एक पार्टी की जड़ें मज़बूत करने हेतु जितना आवश्यक उसके कार्यकर्ताओं का ज़मीन पर उतरना है उतना ही एक सक्रिय और सामर्थ्यवान नेतृत्व भी आवश्यक होता है। भाजपा भले ही वर्ष 2014 के बाद से केंद्र समेत देश के कई राज्यों की सत्ता पर काबिज़ होती गई और अपना जनाधार मज़बूत करती गई पर कई ऐसे राज्य भी रहें जहां भाजपा का खाता नहीं खुलता था। उन्हीं में एक राज्य पंजाब था और दूसरा जम्मू और कश्मीर। यहां हमेशा से भाजपा को एक क्षेत्रीय दल का साथ चाहिए होता है ताकि उसे कुछ सीटों पर बढत मिल सके। इस मिथक को तोड़ने के लिए अब भाजपा उन नेताओं को साध रही है जिनका उक्त तमाम राज्यों में भारी वर्चस्व है। इसी क्रम में कुछ दिनों में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री और पंजाब लोक कांग्रेस के मुखिया कैप्टन अमरिंदर सिंह भाजपा में अपनी पार्टी का विलय करने वाले हैं और भाजपा का दामन थामने वाले हैं। ऐसे में कैप्टन के बाद अगला नंबर किसी और का नहीं बल्कि स्वयं नए-नए बागी हुए कांग्रेसी गुलाम नबी आज़ाद का है, जो जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्य की राजनीति के प्रभावी नेता हैं।
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पंजाब में मजबूत होगी भाजपा की पकड़
दरअसल, इस बात की अटकलें लगाई जा रही है कि भाजपा पंजाब में मजबूती हासिल करने की ओर अग्रसर है। इस बार चुनाव में मिली हार को अगले चुनाव तक जीत में तब्दील करने की जुगत में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह 19 सितंबर को भाजपा में शामिल होने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। पंजाब लोक कांग्रेस (पीएलसी) के प्रवक्ता प्रितपाल सिंह बलियावाल ने इसकी पुष्टि की है। पीएलसी के प्रवक्ता ने यह भी संकेत दिया कि पीएलसी का भाजपा में विलय होने की पूरी संभावना है।
इससे क्या लाभ होंगे यह सबको पता है पर जो प्रमुख लाभ हैं जिनसे आगामी भविष्य में भाजपा लाभान्वित हो सकती है वो यह है कि अकाली दल से अलग होने के बाद भाजपा के पास राज्य की राजनीति का तुरुप का इक्का नहीं था। अर्थात् न ही भाजपा के पास अबतक अपना कोई चेहरा था जिसके बल पर भाजपा चुनाव लड़ती और न ही भाजपा को घर-घर तक पहुंचाने वाले स्थानीय लोग। यही कारण रहा कि भाजपा को इस बार पुनः हार का सामना करना पड़ा। चाहे वह दिल्ली हो या फिर पंजाब या फिर जम्मू-कश्मीर, इन सभी राज्यों में संगठन तो है पर नेतृत्व नहीं है। यही कारण है कि भाजपा हर जगह जीतने के बाद भी यहां परास्त हो जाती है। इस रिक्तता को भरने के लिए भाजपा उन नेताओं को अपने पाले में कर रही है जिनका प्रभाव सर्वत्र है।
ऐसे में कल को यदि कैप्टन अमरिंदर सिंह भाजपा में शामिल होते हैं तो सर्वप्रथम भाजपा को एक अनुभव से लबरेज़ नेतृत्व मिलेगा। इसके साथ ही जो खाई भाजपा और जनता के मध्य बीते किसान आंदोलन के बाद आई है, उसे कैप्टन अमरिंदर सिंह पाटने का काम करेंगे। जिस प्रकार भाजपा अब भी जमीनी स्तर पर पंजाब में संपर्क साधने में असफल रही है उस संपर्क को जीवन देने का काम कैप्टन अमरिंदर सिंह करेंगे। इसके अतिरिक्त, भगवंत मान सरकार भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों के तहत कई सवालों के जवाब नहीं दे पा रही है। मान सरकार सत्ता में आने के 5 माह में वित्तीय मोर्चे पर बुरी तरह विफल रही है और कर्ज की बात करें तो वह नई ऊंचाईयों पर है। निराशा के ऐसे समय के बीच, लोगों को अब भी एक विश्वसनीय विपक्ष पर भरोसा है। भारतीय जनता पार्टी जो चौबीसों घंटे राजनीति के लिए जानी जाती है, मान के नेतृत्व वाली आप सरकार के कुशासन का वैचारिक विरोध बनने के लिए दृढ़ता से तैयार है।
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भाजपा के दोनों हाथ में लड्डू
हाल ही में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से मुलाकात की थी। खबरों के अनुसार उनकी पार्टी के भाजपा में विलय के बाद उन्हें एक महत्वपूर्ण भूमिका दी जाएगी। इससे भाजपा को न ही क्षेत्रीय दलों पर आश्रित रहना पड़ेगा बल्कि स्वयं को मज़बूत करने की रणनीति पर काम करने का मौका भी मिलेगा। भाजपा को एक हिंदू पार्टी, अल्पसंख्यक विरोधी और सिख विरोधी पार्टी के रूप में गलत तरीके से जिम्मेदार ठहराया जाता रहा है। कैप्टन अमरिन्दर सिंह और उनके प्रतिबद्ध कैडर के साथ भाजपा उन शासक क्षेत्रों में प्रवेश करने में सक्षम होगी, जहां कृषि कानूनों के खिलाफ विवादों के मध्य चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा था।
इससे एक द्वार उन नेताओं के लिए भी खुलेगा जो कांग्रेस छोड़कर नया गंतव्य तलाश रहे हैं। इनमें प्रमुख नाम है गुलाम नबी आज़ाद का, जो कांग्रेस से अलग होने के बाद नई पार्टी बनाने की ओर अग्रसर हैं। ऐसे में कल को वो भी कैप्टन अमरिंदर सिंह की भांति भाजपा में शामिल होते हैं तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। उनके बयानों से यह प्रतीत तो होने लगा है कि उनका झुकाव पीएम मोदी की नीतियों की ओर है और वो जम्मू कश्मीर में भाजपा को मज़बूत करने के लिए भाजपा में सम्मिलित हो सकते हैं ऐसी प्रबल संभावनाएं हैं। आजाद एक अनुभवी राजनेता हैं और वो जानते हैं कि समय पर निर्णय लेना कितना आवश्यक होता है। ऐसे में जहां शीघ्र ही जम्मू-कश्मीर में चुनाव होने वाले हैं और इससे पहले कि बहुत देर हो जाए, गुलाम नबी आज़ाद को अपना राजनीतिक भविष्य तय करना होगा।
सौ बात की एक बात यह है कि राजनीति संभावनाओं और समीकरणों का ही खेल है, जो बनते-बिगड़ते रहते हैं। आज का राजा कल का रंक और फ़कीर भी हो सकता है यह इस बात से पता लग सकता है कि जिस पंजाब में कांग्रेस के पास कैप्टन अमरिंदर सिंह जैसा अनुभवी नेता था, जिस जम्मू-कश्मीर की राजनीति से आने वाले गुलाम नबी आज़ाद हैं आज कांग्रेस के पास ये दोनों ही नेता नहीं हैं। आगामी समय में कैप्टन अमरिंदर सिंह तो भाजपाई होने ही वाले हैं, गुलाम नबी आज़ाद भी उसी खेल में सम्मिलित हो सकते हैं ऐसा अनुमान लगाया जाने लगा है और भाजपा के दोनों हाथों में लड्डू होने की कहानी यहां पूर्ण होती दिख रही है।
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