एक हाथ ले, एक हाथ दे! भारत अब चीन के साथ इसी नीति के साथ आगे बढ़ने जा रहा है। जिस प्रकार चीन हमेशा अंतर्राष्ट्रीय निकायों में भारत के प्रवेश को बाधित करने के लिए वीटो लगा अड़ंगा लगा देता था, अब उसी का प्रतिकार लेने का समय भारत के सामने आ चुका है। संयुक्त राष्ट्र के छह अंगों में से एक, UNSC दुनिया का सबसे विशिष्ट समूह है। अंतरराष्ट्रीय शांति, अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध और सैन्य कार्रवाई सुनिश्चित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा आधिकारिक तौर पर अधिकृत, यूएनएससी के सदस्यों को दुनिया का नेतृत्वकर्ता माना जाता है। इसी की सदस्यता लेना भारत के लिए मुश्किल जान पड़ता था, क्योंकि चीन को UNSC में वीटो हासिल था, लेकिन अब याचक चीन बनने जा रहा है क्योंकि उसको भी एक बड़े महत्वपूर्ण संस्थान की सदस्यता चाहिए और भारत के साथ के बिना यह संभव नहीं हैं।
दरअसल, दुनिया की लगभग 18% आबादी और 3.5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के सकल घरेलू उत्पाद के साथ, भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट पाने के लिए सबसे योग्य देशों में से एक है। विश्व शांति, कार्यात्मक लोकतंत्र और जिम्मेदार परमाणु शक्ति में अग्रणी योगदानकर्ता, भारत के पास UNSC में स्थायी सीट पाने के लिए सर्वोच्च योग्य उम्मीदवार है। लेकिन, ऐसे मूल्य रखने के बावजूद, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को अभी भी इस समूह का सदस्य होना बाकी है।
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भारत का दावा मजबूत
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) की स्थायी सदस्यता हमेशा भारत के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है। यदि आप अतीत की घटनाओं और निर्णयों का पता लगाते हैं, तो कोई यह देख सकता है कि संयुक्त राष्ट्र एक राजनीतिक निकाय है जो सदस्यों के अपने स्वार्थ से संचालित होता है और UNSC के निर्णय बड़े पैमाने पर इसके P5 स्थायी सदस्य देशों, यानी फ्रांस, रूस, चीन, यूके और यूएसए और उनकी वीटो शक्ति द्वारा निर्धारित किए जाते हैं। भारत के खिलाफ स्थायी सदस्यों, खासकर चीन की राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं हमेशा एक बाधा रही हैं।
UNSC में स्थायी सीट के लिए भारत का दावा हाल के दिनों में मुखर हो गया है। सकल घरेलू उत्पाद में भारी वृद्धि ने आर्थिक आधार को स्थिर कर दिया है और संसाधन क्षमताओं ने अंततः इसकी सैन्य स्थिति को मजबूत किया है। चीन के विपरीत, जिसके पास यूएनएससी की स्थायी सीट है और अभी भी नियम-आधारित विश्व व्यवस्था का पालन नहीं करता है, भारत अंतरराष्ट्रीय कानूनों के लिए सर्वोच्च सम्मान रखता है।
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चीन को छोड़कर, UNSC के प्रत्येक स्थायी सदस्य जैसे रूस, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और संयुक्त राज्य अमेरिका ने स्थायी सीट के लिए व्यक्तिगत रूप से भारत के पक्ष में हैं। लेकिन, संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 27 के अनुसार, अन्य सभी मामलों पर सुरक्षा परिषद का हर निर्णय अस्थायी सदस्यों के सकारात्मक वोट और स्थायी सदस्यों की सहमति से किया जाएगा। इसलिए जब भी सदस्यता की बात आती है तो चीन वीटो का उपयोग कर भारत के विरुद्ध हो जाता है जो अंततः भारत की UNSC सीट के दावे पर पानी फेर देता है।
इस रणनीति से चीन वीटो का उपयोग नहीं कर पाएगा
भारत की परमाणु शक्ति और एमटीसीआर और वासेनार व्यवस्था के यूएनएससी की स्थायी सदस्यता के लिए एक मजबूत मामला बनाती है। ज्ञात हो कि, एमटीसीआर माल और प्रौद्योगिकियों के निर्यात को नियंत्रित करके सामूहिक विनाश (डब्ल्यूएमडी) के हथियारों के प्रसार के जोखिमों को सीमित करना चाहता है जो ऐसे हथियारों के लिए वितरण प्रणाली (मानवयुक्त विमान के अलावा) में योगदान कर सकते हैं। इसकी सदस्यता भारत को सामर्थ्यवान बना देती है क्योंकि 300 किलोमीटर से अधिक रेंज़ की ओर निशाना लगाने वाले हथियारों को वही देश ले सकते हैं जो MTCR की सदस्यता धारक हों। चूंकि भारत इसकी सदस्यता पूर्व में ही हासिल कर चुका है, उसे रूस से एस-400 मिलने में कोई कठिनाई नहीं हुई।
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ऐसे में लोहा गरम है और बिना किसी देर किए भारत को हथौड़ा मार देना चाहिए कि चीन MTCR का सदस्य बनना चाहता है तो उससे पहले UNSC की सीट के लिए भारत को संधि कर लेनी चाहिए ताकि वो हमेशा की भांति भारत की राह में वीटो का रोड़ा न अटका दे। तत्पश्चात भारत भी MTCR की सदस्यता हासिल करने के लिए चीन की मदद करे। कुछ इस प्रकार ही भारत को जल्द ही UNSC में स्थायी सीट मिल जाएगी।
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