जानेंगे कि आखिर क्यों उस आंकड़े को परिवर्तित करने का समय आ गया है जिसमें प्रति व्यक्ति बंदूक रखने के मामले में भारत को 120वें स्थान पर रखा गया है। आपको सूचित कर दें कि TFI किसी भी तरह से गन कल्चर का समर्थन नहीं करता है।
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धमकियां देना आजकल आम बात हो गयी है
दरअसल, भारत में जिस तरह से अपराध बढ़ रहे हैं, समुदायों के बीच टकराव की स्थिति बढ़ रही है, जान से मारने की धमकियां देना आजकल आम बात हो गयी है ऐसे में कुछ लोगों को हथियार रखने की आवश्यकता भी महसूस हो रही होगी। बहुत से लोग अपनी सुरक्षा के लिए बंदूक या रिवॉल्वर रखना चाहते होंगे लेकिन बंदूक प्राप्त करने के मामले में भारत का कानून इतना कठोर है कि आम नागरिकों को यह आसानी से नहीं मिल पाती।
स्मॉल आर्म्स सर्वे के अनुसार, प्रति व्यक्ति बंदूक रखने के मामले में भारत 120वें स्थान पर आता है। भारत का बंदूक से संबंधित कानून बहुत ही कड़ा है और इस कारण देश में बंदूकों की संख्या भी अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है।
भारत में अगर किसी को बंदूक का लाइसेंस चाहिए, तो एक कठिन और थकाऊ प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ता है। कई कागजातों से लेकर सिफारिशों के बाद ही लाइसेंस प्राप्त हो पाता है। बंदूक के लिए लाइसेंस हासिल करने की पूरी प्रक्रिया इतनी जटिल है कि कई लोगों को तो इसे हासिल करने में सालों साल लग जाते हैं।
बंदूक का लाइसेंस आर्म्स एक्ट 1959 के तहत दिया जाता है। एक्ट के प्रावधानों के अनुसार कोई भी नागरिक आत्मरक्षा के लिए प्रशासन से लाइसेंस लेकर हथियार ले सकता है। परंतु इसके लिए भी कई और शर्तें रखी गयी हैं। जैसे कि पिस्तौल का लाइसेंस हासिल करने के लिए भारत का नागरिक होना चाहिए। उम्र 21 साल या उससे अधिक होनी चाहिए। इसके अलावा आप पर कोई आपराधिक मामला दर्ज न हो, शारीरिक और मानसिक रूप से आप स्वस्थ हो। लाइसेंस प्राप्त करने के लिए सबसे बड़ी शर्त यह है कि स्पष्ट कारण देना होगा कि बंदूक की आवश्यकता आपको क्यों है और आपकी जान को खतरा कैसे है।
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पुलिस और स्थानीय प्रशासन की भूमिका होती है महत्वपूर्ण
हथियार का लाइसेंस जारी करने की शक्ति राज्य के गृह मंत्रालय और जिलाधिकारियों को होती है। जिला कलेक्टर या फिर इस रैंक के अन्य अधिकारी लाइसेंस जारी करते हैं। हालांकि पूरी प्रक्रिया में पुलिस और स्थानीय प्रशासन की भी भूमिका महत्वपूर्ण होती है। समझना होगा कि भारत में आम नागरिक के लिए बंदूक का लाइसेंस हासिल करना कठिन है। परंतु अब समय है इन सख्त प्रावधानों में बदलाव करने का। आवश्यकता को ध्यान में रखकर कुछ लोगों को आत्मरक्षा के लिए पिस्तौल का लाइसेंस आसानी से प्राप्त कराया जाना चाहिए जिससे वो अपनी जान तो कम से कम बचा ही सकें।
हालांकि इस दौरान कुछ लोग अमेरिका में गन कल्चर का किस तरह से गलत प्रयोग किया जा रहा है, उसका भी तर्क देंगे। परंतु देखा जाए तो भारत के हालत अमेरिका जैसे नहीं है। भारत में जिन लोगों के पास लाइसेंसी पिस्तौल है, उन्होंने अमेरिका की तरह कभी किसी स्कूल या कहीं हमला नहीं किया।
लाइसेंसी पिस्तौल रखकर लोग अपनी जान बचा सकते हैं। उदाहरण के लिए आप रोड रेज के मामले ही ले लीजिए। देश में रोड रेज के मामले बढ़ रहे हैं। मान लीजिए कोई आपके पास लूटपाट या आपको मारने के इरादे से आ रहा है। तो ऐसे में उसे अगर आप केवल बंदूक दिखाएंगे, तो वो भाग जाएगा और आप अपनी जान बचा सकते हैं।
परंतु भारत में पिस्तौल का लाइसेंस प्राप्त करने के लिए जितने सख्त नियम कानून है, उसके कारण अधिकतर लोग बंदूक लेने के लिए आवेदन ही नहीं करते। क्योंकि उन्हें ज्ञात होता है कि इसके लिए उन्हें कितनी लंबी प्रक्रिया से होकर गुजरना पड़ेगा। ऐसे में आवश्यक है कि जिन लोगों की जान को खतरा हो, जिन्हें आवश्यक हो उसका आंकलन करते हुए उनके लिए इस प्रक्रिया को तेज और सरल बनाया जाए। जिससे वो अपनी आत्मरक्षा कर सकें और उन्हें अपनी जान से हाथ न धोना पड़े।
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