नकल के लिए भी अकल की आवश्यकता होती है, कांग्रेस आलाकमान ने इसका प्रत्यक्ष उदाहरण देकर यह तय कर दिया है। कांग्रेस आलाकमान ने मन मारकर बीते दिनों अध्यक्ष पद के लिए चुनाव की घोषणा की थी। इस घोषणा के साथ ही यह कहा गया था कि कोई भी आकर चुनाव लड़ने के लिए स्वतंत्र है, कोई भी चुनाव हेतु नामांकन कर सकता है। अब यह तो सभी को पता है कि जितना सरल यह लग रहा है उतना सरल यह है नहीं। कांग्रेस अध्यक्ष की कुर्सी जब से मैडम सोनिया गांधी के हाथ आई है उस दिन से या तो अध्यक्ष स्वयं सोनिया रही हैं या फिर पार्टी के एकमात्र चश्मोचिराग राहुल गांधी।
ऐसे में इस बीच अब कई नाम आ गए कि यह भरेंगे नामांकन या वह ही होंगे अगले अध्यक्ष। इस ऊहापोह की स्थिति ने यह साफ़ कर दिया कि कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव जो एक “फिक्सड” चुनाव है वो करने में कांग्रेस को इतनी परेशानी हो रही है, ऐसे में ये लोग सत्ता प्राप्त करने वाले चुनाव तो कैसे ही जीतेंगे जब घर के चुनाव में इतनी सिरफुटव्वल मची हुई है।
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गुत्थम-गुत्था वाली स्थिति
दबाव क्या कुछ नहीं करवा देता, परिवार पोषित पार्टी कांग्रेस को वर्ष 2014 से ही अपने नेतृत्व में ख़ामी और उस पर से परिवारवादी शक्तियों के चक्कर में खूब लताड़ मिली है। इस लताड़ को समझने और ग़लतियों को सुधारने में कांग्रेस को 8 बरस लग गए। अनेकों चुनाव बलि देने पड़े और विपक्षी के तौर पर भी योग्य और सुपात्र बनने के लिए उसे संघर्ष करना पड़ रहा है। इसके परिणामस्वरूप अब अरसे बाद गैर-गांधी कांग्रेस अध्यक्ष तो बनने जा रहा है पर यह चुनाव भी गुत्थम-गुत्था वाली स्थिति में प्रवेश कर चुका है।
कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव की घोषणा होते ही संभावित नामों की सूची तैयार होने लगी थी। इनमें सबसे पहला मानदंड यह था कि कौन है वो जो गांधी परिवार का सबसे विश्वासपात्र है। इस कड़ी में सबसे पहला नाम राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत का आया। चूंकि चुनाव होना है यह तय था तो गांधी परिवार का इतिहास बताता है कि वो हमेशा अपने प्रॉक्सी के रूप में ऐसे ही व्यक्ति को कुर्सी देते हैं जो उनकी हां में हां मिलाए।
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जी-18 गुट के शशि थरूर का नाम
दूसरी ओर जी-18 गुट के शशि थरूर का नाम सामने आया जिन पर आपत्ति तो कांग्रेस आलाकमान भी नहीं उठा पा रहा है क्योंकि चुनाव का अर्थ ही यह था कि कोई भी लड़ सकता है। पर थरूर का पलड़ा गहलोत के सामने हल्का जान पड़ रहा था, ऐसी स्थिति में गहलोत बाजी मार रहे थे और लगभग तय था कि वही अगले कांग्रेस अध्यक्ष बनेंगे। पर सब हंसी-ख़ुशी और आसानी से जो जाए वो कांग्रेस कहां।
पहले ही विगत 8 वर्षों में दर्ज़नों बार पार्टी धड़ों में बंटती रही है। हाल फ़िलहाल गुलाम नबी आज़ाद जैसे नेताओं का पार्टी छोड़ नये अवसर तलाशने जाना पार्टी की दशा का बखान कर ही रहा है। इसी क्रम में अशोक गहलोत का राजस्थान प्रेम छूट नहीं रहा था। जब यह बात आई कि कांग्रेस अध्यक्ष बनने के उपरांत राजस्थान की सीएम कुर्सी छोड़नी पड़ेगी तो गहलोत मान तो गए पर सशर्त मानना और बिना शर्त मानने में ज़मीन-आसमान का अंतर होता है। गहलोत का लोभ यह था कि उनके हटने पर उन्हीं की पसंद का कोई सीएम बने पर सचिन पायलट के रहते यह कैसे संभव था। राजस्थान में फिर से बगावती सुर चरम पर पहुंच गए, खबर आई कि यदि पायलट मुख्यमंत्री बने तो 80-90 गहलोत समर्थक विधायकों के इस्तीफे तैयार थे।
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कांग्रेस अध्यक्ष की रेस से गहलोत बाहर
इस स्थिति में अब गहलोत का नाम कांग्रेस अध्यक्ष की रेस से बाहर हो गया है। खबर आई कि अब दिग्विजय सिंह का नाम आगे हैं। फिर वाइल्ड कार्ड एंट्री के साथ मल्लिकार्जुन खड़गे नामांकन की रेस जीत गए। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह नॉमिनेशन के आखिरी दिन कांग्रेस अध्यक्ष चुनाव की रेस से हट गए हैं। उन्होंने कहा कि मैंने जीवन भर कांग्रेस के लिए काम किया है, खड़गे जी मेरे सीनियर हैं। मैं उनके पास गया था लेकिन वे बोले कि नहीं मैं पर्चा नहीं भर रहा हूं। आज पता चला कि वो पर्चा भर रहे हैं तो आज उनसे मिला। दिग्विजय सिंह ने कहा कि मैं कभी उनके खिलाफ चुनाव लड़ने की बात नहीं सोच सकता। अब मैं उनका प्रस्तावक बनूंगा।
जहां पार्टी को यह पता है कि काम उसी 10 जनपथ से होना है, सारे आदेश गांधी परिवार से ही आने हैं उसके बाद भी इतनी लड़ाई कि हम बनेंगे अध्यक्ष, ऐसे में आंतरिक चुनाव लड़ना पूरी कांग्रेस पर भारी पड़ रहा है, ऐसी स्थिति में इनके सपने हैं 2024 के चुनाव जीतने के। अब चूंकि नामांकन के आखिरी दिन मल्लिकार्जुन खड़गे नामांकन कर चुके हैं तो सारी स्थितियों को समझते हुए अनौपचारिक रूप से यह अध्यक्ष चुनाव गांधी परिवार समर्थित खड़गे और थरूर के बीच होगा। शेष चुनाव जो भी जीते, जिस प्रकार रिमोट से कंट्रोल कर पीएम के रूप में गांधी परिवार ने डॉ मनमोहन सिंह को चलाया था, अब गांधी परिवार रिमोट के कंट्रोल से अध्यक्ष के रूप में कांग्रेस पार्टी को चलायेंगे।
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