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एंडोसल्फर त्रासदी: अनगिनत मौतें और अनेक जीवन हमेशा के लिए बर्बाद हो गए

इस भीषण त्रासदी के बारे में अवश्य जानिए।

Ruchi Mehra द्वारा Ruchi Mehra
24 August 2022
in चर्चित
Endoslfun

source- TFIPOST.in

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फसलों पर कीट का प्रकोप पड़ना आम बात है। इस कीटों से निपटने के लिए ही किसान फसलों पर विभिन्न प्रकार की कीटनाशकों का प्रयोग करते हैं। परंतु कीटनाशकों का अंधाधुंध उपयोग खेती और मनुष्य दोनों के लिए ही हानिकारक माने जाते है। कई कीटनाशक ऐसे होते है, जो मानव स्वास्थ्य को भारी नुकसान पहुंचाते है। ऐसा ही एक कीटनाशक है एंडोसल्फान, जिसके प्रयोग के कारण एक मानव निर्मित त्रासदी को जन्म दे दिया। कीटनाशक के प्रकोप के चलते बड़ी संख्या में लोग मौत के मुंह में समा गए और ना जाने कितने लोगों की जिंदगियां बर्बाद हो गई। बड़ी संख्या में लोग आज भी इस कीटनाशक के दुष्परिणाम को झेल रहे है।

इस एंडोसल्फान कीटनाशक की वजह से खास तौर पर केरल के कासरगोड जिले में कहर बरपा। हवा से लेकर पानी और जमीन तक में यहां जहर फैल गया। लोगों के रक्त में इस कीटनाशक का जहर बड़ी मात्रा में घुल गया। इसका प्रभाव इतना पड़ा कि इस जिले के बच्चे आज भी अंपगता का शिकार हो रहे हैं और इससे जूझ रहे हैं। इसकी वजह से यहां कई पक्षियों और कीट-पंतगों की प्रजातिय नष्ट हुई। पानी में मछलियां, मेंढक जैसे जीव तक खत्म हो गए। पौधों पर फूल आना बंद हो गए।

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एंडोसल्फान के कहर से आज भी बड़ी संख्या में कासरगोड के लोग जूझ रहे। हालांकि वर्षों तक इंतजार करने के बाद अब आखिरकार पीड़ितों को न्याय मिला है। दरअसल, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कई बार फटकार के बाद केरल सरकार ने अंतत: एंडोसल्फान कीटनाशक के पीड़ितों के मुआवजा के तौर पर दो अरब रुपये जारी कर दिए है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई आदेशों में केरल सरकार को कीटनाशक के प्रभाव से पीड़ित प्रत्येक व्यक्ति को पांच-पांच लाख रुपये का मुआवजा देने को कहा था।

बताया जाता है कि केरल में एंडोस्लफान से प्रभावित लोगों की संख्या हजारों में है। वर्तमान में भी कई पीड़ित ऐसे हैं, जो कीटनाशक के प्रभाव के कारण कई तरह की समस्याओं का सामना कर रहे हैं। कई लोग मानसिक रूप से दिव्यांग हो गए, तो कुछ शारीरिक अक्षमता का सामना कर रहे है। वहीं कुछ लोगों को कैंसर जैसी बीमारी से भी जूझना पड़ रहा है। जिसके चलते ही अदालत द्वारा पीड़ितों को मुआवजा देने की बात कही गई थी।

और पढ़ें: किसानों के कंधे पर देश: कोरोना के कारण सारे सेक्टर बंद लेकिन कृषि क्षेत्र से देश को 2020 में बड़ा लाभ मिलेगा

एंडोस्लफान

एंडोस्लफान को 1950 के दशक में विकसित किया गया था। कृषि क्षेत्र में इसका उपयोग विशेष तौर पर फसलों में लगने वाले कीड़ों को मारने के लिए किया जाता रहा। सफेद मक्खी, एफिड, भृंग, कीड़े जैसे कीटों के नियंत्रण करने के लिए कपास, काजू, फल, चाय, धान, तंबाकू आदि फसलों पर इस कीटनाशक का छिड़काव किया जाता था।

दुनियाभर में धड़ल्ले से कीटनाशक का उपयोग किया गया। भारत में भी एंडोस्लफान का खूब इस्तेमाल किया जाता था। एक समय तो ऐसा था जब भारत एंडोसल्फान का सबसे बड़े उत्पादक और साथ ही साथ उपभोक्ता भी हुआ करता था। एंडोसल्फान का जमकर प्रयोग करते हुए मानव स्वास्थ्य के साथ इसके पर्यायवरण पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों को नजरअंदाज किया गया।

केरल में काजू के बागानों में कई वर्षों तक रसायन का छिड़काव किया जाता रहा। धीरे-धीरे रसायन के कई गंभीर दुष्परिणाम भी सामने आए। रसायनों के स्वास्थ्य प्रभावों में न्यूरोटॉक्सिसिटी, देर से यौन परिपक्वता, शारीरिक विकृति, विषाक्तता शामिल हैं। विशेष रूप से नवजात शिशुओं के इसके संपर्क में आने के कारण विकृति, स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं समेत कई समस्याओं सामना करना पड़ा।

केरल के कासरगोड जिले में 20 से अधिक वर्षों के लिए काजू के बागानों ने एंडोसल्फान का कीटनाशक के तौर पर इस्तेमाल होता रहा। कई अध्ययनों में इसका खुलासा हुआ कि कासरगोड जिले में कीटनाशक के प्रयोग के कारण स्वास्थ्य संबंधी कई तरह की समस्याएं हुई। वर्ष 2001 में कासरगोड के गांव में विज्ञान और पर्यावरण केंद्र द्वारा किए गए परीक्षणों ने कीटनाशक के घातक प्रभावों की पुष्टि की गई।

कासरगोड के पादरे गांव के निवासी बताते है कि काजू के बागानों में एंडोसल्फान का हवाई छिड़काव 1976 की शुरुआत में शुरू हुआ था। परंतु इसके कुछ ही सालों के बाद बछड़ों के विकृत अंगों के साथ पैदा होने की खबरें सामने आने लगी। वहीं इसके बाद यहां मेंढक, मछलियां, मधुमक्खी कालोनियां, जुगनू और सियार गायब होने लगे। इसके अलावा कई बच्चे और 25 वर्ष से कम उम्र के लोग गंभीर विकारों से पीड़ित हो रहे थे। नदियों के किनारे रहने वाले परिवारों को सबसे अधिक समस्या हुई।

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आकड़े तो कुछ और ही बयां करते है 

केरल राज्य के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग के आंकड़े बताते है कि इस कीटनाशक की वजह से वहां करीब 779 लोगों की मौतें दर्ज की गई, जबकि 6,728 लोग इसके गंभीर प्रभावों का सामना कर रहे है। हालांकि यह तो केवल सरकारी आंकड़ा है। अनौपचारिक आंकड़ा इससे कही अधिक माना जाता है।

एंडोसल्फान के दुष्परिणाम को देखते हुए दुनिया के कई देश बहुत पहले ही इसके उपयोग पर प्रतिबंध लगा चुके है। ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया समेत 80 देशों उस सूची में शामिल हैं, जिन्होंने एंडोसल्फान के प्रयोग पर पाबंदी लगाई हुई है। वहीं 12 अन्य देशों में इसके उपयोग की अनुमति नहीं है। केरल में इस कीटनाशक के प्रयोग पर सबसे पहले वर्ष 2005 में पाबंदी लगाई थी।

वहीं वर्ष 2011 में जिनेवा में भारत ने ‘स्टॉकहोम कंनवेंशन ऑन परसिस्टमेंट आर्गेनिक पॉल्यूटेंट्स’ पर हुई बैठक में एंडोसल्फान के निर्यात पर प्रतिबंध लगाने में अपनी सहमति जताई थी। वहीं इसके अलावा सर्वोच्च न्यायालय के द्वारा 13 मई 2011 को इसके उत्पादन, क्रय-विक्रय और उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया था, जो अब तक जारी है। हालांकि इसके निर्यात से प्रतिबंध हटा लिया गया है। परंतु कानूनी प्रतिबंधों के बाद भी एंडोसल्फान को चोरी छिपे बड़े पैमाने पर इसके इस्तेमाल करने की बातें सामने आती रहती है।

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Tags: एंडोसल्फानकृषि क्षेत्रकेरलजिनेवाभारत
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